राष्ट्र के संदर्भ में जननायकों को किसी भी स्थिति परिस्थिति में पर-राष्ट्र के समक्ष झुकना नहीं चाहिए। ‘राष्ट्र-प्रथम’ को लक्ष्य में रखकर उसी के अनुसार आचरण करना चाहिए। स्वाधीनता के उपरांत यदि इसी तथ्य को दृष्टिगत रखकर राष्ट्र निर्माण में सरकारें जुटी रहतीं तो हमारा देश अब तक निश्चित रूप से ‘विश्व गुरु’ बन चुका होता। संपूर्ण भूमंडल पर अपार संभावनाओं से लबालब भरा हुआ यदि कोई देश है तो वह भारतवर्ष ही है। इसके करोड़ों हाथ केवल और केवल राष्ट्र निर्माण में जुटे रहते हैं। इसके करोड़ों मन-मस्तिष्कों में राष्ट्र और मानवता के कल्याण के सुंदर-सुंदर भाव उठते हैं। ‘कृण्वंतो विश्वमार्यम्’ और ‘सर्वे भवंतु सुखिन: …’ का गीत गा- गाकर सबके मंगल की कामना केवल और केवल भारत ही करता है। जिस देश के लोगों के मंगलाचरण में ही सारे संसार के कल्याण के गीत गुंजित होते हों, उसे दिव्य शक्तियों का आशीर्वाद और कृपा भी प्राप्त होती है।
पिछले 9 वर्ष में देश के जनमानस ने जिस प्रकार राष्ट्र उत्थान के लिए सामूहिक संकल्प लेकर आगे बढ़ना आरंभ किया है, उसका परिणाम हमने देख लिया है कि विश्व मंच पर अभूतपूर्व ढंग से भारत का सम्मान बढ़ा है। यदि ऐसी ही लगन हमारी पहले दिन से रही होती तो उसके क्या परिणाम होते? यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
इस संदर्भ में हमें कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि जो लोग लंगड़ी मानसिकता के हैं या जिनकी छोटी सोच है और जिनके पैर में मोच आई हुई है , वह भी आपके साथ चलेंगे। उन्हें अपने यत्न-प्रयत्न से शांत रखते हुए और उन पर कड़ी नजर रखते हुए राष्ट्र के नेतृत्व को और राष्ट्र की प्रगति में लगे लोगों को धैर्य पूर्वक आगे बढ़ना चाहिए। यदि उनका तुष्टिकरण करने में समय व्यतीत किया गया या यह अपेक्षा करते हुए राष्ट्र की ऊर्जा को नष्ट किया गया कि एक दिन वह भी साथ आएंगे तो इसे राष्ट्र के नेतृत्व द्वारा देखे जा रहे शेखचिल्ली के सपने ही कहा जाएगा।
भावुकता या मानवतावादी की सोच राजनीति में बहुत सीमा तक लागू होती है, परंतु हर क्षेत्र में और हर समय नहीं होती। कभी-कभी राजनीति को राष्ट्रनीति बनकर निष्ठुरता का प्रदर्शन भी करना पड़ता है। जब निष्ठुरता की आवश्यकता हो उस समय यदि उदारता बरती गई तो अनजाने में राष्ट्र के साथ पाप हो जाता है। कहने का अभिप्राय है कि राजनीति में निष्ठुरता और उदारता दोनों का उचित समन्वय बना कर चलना राष्ट्र की आवश्यकता होती है।
हमें अपने इतिहास के संदर्भ में यह ध्यान रखना चाहिए कि गांधीजी बहुत देर तक ब्रिटिश सरकार के प्रति एकनिष्ठ और वफादार बने रहे। अपनी इस एकनिष्ठा और वफादारी के चलते गांधीजी देशभक्तों का सम्मान करना और उन पर हो रहे ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों से उनकी रक्षा करने के अपने महत्वपूर्ण दायित्व को भूल गए। हम सभी जानते हैं कि गांधीजी की यह उदारता राष्ट्र के प्रति उनका किया गया, सबसे बड़ा पाप बन गई।
जब गांधी जी में सविनय अवज्ञा आंदोलन चला रहे थे तो उस समय भी वह ब्रिटिश सरकार से ₹100 मासिक का खर्चा प्राप्त कर रहे थे। ब्रिटिश सरकार से ₹100 मासिक का खर्चा लेने वाले व्यक्ति से आप यह कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि वह गोलमेज सम्मेलन में भगत सिंह और उनके साथियों को बचाने की वकालत कर सकते थे?
जो लोग आज भी विदेशों से किसी न किसी प्रकार के संबंध बनाए हुए हैं और भारत को कमजोर करने वाली शक्तियों से गठबंधन कर ठगबंधन के शिकार हैं ,उनसे भी आप किसी भी प्रकार से राष्ट्रवासियों और राष्ट्रवादियों के हित चिंतन की अपेक्षा नहीं कर सकते। उनकी सोच में मोच है । उनके हृदय में गांठ है।
मोच और गांठ किसी गंभीर बीमारी की ओर संकेत करते हैं।
उनका उपचार करने के लिए देश के सभी राष्ट्रवादियों को कुछ समय के लिए अपने भोजन, पानी ,बिजली आदि जीवनोपयोगी वस्तुओं या जीवन को संचालित करने में सहायक चीजों की ओर अधिक ध्यान न देकर परहेज की जिंदगी जीने का अभ्यास करना पड़ेगा। यह इसलिए भी आवश्यक है कि जब रोग बढ़ जाता है तो कुशल वैद्य के पास जाकर उससे परहेज भी पूछना पड़ता है। यदि परहेज नहीं किया गया तो बीमारी विकराल हो जाती है और वैद्य को या चिकित्सक को दिया गया धन भी व्यर्थ चला जाता है।
जब कुशल चिकित्सक या वैद्य शल्य चिकित्सा करता है तो निश्चित रूप से उसमें खून भी बहता है। खून को देखकर उस समय कष्ट अनुभव नहीं करना चाहिए। इसके विपरीत यह समझना चाहिए कि खून का निकलना रोग का निदान करना है। राष्ट्र के संदर्भ में भी हमें देखना चाहिए कि कभी-कभी राष्ट्र का उपचार करते हुए खून बहता हुआ दिखता है। पर जब यह खून किसी अतीक अहमद का या अरशद और अनिल दुजाना का हो तो इस पर कष्ट अनुभव नहीं करना चाहिए। जो भी शल्य चिकित्सक कुशल वैद्य बनकर इस खून को निकाल रहा है, उसे राष्ट्र का सच्चा सेवक और सच्चा उपचारक मानकर उसके हाथ मजबूत करने चाहिए। कपट ना उधर से हो ना इधर से हो। छल ना उधर से हो ना इधर से हो। छद्मवाद का नाश हो। पाखंड का नाश हो। राजनीतिक दुराग्रह का नाश हो और उस राजनीति का नाश हो जो उल्टा बाड़ को खा रही हो।
मोदी जी और योगी जी ! इन दोनों से भी निवेदन है कि सारे देश की जनता बड़े धैर्य के साथ आपको काम करने का समय दे रही है। देश की राष्ट्रवादी जनता के साथ आपके स्तर पर किसी भी प्रकार का छल, छद्म, पाखंड या राजनीतिक दुराग्रह पूर्ण चिंतन यदि कभी प्रकट हुआ तो जिस प्रकार नेहरू द्वारा किए गए इस प्रकार के आचरण को देश की जनता आज कोस रही है वैसा ही आचरण आपके साथ भी किया जा सकता है। देश की जनता आप में विश्वास व्यक्त करते हुए यह अपेक्षा करती है कि आप जन अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे। इस समय हमारे देश की राष्ट्रवादी जनता की आपसे अपेक्षा है कि इस देश को यथाशीघ्र हिंदू राष्ट्र घोषित करो। देश की राजनीति को राष्ट्रनीति घोषित कर उसका हिंदूकरण कीजिए।
देश की जनता आपसे अपेक्षा करती है कि यथाशीघ्र देश में समान नागरिक संहिता लागू की जाए। जनसंख्या नियंत्रण को कठोरता से लागू किया जाए। भारत के लोग बड़ी गहराई से यह अनुभव करते हैं कि भारत उनके लिए हिंदू के रूप में अंतिम शरणस्थली है। चारों ओर से नाग फन फैलाए खड़े हैं। यदि कल को किसी भी प्रकार की किसी विपरीत परिस्थिति से हिंदू को दो-चार होना पड़ा तो वह पाकिस्तान से तो हिंदुस्तान आ गया था पर हिंदुस्तान से कहां जाएगा? इस बड़े प्रश्न को सुलझाना समय की आवश्यकता है। 2024 में देश की जनता आपको फिर जनादेश देने के लिए तैयार है ,पर आपको भी विश्वास देना पड़ेगा कि अब इन तीनों बिंदुओं को लेकर काम किया जाएगा।
हमने लूली – लंगड़ी सोच वाले और पैर में आई हुई मोच के अनेक नेताओं को देख लिया है, उनसे राष्ट्र का कल्याण नहीं हो पाया ।
खंडित और दब्बूपन की मानसिकता के शिकार नेताओं ने देश को खंडित और दब्बूपन की मानसिकता से ग्रस्त कर दिया। अब इस महारोग से छुटकारा पाने का समय है।
मान्यवर मोदी जी और योगी जी ! देश का जागरूक मतदाता अब मतदान करते समय बड़ी समझदारी के साथ बटन दबाता है। आज उसकी अपेक्षा आपसे ‘रोटी’ लेने की नहीं है। वह ‘रोजी’ को भी पीछे रखने को तैयार है । क्योंकि उसे अपना भविष्य दीख रहा है और वह भविष्य को सुरक्षित करने के लिए आपके हाथ मजबूत करना चाहता है। कृपया उसकी भावनाओं का सम्मान करें। समय देश के भविष्य को सुरक्षित करने का है। समय लंबी सोच के साथ राजनीति करने का भी है और समय प्रत्येक प्रकार की विसंगति को नष्ट करने का भी है। आशा है आप देश के जागरूक मतदाताओं की अपेक्षा को दृष्टिगत रखते हुए 2024 के बाद के स्वाभिमानी विश्व गुरु भारत का निर्माण करने का विश्वास लोगों को देंगे। यह तभी संभव है जब भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाए। यह काम 2024 आम चुनाव से पहले होना चाहिए।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत