जीवन की सबसे बड़ी पूँजी क्या है –
स्वार्थ को तू मार ले,
जिन्दा रख सद्भाव।
भाव गया आदर गया,
घट घेरे दुर्भाव॥2281॥
विशेष शेर
काश! मेरी अन्तिम इच्छा पूर्ण हो :-
ऐ ख़ुदा ! मेरा मन,
तेरी इबादत में लग जाये।
ये जिस्म जो मेरा ,
खलक – ए – खिद्मत में लग जाये ।।
सुनूँ मैं नाद अनहद का,
ये दिल मस्त हो जाये।
यही है आरजू अंतिम ,
ये रूह, तेरी अमानत बन जाये॥2290॥
मूरख से बचकर रहना ही बेहतर है :-
सज्जन तो दुर्लभ मिले,
मूरख मिलें हजार।
इनसे बचकर यों रहो,
ज्यों खेती को बाड़॥2291॥
इस संसार में कैसे रहें-
तैरो इस संसार में,
ज्यों नदिया में नाव।
डूबन है तो डूब जा,
तारै भगवद-भाव॥2292॥
जब आत्मा परमात्मा से तदाकार होती है –
बिन्दु सिन्धु से मिले,
पावै रूप विराट।
परम-धाम मिलता तभी,
कृपा करे विराट॥2293॥
जब कोई योगी, सन्त,गुरु, कवि अथवा उपदेशक हरि चर्चा करे : तो उनके संदर्भ में “शेर” –
तेरी खुशबू का पता करती है।
हवा मुझ पर अहसान करती है॥
नोट :- यह शेर मेरा नहीं है।
करुणा ईश्वरीय गुण है, इसे कभी मत त्यागो :-
छोडे मत करुणा कभी,
बेशक जान भी जाय।
धारण कर यह दिव्य गुण,
परम धाम दिलवाय॥2294॥
करुणा एक रूप अनेक:-
हृदय में करुणा कभी,
आँसू बनकर आय।
दारूण दुःख को देखकर,
रोवै और रूलाय॥2295॥
संसार को सुधारने की बजाय स्वयं को सुधारो –
ना बदला ना बदल सका,
कोई भी संसार।
बदल सके तो मन बदल,
जो चाहे उघ्दार॥2296॥
चमत्कार कब होता है-
प्रयत्न और प्रसाद का,
जब होता संयोग ।
अदने को आला करें,
विस्मित होते लोग॥2297॥
प्रसाद – अर्थात् प्रभु -कृपा
क्रमशः