भारत के 50 ऋषि वैज्ञानिक अध्याय, 32 : आयुर्वेद के मर्मज्ञ ऋषि अग्निवेश
आयुर्वेद के मर्मज्ञ ऋषि अग्निवेश
भारत के वैदिक ऋषियों में अग्निवेश का महत्वपूर्ण स्थान है । ये भी आयुर्वेद के मर्मज्ञ ऋषि के रूप में जाने जाते हैं। जब शेष संसार के लोग चिकित्सा क्षेत्र में कुछ भी नहीं जानते थे तब भारत चिकित्सा क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर रहा था। भारत के इन कीर्तिमानों को स्थापित कराने में जिन लोगों ने अपना परिश्रम, पुरुषार्थ और बौद्धिक संपदा का सदुपयोग कर अपना जीवन खपाया उनमें अग्निवेश का नाम अग्रगण्य है। यह वह काल था जब आयुर्वेद और चिकित्सा शास्त्र का लेखन प्रारंभ ही ही हो रहा था। आयुर्वेद के उषाकाल में जन्मे ऋषि अग्निवेश ने आयुर्वेद की अग्नि को प्रज्वलित किया। जिसने अपने तेज से सर्वत्र आयुर्वेद का उद्घोष किया। इस प्रकार भारत के जिन ऋषियों ने मानवता के रोग शोक के निवारण के लिए समय-समय पर अपने आपको प्रस्तुत किया, उन्हीं में से एक ऋषि अग्निवेश हैं।
ऋषि अग्निवेश ने आयुर्वेद के मर्मज्ञ अन्य ऋषियों की भांति अपने जीवन को मानवता की सेवा में लगाया। उनके बारे में ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपने गुरु आत्रेय के ज्ञान को संहिताबद्ध किया। जिसमें मानव स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के अनेक सूत्र दिए गए हैं। उन्होंने ‘चरक संहिता’ नामक ग्रंथ को व्यवस्थित किया। ‘चरकसंहिता’ की मूल रूप में रचना ऋषि अग्निवेश द्वारा ही की गई मानी जाती है। बहुत संभव है कि जिस समय इन्होंने इस ग्रंथ की रचना की थी उस समय इसका नाम अग्निवेश के नाम पर ‘अग्निवेश तंत्र’ रखा गया था। जैसे-जैसे समय बीतता गया और मानव स्वास्थ्य को खराब करने वाले रोगों की संख्या बढ़ती गई वैसे-वैसे ही इसमें नए-नए सूत्रों की व्यवस्था होती चली गई। तब इसके प्रतिसंस्कारक के रूप में आगे चलकर चरक आए। अग्निवेश के इस पवित्र ग्रंथ ने मानवता की सेवा करने में 11 वीं शताब्दी तक अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया , ऐसा विद्वानों का मानना है।
आयुर्वेद के थे ऋषि, किया विश्व कल्याण।
जीवन भर करते रहे , दीन हीन परित्राण।।
प्रारंभ में ‘चरक संहिता’ का नाम अग्निवेश तंत्र के रूप में था। जब चरक ने इसे संहिताबद्ध किया तो उस समय इसका नाम ‘चरक संहिता’ के रूप में विख्यात हुआ। चरक संहिता के बारे में हम यह भी स्पष्ट करना चाहेंगे कि आज जो पुस्तक हमारे पास में है वह हमारे कई ऋषियों के चिकित्सा संबंधी ज्ञान विज्ञान और चिंतन का निचोड़ है। इस पुस्तक ने भारत का ही नहीं, संपूर्ण संसार का कल्याण किया है। भारत से बाहर के देशों में भी इसे बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।
‘चरक संहिता’ में पाठ का उल्लेख किया गया है : “अग्निवेश द्वारा लिखित तंत्र (अग्निवेश) को चरक द्वारा संकलित, संपादित और संशोधित किया गया है।”( अग्निवेशक्ते तंत्रे चरकप्रतिसांस्कृते )
अग्निवेश- परिवेश में, देश में – विदेश में,
नाम सब ओर था आकाश थल विशेष में।
दिव्यता – भव्यता जीवन में उनके सभ्यता,
नाम सम पवित्रता मिलती कर्म संदेश में।।
भारत में किसी भी विद्यार्थी की प्रतिभा को पहचानने की एक अनूठी परंपरा रही है। आजकल जिस ढंग से किसी भी बच्चे की प्रतिभा की जांच की जाती है, उससे अलग हटकर भारत की परंपरा थी। जब कोई विद्यार्थी चिकित्सा शास्त्र के अध्ययन के लिए अपनी इच्छा व्यक्त करता था तो उसे इसके लिए एक विशेष अनुष्ठान करना होता था। बिना उस अनुष्ठान को किए किसी भी विद्यार्थी को विद्याध्ययन का अवसर उपलब्ध नहीं होता था ।
इस अनुष्ठान के अवसर पर चिकित्सा शास्त्र के विद्यार्थी को अपने गुरु को वचन देना पड़ता था कि वह सत्य निष्ठा से अपने विद्याध्ययन के प्रति गंभीर रहेगा। इस अनुष्ठान को सार्वजनिक रूप से संपन्न किया जाता था और ऐसे विद्यार्थी को सार्वजनिक रूप से अनेक लोगों के समक्ष यह सौगंध उठानी पड़ती थी कि “मैं जीवन भर ब्रह्मचारी रहूँगा। ऋषियों की तरह मेरी भेष-भूषा होगी। किसी से द्वेष नहीं करूँगा। सादा भोजन करूँगा। हिंसा नहीं करूँगा। रोगियों की उपेक्षा नहीं करूँगा। उनकी सेवा अपना धर्म समझूँगा। जिसके परिवार में चिकित्सा के लिये जाऊँगा उसके घर की बात बाहर नहीं कहूँगा। अपने ज्ञान पर घमण्ड नहीं करूँगा। गुरु को सदा गुरु मानूगा।”
रहूंगा जीवन भर ब्रह्मचारी करूंगा मैं उपदेश।
ऋषियों की भांति , घूमूंगा – देश – विदेश।।
करूंगा भोजन सदा ही सादा, हिंसा से रहूं दूर।
किसी की बात करूं ना बाहर , ना ही रखूं गरूर।।
इस प्रकार की अग्नि परीक्षाओं से निकलकर हमारे यहां पर ‘अग्निवेशों’ का निर्माण होता था। इस सौगंध के एक-एक शब्द का मूल्य विद्यार्थी समझते थे। यही कारण था कि वह आजीवन उस सौगंध का पालन करते थे। अग्निवेश ने भी इसी प्रकार की सौगंध उठाकर अपने जीवन को अग्नि में तपाया था।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत