भारतीयता के पूर्णतया विपरीत अवधारणा है वामपंथ
▪️वामपंथ का विषैला दंत
अपने ग्राउंड-ब्रेकिंग लेखन से वामपंथी इतिहासकारों को जिस तरह श्री अरुण शौरी जी बेनकाब करते हैं वो और कोई नहीं कर सकता। उन्हीं के जरिए हमने समझा है कि वामपंथी इतिहासकार कितने झूठे और मिथक फैलाने में माहिर हैं।
आज चर्चा करते है वामपंथी इतिहासकारों की टोली का एक सबसे बेहतर हीरा प्रो. डी. एन. झा (द्विजेन्द्र नारायण झा) के झूठ की।
डी. एन. झा ने “इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस” के अपने एक अध्यक्षीय भाषण में कहा था कि नालंदा को हिंदू फैनटिक (कट्टरपंथियों) ने तबाह किया था, यानि नालंदा विश्वविद्यालय को बख्तियार खिलजी”ने नहीं जलाया था, बल्कि दो हिंदू कट्टरपंथियों ने जला कर राख कर दिया और वहां के विद्यार्थियों और बौद्ध भिक्षुकों को भगा दिया!”
अब इतना बड़ा झूठ अगर इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के अध्यक्षीय भाषण में बोला जाए और देश के बाकी इतिहासकार इस पर मौन हो जाएं तो इसका मतलब है कि इतिहास के नाम पर देश में कोई गैंग चलाया जा रहा है जिसका काम झूठी बातें फैलाना है।
डी. एन. झा ने यह दावा अपने किसी रिसर्च के आधार पर नहीं किया था। वे कहते हैं कि तिब्बत की “पग सैम जोन ज़ांग” नामक किताब में बताया गया है कि हिंदू कट्टरपंथियों ने नालंदा को जलाया था। मजेदार बात यह है कि उन्होंने खुद इस तिब्बती किताब को क्वोट नहीं किया; उन्होंने किसी और वामपंथी इतिहासकार की किताब को क्वोट करके इस झूठ को सच साबित करने की कोशिश की! डी.एन. झा ने कहा कि ऐसा बी. एन. एस. यादव की किताब में लिखा है, लेकिन डी. एन. झा की धूर्तता देखिए: यादव ने अपनी किताब में अगले ही वाक्य में यह लिखा है कि तिब्बती किताब पर भरोसा नहीं किया जा सकता! फिर, यादव ने ये लिखा कि “यह तिब्बत की डाउटफुल ट्रेडिशन है।” लेकिन “महान” इतिहासकार डी. एन. झा की ईमानदारी देखिए: उसने पूरी कहानी बता दी, लेकिन “डाउटफुल” शब्द को खाकर पचा गए। यही वामपंथी इतिहासकारों का स्टाइल है, इतिहास लिखने की तरीका है। इन बातों को डी. एन. झा छिपा ले गए और दो गैर-बौद्ध भिखारियों को “हिंदू फैनेटिक” बताकर नालंदा के विनाश का आरोप हिंदुओं पर लगा दिया!
अब जरा देखते हैं कि तिब्बत की पुस्तक “पग सैम जोन ज़ांग” में क्या लिखा है। इस किताब का अनुवाद शरतचंद्र दास ने किया है। अनुवाद के मुताबिक घटना ये है कि दो गैर-बोद्ध भिखारी के उपर एक युवा बौद्ध भिक्षु ने पानी फेंक दिया। इन लोगों में झगड़ा हुआ और उसके बाद ये दोनो भिखारीओ ने 12 साल तक सूर्य भगवान की तपस्या की और दैवीय शक्तियां प्राप्त की, जिसके इस्तेमाल से इन दोनों ने आग की वर्षा की और नालंदा के सभी स्तूपों को जला दिया और वहां की नौ मंजिला लाइब्रेरी को पानी में बहा दिया!! मतलब कि दोनों भिखारियों ने चमत्कार के जरिए नालंदा का विनाश किया, सिद्ध शक्तियों द्वारा आग की बारिश और पानी का बौझार! क्या यही है वामपंथियों की “साइंटिफिक हिस्ट्री”?
डी. एन. झा ने जिस किताब को साक्ष्य मान कर नालंदा के विनाश का इतिहास गढ़ा अगर उसे पढ़ा होता तो उन्हें अपने ही इतिहास पर शर्म होती। लेकिन डी. एन. झा पुराने झांसेबाज इतिहासकार हैं; उन्हें अच्छी तरह पता है कि कुतुब उद दीन ऐबक के समकालीन मिनहाज उद दीन की किताब “तबकत- ई-नसीरी” उस वक्त की सबसे प्रमाणिक किताब है। उसमें साफ साफ लिखा है कि इख्तियार-उद-दीन मुहम्मद-बिन-बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर हमला किया। हर भवन को तबाह किया और आग लगा दी। साथ ही छात्रों को जिंदा जला दिया।
यह घटना 1197 की है। कुछ सालो में देश में तुर्कों का शासन आया और नालंदा विश्वविद्यालय हमेशा के लिए बंद हो गया। वैसे समझने वाली बात यह है कि तिब्बत की “पग सैम जोन ज़ांग” किताब 1704-88 के बीच लिखी गई, यानि की नालंदा की तबाही के 500 साल बाद, जिस पर भऱोसा नहीं किया जा सकता।
वक्त आ गया है जब इतिहास के हर अध्याय को फिर से लिखा जाए और दुनिया को सच बताया जाए, क्योंकि वामपंथियों द्वारा लिखा इतिहास झूठ का पुलिंदा है।
यह व्यक्ति डी. एन. झा दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास का प्रोफेसर और Indian Council of Historical Research का सदस्य भी रह चुका है। Myth of the Holy Cow और Holy Cow: Beef in Indian Dietary Traditions जैसे फ़र्ज़ी शोधपत्र प्रकाशित करवाकर इन जैसे इतिहासकारो और आश्रयदाता कोंग्रेस ने ही हिन्दू इतिहास को हीन स्थिति में लाया है।
स्रोत : अरुण शौरी कृत “एमिनेंट हिस्टोरियंस”, पृ. २६७-२७३
साभार : हिमांशु शुक्ला जी