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अकबर के दरबार में एक कट्टर सुन्नी मुस्लिम अब्द अल कादीर बदायूनी था उसने हल्दीघाटी की युद्ध का आंखों देखा वर्णन जिसमें वह खुद शामिल था अपनी किताब मुंतखाब–उत–तवारीख में किया है। मूल किताब अरबी में है जिसका 18वीं सदी में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। दोनों तरफ की सेनाओं में 90% राजपूत लड़ रहे थे अकबर के तरफ से सेनापति मानसिंह और राजा लूणकरण थे तो दूसरी तरफ खुद महाराणा प्रताप और दूसरे राजपूत राजा थे। दोनों तरफ के राजपूतों ने केसरिया साफा पहन रखा था। इससे अकबर का एक सेना नायक अबुल फजल इब्न मुबारक कंफ्यूज हो गया कि कौन हमारे तरफ से लड़ रहे हैं और कौन दुश्मन के तरफ से हैं! फिर अबुल फजल इब्न मुबारक ने अब्द अल कादिर से पूछा दोनों तरफ के राजपूत केसरिया साफा पहने हैं मैं कैसे पहचान करूं कि कौन अपनी तरफ से है और कौन दुश्मन की तरफ से है? तब मैंने यानी अब्द अल कादिर बदायूनी ने कहा अबुल फजल बस तीर और फरसा चलाते रहो भाला फेंकते रहो मरने वाले तो काफिर ही होंगे ना चाहे हमारे तरफ के मरे या दुश्मन के तरफ से मरे .. किधर भी तीर चलाओ किसी को मारो जीत इस्लाम की ही होगी..अगर हम युद्ध जीत सके तो ठीक नहीं जीते तो कम से कम खुदा को यह तो कह देंगे कि हमने काफिरों को मारा।

काश अपने लोग इतिहास पढ़ते और इतिहास से सीख लेते।

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