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राजनीति संपादकीय

बापू चाचा की विरासत और राहुल गांधी

महाभारत में भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं :-”जो राजा सदा प्रजा के पालन में तत्पर रहता है, उसे कभी हानि नही उठानी पड़ती। भरत नंदन! तुम्हें तर्कशास्त्र और शब्दशास्त्र दोनों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। गांधर्व शास्त्र (संगीत) और समस्त कलाओं का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है।
तुम्हें प्रतिदिन ब्राह्मण ग्रंथ, इतिहास, उपाख्यान तथा महात्माओं के चरित्र का श्रवण करना चाहिए। राजा का परम धर्म है-इंद्रिय संयम, स्वाध्याय, अग्निहोत्र कर्म दान और अध्ययन।”
महाभारत से ही हमें पता चलता है कि-‘जो राजा प्रजा की रक्षा नहीं करता, वह पागल और रोगी कुत्ते की भांति सबके द्वारा मार डालने योग्य है। शासक देश को हानि पहुंचाने वाले समस्त अप्रियजनों को निकाल दे और जो राज्य के आश्रित होकर जीविका चला रहे हों उनके सुख-दुख की देखभाल प्रतिदिन स्वयं ही करे। शासक भयातुर मनुष्यों की भय से रक्षा करे, दीन दुखियों पर अनुग्रह करे, कत्र्तव्य और अकत्र्तव्य को विशेष रूप से समझे और सदा राष्ट्र के हित में संलग्न करे। सबको यह इच्छा करनी चाहिए कि राष्ट्र में ब्रह्मतेज से संपन्न पवित्र ब्राह्मण उत्पन्न हों तथा शत्रुओं को संताप देने वाले महारथी क्षत्रिय की उत्पत्ति हो।’
भारत में इस प्राचीन राजधर्म को आज भी बीता हुआ कल नहीं कहा जा सकता। यह आज भी उतना ही प्रासंगिक है-जितना कभी प्राचीन काल में था। यह सत्य है, सनातन है इसीलिए यह सत्य सनातन राजधर्म है, जिसे आज की धर्म निरपेक्षता (वास्तव में पंथनिरपेक्षता) भी नकार नहीं सकती, क्यों कि इस राजधर्म से उसकी रक्षा होती है।
कांग्रेस के कई महान नेताओं का चिंतन इस देश में पंथनिरपेक्षतावादी शासन सत्ता को स्थापित करने का इसलिए रहा था कि वे लोग भारत के सत्य सनातन धर्म के मर्म को जानते थे उन्हें पता था कि सत्य सनातन धर्म सनातन इसीलिए है कि वह अपने वैज्ञानिक नियमों की पवित्र गंगा में धो-धोकर विभिन्न विचारों और मतों को स्वच्छ कर अपने साथ लेकर चलने का ‘बड़ा दिल’ रखता है। ऐसे नेताओं के अग्रणी नायक थे डा. राजेन्द्र प्रसाद। यही वह व्यक्तित्व थे जिन्हें हमारी संविधान सभा का अध्यक्ष बनने का सौभाग्य मिला। उनके सत्यप्रयासों से भारत पंथनिरपेक्ष शासन सत्ता वाला देश बना, जिससे उसने अपनी पराधीनता के पराभव काल की केंचुली से बाहर निकलकर पुन: अपने प्राचीन दिव्य स्वरूप को अपनाने का संकल्प लिया। यह बहुत बड़ी बात थी कि एक सनातन राष्ट्र आज (26 जनवरी 1950) अपने सनातन राजधर्म को अपनाकर उस पर चलने का संकल्प ले रहा था। पर दुर्भाग्य रहा इस देश का कि जिस समय यह सनातन राष्ट्र अपने सनातन राजधर्म के निर्वाह का संकल्प ले रहाा था-उसी समय एक छल हो गया कि इस देश को यह नहीं समझाया गया कि आज तू अपने सनातन राजधर्म का संकल्प ले रहा है, अपितु इसे इसके ‘बाप’ (बापू) और ‘चाचा’ ने (अच्छा रहा कि देश को ‘बाप’ और ‘चाचा’ तो मिल गये पर ताऊ नहीं मिला अन्यथा वह इन दोनों से भी बड़ा होता और फिर क्या कर बैठता कुछ पता नहीं।) आजादी मिलते ही 1947 में ही यह बता दिया था कि भारत को तो हमने पैदा किया है। इसलिए इसके सत्य सनातन राजधर्म की बातों को छोडिय़े। बस, देश तभी से ‘बापू चालीसा’ और ‘चाचा चालीसा’ जपने लगा। इसने अपने सत्य सनातन राजधर्म की ओर झांकना ही बंद कर दिया।
आज की कांग्रेस के नायक राहुल गांधी हैं। उनके हाथ में ‘बापू चालीसा’ और ‘चाचा चालीसा’ है। पर उनके साथ समस्या यह है कि वे उसे हाथ में तो रखते हैं-पर पढ़ते नहीं हैं और पढ़ते हैं तो पीछे से पढऩे का कार्य करते हैं। इसलिए कांग्रेस की ‘बापू’ और ‘चाचा’ की विरासत को भी इस समय घुन लग रहा है। राहुल नहीं समझा पा रहे कि उन्हें सनातन राजधर्म की रक्षा कैसे करनी है और ‘बापू व चाचा की विरासत’ को कैसे निभाना है? वह आज भी विदेशों में छुट्टी मनाने जाते हैं, उनके नववर्ष का सूर्य यूरोप से निकलता है और अंत में वहीं छिप जाता है। इसलिए उनसे भारत के प्रतापी आदित्य से आंखें मिलाकर बात नहीं हो पातीं। उन्हें नहीं पता कि जेएनयू में क्या हो रहा है? और क्यों इस विश्वविद्यालय में पल रहे विषैले नागों के फन कुचलने आवश्यक हैं? उन्हें यह भी नहीं पता कि तेरे विदेशी दौरों को और वहां जाकर लंबी छुट्टी मारने की आदत को देश की जनता अच्छा नहीं मान रही है।
राहुल गांधी ने कांग्रेस को समाप्त करने की निविदा जारी कर दी है। इसका प्रारंभ उन्होंने बिहार के विधानसभा चुनावों में अपने आपको लालू नीतीश का पिछलग्गू बनाकर किया था और अब उन्होंने यूपी में अखिलेश को अपना नेता मानकर ‘बापू -चाचा की विरासत’ को समाजवादियों के चरणों में ला पटका है। सारे समाजवादी इस विरासत को कुचलने का काम ही करेंगे। क्योंकि उन्हें पता है कि उनके लिए ‘बापू चाचा की विरासत’ और ‘भगवा विरासत’ ये दो ही तो शत्रु हैं, अब यदि इनमें से एक का नेता अपनी संपूर्ण विरासत को हमारे सामने स्वयं ही लाकर पटक रहा है तो निश्चय ही वह नेता अज्ञानी है। अत: इस विरासत को खाकर चट कर जाने का समय है। लालू-नीतीश बिहार में इसे खा गये हैं-कांग्रेस सत्ता की मलाई चाट रही है और लालू-नीतीश कांग्रेस को चट कर रहे हैं। यही स्थिति यूपी में होने वाली है, यदि यहां सपा की सरकार पुन: बन गयी तो कांग्रेस इस प्रदेश में सपा जैसे मगरमच्छ के पेट में समा जाएगी। तब राहुल देश के पीएम पद के भी दावेदार नहीं रह पाएंगे क्योंकि बिहार और उत्तर प्रदेश उनके हाथ से निकल चुके होंगे। लगता है वह अपने ‘मुगलवंश’ के अंतिम उत्तराधिकारी सिद्घ होने का संकल्प ले चुके हैं, वैसे भी वह वर्तमान में केवल-किले (पार्टी के) के ही बादशाह हैं-देश में तो उनका सिक्का चल नहीं रहा।

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