1857 की क्रांति को असफल कहना मूर्खता होगी : दिवाकर बिधूड़ी

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मेरठ। 1857 की क्रांति के अमर शहीदों की स्मृति में आयोजित किए गए एक कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुए सुप्रसिद्ध इतिहासकार एवं समाजसेवी श्री दिवाकर बिधूड़ी ने कहा कि क्रांति में दोनों पक्षों के 100000 से अधिक व्यक्ति मृतक हुए थे। वास्तव में गुर्जर धन सिंह कोतवाल जी के नेतृत्व में लड़ी गई इस महान क्रांति को सैनिक विद्रोह नहीं कहा जा सकता बल्कि भारतीय जनमानस की स्वतंत्रता प्राप्ति की प्रबल इच्छा इसमें दृष्टिगोचर होती है। इस क्रांति को पूर्णतया सफल बनाने के लिए क्रांति की योजना पर कार्य करते हुए नाना साहब ने वाराणसी, इलाहाबाद ,बक्सर, गया ,जनकपुर ,जगन्नाथपुरी, नासिक, आबू ,उज्जैन, मथुरा आदि की यात्रा की थी।
यह प्रश्न अलग है कि 1857 की सशस्त्र क्रांति अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में पूर्णतया सफल नहीं रही परंतु इतना भी सत्य है कि भारतीय जनमानस में राष्ट्रवाद की भावना को पुनर्जागरण करने में और पुनर्स्थापित करने में किस क्रांति का महत्वपूर्ण योगदान है। इस क्रांति को असफल कहना मूर्खता होगी।
इतिहास में अमर हो गए 1857 के सभी बलिदानी। इसलिए 10 मई 1857 की तारीख भारत के इतिहास में अमिट रहेगी। भारतीयों में शताब्दियों से जो राष्ट्रवाद सुषुप्त अवस्था में पहुंच चुका था ।उसका पुनर्जागरण 10 मई 1857 को हुआ जिसमें एक भाव से एक उद्देश्य की प्राप्ति हेतु अपने पूर्ण आवेश और आवेग से स्त्री पुरुष आभार वृद्ध इस क्रांति को सफल बनाने में अपनी-अपनी आहुतियां डाल रहे थे। 1857 के यह सभी क्रांतिकारी भारत के स्वतंत्रता की नींव रखने में सफल हो गए थे ।इसको इस दृष्टिकोण से भी देखना और पढ़ना चाहिए। विदेशी आक्रांता उनके प्रति चाहे वह अंग्रेज हो अथवा अन्य मुसलमान आक्रांताओ सभी के प्रति विद्रोह और संघर्ष की भावना भारत के लोगों में सुलग रही थी। यद्यपि अंग्रेजो के खिलाफ हिंदू मुस्लिम दोनों ने ही मिलकर भारत की स्वतंत्रता का प्रयास किया था जो प्रशंसनीय है।
अंग्रेजों ने हिंदू और मुसलमानों को अलग अलग करने के लिए और भारतीय राष्ट्रवाद को हिंदू राष्ट्रवाद और मुस्लिम राष्ट्रवाद में बांटने की भी भरपूर कोशिश की थी। वस्तुतः स्वदेशी के प्रति एवं स्वदेशी शासन के प्रति लोगों में जागृति आ चुकी थी अपने मूल्यों अपनी भाषा और अपनी संस्कृति पर विदेशी मूल्य भाषा संस्कृति आक्रमण करें यह भारतीय लोगों को पसंद नहीं थी। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है जब कोतवाल धन सिंह गुर्जर को इतिहास में सही स्थान मिलना चाहिए। ताजा शोधों के आधार पर धन सिंह कोतवाल जी का सही सम्मान होना चाहिए।

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