उत्तराखण्ड और विधानसभा चुनाव
भारत के जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं-उनमें से उत्तर प्रदेश की राजनीतिक स्थिति पर हम प्रकाश डाल चुके हैं। अब आते हैं उत्तराखण्ड पर।
उत्तराखण्ड 9 नवंबर 2000 से पूर्व उत्तर प्रदेश का ही एक अंग रहा है। पुराणों में इसका प्राचीन नाम केदारखण्ड एवं मानस खण्ड मिलता है। केदार खण्ड आज का गढ़वाल मंडल है तो मानसखण्ड आज का कुमायूं मण्डल है। इस प्रदेश की राजधानी देहरादून है। यह प्रांत पूर्व से पश्चिम 358 किलोमीटर लंबा तथा उत्त्तर से दक्षिण 320 किलोमीटर चौड़ा है। इसके पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश हैं, जबकि पड़ोसी देश नेपाल, तिब्बत (चीन) है। इसका कुल क्षेत्रफल 53483 वर्ग किलोमीटर है, जबकि इस प्रांत की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार एक करोड़ एक लाख सोलह हजार सात सौ बावन है। जो कि भारत की कुल जनसंख्या का 0.84 प्रतिशत है। यहां का जनसंख्या घनत्व 189 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. है। जबकि लिंगानुपात 963 महिलाएं प्रति हजार पुरूषों पर हैं। इसी प्रकार साक्षरता 79.52 प्रतिशत है। यहां की विधानसभा की कुल सीटें 70 हैं, लोकसभा की कुल पांच सीटें और राज्यसभा की कुल तीन सीटें हैं। यहां का उच्च न्यायालय नैनीताल में स्थापित किया गया है।
इस प्रांत को पुराणों में देवभूमि भी कहा गया है। उत्तराखण्ड के जोशी पीठ (चमोली) में आदिगुरू शंकराचार्य ने अपना पहला मठ ज्योति पीठ स्थापित किया था। यहां का बद्रीनाथ नगर शंकराचार्य द्वारा ‘हिंदू धर्म की पुनस्र्थापना’ का स्थान है।
आजकल यह भारत का 27वां राज्य है। 2 मई 2001 को उत्तराखण्ड को भारत के विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ। 1 जनवरी 2007 से उत्तरांचल का नाम बदलकर उत्तराखण्ड किया गया। इस प्रांत का उल्लेख ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ में भी मिलता है। उस समय भी इसे उत्तराखण्ड ही कहा जाता था। यह प्रांत मौर्यों के शासनाधीन भी रहा। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी यहां आकर प्रवास किया था और इस प्रांत के विषय में अपने संस्मरण दिये हैं। इसके पश्चात यहां पौरववंश व कत्यूरी राजवंश का भी शासन रहा।
कत्यूरियों की राजधानी जोशीमठ रही बाद में उन्होंने अपनी राजधानी कार्तिकेयपुर (बागेश्वर) को बना लिया था। 12वीं शताब्दी तक उत्तराखण्ड इन्हीं कत्यूरी शासकों के शासनाधीन रहा। यहां का अंतिम हिंदू शासक प्रद्युम्नशाह रहा जो कि 1770 ई. के लगभग शासन कर रहा था। इसके पश्चात यह प्रांत 1790 से 1815 तक नेपाली गोरखाओ के शासन में चला गया। 1815 में यहां अंग्रेजों का शासन स्थापित हो गया।
1857 की क्रांति के समय उत्तराखण्ड अन्य भारतीयों के साथ अंग्रेजों के विरूद्घ उठ खड़ा हुआ था। यहां के क्रांतिकारियों को तत्कालीन कुमायूं मंडल के कमिश्नर सर हेनरी रोमजे ने कठोरता से कुचलने का कार्य किया था। यहां के प्रसिद्घ क्रांतिकारी कालू मेहरा थे, जिन्होंने अंग्रेजों के विरूद्घ एक गुप्त सैनिक संगठन बनाया था। उन्होंने कुछ समय के लिए हल्द्वानी पर अपना नियंत्रण भी स्थापित कर लिया था।
महात्मा गांधी के डांडी मार्च में जिन 78 सत्याग्रहियों ने भाग लिया था उनमें से तीन ज्योतिराम, भैरवदत्त जोशी, तथा गोरखा वीर खडक़ बहादुर उत्तराखण्ड के ही थे। उससे पूर्व जून जुलाई 1929 में कुमायूं मंडल में तथा अक्टूबर 1929 में गढ़वाल मंडल में गांधीजी ने प्रवास किया था और लोगों को अपने साथ आने का आवाह्न किया था।
इस प्रकार उत्तराखण्ड का अपना एक शानदार इतिहास है। हर स्थान पर इस प्रांत ने भारतीय संस्कृति, धर्म और इतिहास की सुरक्षा व संरक्षा के लिए अपना विशेष योगदान दिया है।
यहां का विधानमंडल एक सदनात्मक है। यहां की विधानसभा की कुल 70 सीटों में से 12 सीटें अनुसूचित जाति हेतु तथा 3 सीटें अनुसूचित जनजाति हेतु सुरक्षित की गयी हैं। इस राज्य के गठन हेतु उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 लोकसभा में अगस्त 2000 में व 10 अगस्त 2000 में राज्यसभा से पारित किया गया था। जिस पर राष्ट्रपति ने 28 अगस्त 2000 को अपनी स्वीकृति प्रदान की थी। परंतु यह राज्य विधिवत 9 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया था। इस प्रदेश में आगामी चुनावों में कांग्रेस, भाजपा, बसपा व उक्रांद (उत्तराखण्ड क्रांति दल) की विशेष भूमिका रहेगी।
उत्तराखण्ड के पहले राज्यपाल सुरजीतसिंह बरनाला (9 नवंबर 2000 से 8 जनवरी 03 तक) रहे। जबकि पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी बने, जिनका कार्यकाल 9 नवंबर 2000 से 29 अक्टूबर 2001 तक रहा। यहां के वर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत हैं, जिनकी सरकार को अभी कुछ समय पूर्व चलता कर दिया गया था, परंतु न्यायालयों के हस्तक्षेप से उनकी सरकार पुन: बहाल की गयी।
नारायण दत्त तिवारी ने यहां तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में 2 मार्च 2002 से 7 मार्च 2007 तक पूरे पांच वर्ष शासन किया। वह यहां के ऐसे नेता रहे हैं जो कि उत्तराखण्ड से पूर्व उत्तर प्रदेश के भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
यह प्रांत सामान्यत: शांत रहता है, यहां के लोग शांति के साथ जीवन यापन करने में विश्वास करते हैं। यहां का पर्यटन उद्योग बहुत ही समृद्घ एवं विकसित है। विश्वप्रसिद्घ ‘फूलों की घाटी’ भी यहीं पर चमोली से उत्तर में लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर है। वर्ष 1973 में उत्तराखण्ड के वनों की अवैध कटाई को रोकने के लिए चमोली जिले में सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में ‘चिपको आंदोलन’ से वनों की अवैध कटाई के विरूद्घ लोगों में चेतना और जागृति का संचार हुआ था। आज हम इस प्रांत में जो हरियाली देखते हैं उसमें सुंदरलाल बहुगुणा का बहुत बड़ा योगदान है।
अब यहां की जनता पुन: अगले पांच वर्ष के लिए अपनी सरकार का बनाने का निर्णय लेने जा रही है। अभी तक लगता है कि मुख्य संघर्ष कांग्रेस और भाजपा में रहेगा, वैसे उत्तराखण्ड क्रांति दल की शक्ति भी कम नही है। यदि लोगों ने हरीश रावत को नकारा तो भाजपा की सरकार बन सकती है, और यदि लोगों ने उनके प्रति सहानुभूति दिखाई तो वह अगले पांच वर्ष के लिए पुन: मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं।