दिल्ली का मौहम्मद तुगलक और अरविन्द केजरीवाल
दिल्ली को ‘स्वर्ग’ बनाने के पश्चात दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अब पंजाब का मुख्यमंत्री बनने के सपने देखने लगे हैं। हम उनके इन सपनों को मुंगेरीलाल के हसीन सपने नहीं कहेंगे, क्योंकि सपने देखना हर व्यक्ति नैसर्गिक अधिकार है, और लोकतंत्र व्यक्ति के सपनों का न केवल सम्मान करता है, अपितु उन्हें साकार कराने के लिए उचित अवसर भी प्रदान करता है। ये सपने व्यक्ति की निजी महत्वाकांक्षाएं भी हो सकती हैं, पर लोकतंत्र किसी की निजी महत्वाकांक्षाओं का भी अपमान न करके उनका भी सम्मान ही करता है।
लोकतंत्र में जो व्यक्ति सपने देखता है, या अपनी महत्वाकांक्षाएं पालता है-उनका संबंध लोकहित से होता है और लोकतंत्र लोकहित का संरक्षक है। इसलिए सपने देखने वाले या निजी महत्वाकांक्षाएं पालने वाले हर व्यक्ति से लोकतंत्र यह अपेक्षा करता है कि उसके सपने और निजी महत्वाकांक्षाएं लोकहित के अनुकूल होने चाहिएं। यदि उसके सपनों और निजी महत्वाकांक्षाओं में लोकहित की उपेक्षा है या अवहेलना का अंश है तो लोकतंत्र ऐसे व्यक्ति के सपनों और महत्वाकांक्षाओं को अलोकतांत्रिक बताकर इतिहास की अदालत को सौंप देता है, और फिर अपने सपनों और महत्वाकांक्षाओं की नौटंकी से जनहित का मखौल उड़ाने वालों को इतिहास न केवल लताड़ता है, अपितु कठोर दण्ड भी देता है। जिन लोगों ने अब से पूर्व अपनी नौटंकियों के पालने में झूलते-झूलते सपने देखे हैं-या अंगूठा चूसते-चूसते निजी महत्वाकांक्षाएं पाली हैं-उन्हें इतिहास ने आज कूड़ेदान में फेंक दिया है, या उनकी नौटंकियों का रहस्य बता-बताकर लोगों को उनके राजनीतिक भ्रष्टाचार का काला चेहरा दिखा-दिखाकर उन्हें सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने की सजा दी है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल पंजाब तो जाएं और वहां के मुख्यमंत्री भी बनें पर अपनी ‘कथनी-करनी’ के मकडज़ाल पर अपने आप ही दृष्टिपात कर लें, वह दिल्ली को वैसा नहीं बना पाये हैं-जैसा उन्होंने दिल्ली के मतदाताओं से चुनाव के समय वचन दिया था। इसके विपरीत दिल्ली के लोग अपनी पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को याद करने लगे हैं कि राज तो उन्हीं का ठीक था। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश बनाने का संकल्प व्यक्त करने वाले अरविंद केजरीवाल की दिल्ली भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबी है, इतना ही नही उनके विधायकों पर चरित्र हनन के गंभीर आरोप लगे हैं और कईयों को ऐसे निकृष्ट मामलों में जेल की हवा भी खानी पड़ी है। देश की राजधानी में बैठे विधायकों को राजशाही ठाट उपलब्ध कराने के लिए उनके वेतन में भी अप्रत्याशित वृद्घि की गयी, जबकि एक आम आदमी आज तक अपनी समस्याओं के लिए रो रहा है। यही कारण है कि आज हर वह मतदाता अपने आपको ठगा सा अनुभव कर रहा है-जो कि पूर्व में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को मत दे चुका है। इधर केजरीवाल हैं जो कि दिल्ली की हर समस्या के लिए मोदी और भाजपा को दोषी मानते हैं। उन्हें उलाहना देना आता है, पर किसी समस्या का समाधान खोजना संभवत: नहीं आता। क्या ही अच्छा होता कि वे समस्याओं का समाधान करते जाते और करते जाते तो उन समाधानों में अड़ंगे डालने वाले स्वयं ही जनता के सामने नंगे होते जाते। पर वह तो पहले दिन से ही रोने लगे कि-‘ये देखो भाजपा आ ली और ये देखो शीला आ लीं, ये मुझे काम नही करने दे रहे।’ उन्होंने अपनी स्थिति वैसा बना ली जैसा एक स्कूल जाने वाला वह कामचोर बच्चा बना लेता है जो पहले ही सोच कर चलता है कि जब मास्टरजी पूछेंगे कि काम करके क्यों नहीं आया? तो कह दूंगा कि-‘दीदी ने लाइट बंद कर दी थी, या आज हमारी गली का ट्रांसफार्मर फुंक गया था, या आज मम्मी मुझे मार्केट ले गयी और मैं काम नही कर पाया।’ सचमुच लाइट बंद करने या ट्रांसफार्मर फुंक जाने या मम्मी के साथ मार्केट चले जाने के बहाने अब जनता सुनने वाली नही है, जैसे मास्टरजी इन बहानों से तंग आकर बेंत हाथ में लेकर बच्चे की नौटंकी का उचित पुरस्कार उसे दे ही देते हैं वैसे ही यह जनता भी जिस दिन ‘मास्टरजी’ बनती है ना केजरीवाल जी! उस दिन हर नौटंकी का हिसाब कर देने का साहस रखती है। भारत के लोकतंत्र में इस जनता ने अच्छे-अच्छे तानाशाहों या नौटंकीबाजों की वास्तविकता पहचानकर जब उन्हें सजा दी तो कोई उन्हें पानी देने वाला भी नहीं रहा।
पंजाब की जनता अपने लिए किसे चुनेगी यह तो समय ही बताएगा-पर हम यहां की जनता के निर्णय की परिपक्वता पर आज ही संतुष्ट हैं कि वह जो भी निर्णय लेगी उसे सोच समझकर ही लेगी। केजरीवाल यह भूल जाएं कि जनता कुछ भी नहीं जानती, इसके विपरीत यह मान लें कि यह जनता सब कुछ जानती है। दिल्ली पर शासन करके और अब यह मानकर कि दिल्ली की जनता तुझसे असंतुष्ट है और वह तुझे आगे शायद ही पसंद करे – पंजाब की ओर केजरीवाल का भागना उनकी अवसरवादी राजनीति का एक अंग है, जिसमें वह अपना भविष्य सुरक्षित देख रहे हैं। उनका यह निर्णय मौहम्मद तुगलक की याद दिलाता है जिसने राजधानी दिल्ली से दौलताबाद बनाने का निर्णय लिया था, पर अपनी फजीहत कराके वापस दिल्ली ही आ गया था। केजरीवाल को आना तो दिल्ली में ही है-पर अच्छा हो कि फजीहत कराके ना आयें।