आदमी क्या है
भूख लगना आदमी की प्रकृति है ,
छीन खाना आदमी की विकृति है।
अपने अतिथि को प्रेम से जो खिलाए,
बांट खाना ही आदमी की संस्कृति है।।
हिलादे सारे सागर को, उसे तूफान कहते हैं,
तोड़ दे तट के बंधन को, उसे उफा़न कहते हैं।
इससे भी आगे की सोच लो जरा,
तूफानों से जो टकराए , उसे इंसान कहते हैं।।
तलवार की धार भी सह लेता है आदमी,
गोली की बौछार भी सह लेता है आदमी।
किंतु इन सब से असर करती है ज्यादा,
बोली की मार नहीं सह सकता है आदमी।।
आदमी के हृदय में अनुराग होना चाहिए,
आदमी के ह्रदय में एक आग होनी चाहिए।
इन सारी बातों को बनाए रखने के लिए,
आदमी के ह्रदय में, एक त्याग होना चाहिए।।
हैवान से भी कम नहीं है आदमी ,
शैतान से भी कम नहीं है आदमी।
किंतु अगर आदमी में ,आदमियत है,
तो भगवान से भी कम नहीं है आदमी।।
पर्वत को अंगुली पर उठा सकता है आदमी,
मंच पर मधुर राग गा सकता है आदमी।
और तो क्या धरती पर जन्मने के साथ ही,
देवताओं में हलचल मचा सकता है आदमी ।।
आदमी क्या है, डोली के कहारों से पूछो ,
आदमी क्या है ,यौवन की बहारों से पूछो।
आदमी क्या है, लकड़ी के सहारों से पूछो,
आदमी क्या है ,चिता के अंगारों से पूछो ।।
छोटा बर्तन गर्मी से तड़कता है जल्दी,
छोटा ताल पानी से छलकता है जल्दी।
छोटी चीज खाने में देर नहीं लगती,
छोटे दिल का आदमी भटकता है जल्दी।।
वृक्ष जब ठूॅंठ बना, तो कुल्हाड़ा खाया,
आदमी जब अकड़ा, तो सब ने ठुकराया ।
इस तिरस्कार और उपेक्षा का ये कारण समझें,
कि उन्हें परिस्थितियों से समझौता करना नहीं आया।।
अधिक पहनने से कपड़ा फट जाता है,
अधिक रगड़ने से लोहा भी कट जाता है।
आदमी में बस खासियत यही है ,
अधिक परिचय से स्नेह घट जाता है।।
जब तक नहीं ढूॅंढेगा ,अंदर जाके आदमी ,
क्या करेगा मंदर में जाके आदमी।
पावेगा भला वो कैसे अपनी पूंजी को,
चाहे तलाशे भला समुंदर में जाके आदमी।।
अहिंसा विचारों में, मन में मधुरता हो,
सरलता जीवन के हर आचरण में हो ।
आधार आदमी का परमार्थ सिद्ध करना,
मैत्री भावना की ज्योति सदन में हो।।
कला की साधना ,पुजा देती है पाषाण को,
प्रेम की साधना बना लेती है अनजान को।
आदमी की कौन सी साधना काम नहीं देती,
भक्ति की साधना ,मना लेती है भगवान को ।।
भूल को भी भूल जाए, वही है आदमी,
अवसर के अनुकूल हो जाए वही है आदमी।
आपदाओं में भी जो अपने को न भूले,
शूल में भी फूल बन जाए, वही है आदमी ।।
विज्ञान की चकाचौंध से ना घबड़ाता है आदमी,
मजबूरियों से हर कदम पर बंधा है आदमी।
फिर भी आदमी में खासियत है यही,
हर बार टूट-टूटकर सधा है आदमी।।
नेता के संग, खुशी से उछलता है आदमी,
जनता के संग द्रोह से उबलता है आदमी।
देश का भला कैसे होगा जहाॅं
गिरगिट की तरह रंग बदलता है आदमी।।
तेज धूप से भी ना घबड़ाता है आदमी,
कीच में भी कमलवत् खिल जाता है आदमी।
संकटों के क्षण में साधना जो करे,
मुसीबत में जो मुस्कुराता है आदमी।।
आदमी को आदमी की परवाह नहीं ,
आदमी को आज भगवान की परवाह नहीं।
क्या कहें आज के जमाने की खूबी है,
आदमी को आज इंसान की परवाह नहीं।।
पतझड़ का पीला पान है यह आदमी ,
सतत श्वासों से गतिमान है यह आदमी।
बाल ,यौवन ,बुढ़ापा तो विश्राम है,
काल का भी मेहमान है यह आदमी ।।
आदमी जब चांद पर जाने लगा ,
आदमी जब शान पर आने लगा।
क्या भरोसा है कब गिरेगा आदमी ,
आदमी जब आदमी खाने लगा।।
काम में जान जब आती है ,जब पसीना शुरू होता है,
चमक तब आती है जब रफ़ पर नगीना शुरू होता है।
फिलोस्फी की बहस बाजी में खुदा नहीं मिलता दोस्तो,
तर्क वितर्क की आखिरी कड़ी पर जीना शुरु होता है।।
चोट खाकर ही इंसान कोई काम में लगते हैं,
सुप्त चेतना वाले को हर कोई ठगते हैं ।
जो अंश बेकाम पड़े रहते वे सक्रिय हो उठते हैं,
सच तो यह है कि चुनौती के क्षण में ही हम जगते हैं।।
संकलक शुभेच्छु
गजेंद्र सिंह आर्य
(पूर्व प्राचार्य/राष्ट्रीय वैदिक प्रवक्ता/पथ प्रदर्शक संरक्षक)
जेपी विश्वविद्यालय परिसर अनूपशहर, बुलंदशहर -२०३३९०
उत्तर प्रदेश
चल दूरभाष – ९७८३८९७५११