योगेंद्र योगी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी, सोनिया गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की अनदेखी से राजस्थान में कांग्रेस दो फाड़ होने के कगार पर पहुंच गई है। पार्टी की अनदेखी के कारण प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच मचे घमासान से यह नौबत आई है। पायलट और गहलोत एक-दूसरे के खिलाफ खुल कर सामने आ गए हैं। पायलट इस आरोप को दोहराते रहे हैं कि मुख्यमंत्री गहलोत वसुंधरा राजे सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार के मामलो की जांच नहीं करा रहे हैं। पिछले चुनाव के दौरान खुद गहलोत ने ही वसुंधरा सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। पायलट की इस मांग की काट निकालते हुए गहलोत ने इस मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए पायलट के पार्टी छोड़ने के दौरान किए विद्रोह और इसके लिए विधायकों को करोड़ों रुपयों की रिश्वत का मुद्दा उठा दिया।
गहलोत ने कहा कि पायलट के साथ मिलकर उनकी सरकार को गिराने का प्रयास करने वाले विधायकों को केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने 10-10 करोड़ रुपए दिए थे। इसी के साथ गहलोत ने एक तीर से दो शिकार करते हुए भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी लपेट लिया। इससे भाजपा के लिए नई मुसीबत खड़ी हो गई है। गहलोत ने वसुंधरा राजे और वरिष्ठ नेता कैलाश मेघवाल का धन्यवाद करते हुए कहा कि उन्होंने सरकार गिराने की कवायद में साथ देने से इंकार कर दिया था। इससे आगे एक ओर दांव चलते हुए मुख्यमंत्री गहलोत ने सचिन पायलट का नाम लिए बगैर कहा कि जिन विधायकों ने उनकी सरकार को गिराने के लिए अमित शाह से रुपए लिए, वे उन्हें वापस लौटा दें। गहलोत यहां तक कह गए कि यदि विधायकों ने 10 करोड़ में से कुछ करोड़ खर्च कर दिए हैं तो इसकी भरपाई वे खुद कर देंगे या अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी से करवा देंगे। गहलोत ने पायलट समर्थक विधायकों को चेताया कि शाह का भरोसा नहीं है, यदि रुपए वापस नहीं दिए उनके खिलाफ ईडी की कार्रवाई करवा सकते हैं।
पायलट के उठाए मुद्दे को पीछे धकेलने के लिए गहलोत के इस बयान से न सिर्फ कांग्रेस बल्कि भाजपा में भी तूफान आ गया है। भाजपा अब सफाई दे रही है कि वसुंधरा राजे ने ऐसा कुछ नहीं किया। पूर्व मुख्यमंत्री राजे भी कह चुकी हैं कि ऐसा कोई घटनाक्रम नहीं हुआ। भाजपा के केंद्रीय जल संसाधन मंत्री और गहलोत के गृह जिले में उनके बेटे वैभव गहलोत को हरा कर सांसद बने गजेन्द्र सिंह शेखावत ने इस विवाद में सवाल किया कि यदि गहलोत के पास विधायकों को रिश्वत लेने के प्रमाण हैं तो अभी तक कोई कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की गई? गौरतलब है कि गहलोत और शेखावत में भी जोधपुर में हुए संजीवनी क्रेडिट सोसायटी घोटाले को लेकर अर्से से अदावत चल रही है। इस मामले की राजस्थान एसओजी जांच कर रही है। इसमें केंद्रीय मंत्री शेखावत का नाम आरोपियों में शामिल है। मौके-बेमौके गहलोत इस घोटाले का मुद्दा उठाते रहे हैं। चुनावी वर्ष में प्रदेश में उठ रहे राजनीतिक बंवडरों की चपेट में आने से पूर्व मुख्यमंत्री राजे को भी तगड़ा झटका लगा है। लंबे अर्से से पार्टी में वनवास की हालत झेलने के बाद राजे ने केंद्र से अपने संबंधों में जो सुधार की कोशिश की थी, उससे नुकसान होना तय है।
बड़ा सवाल देश जोड़ने के लिए यात्रा निकालने वाले राहुल गांधी के राजस्थान कांग्रेस में होते बिखराव को देखते रहने का है। कमोबेश पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता पायलट-गहलोत विवाद में मूक दर्शक बने रहे। राजस्थान में गुर्जरों के निर्विवाद प्रभावशाली नेता माने जाने वाले सचिन पायलट और मुख्यमंत्री गहलोत के बीच ऐसी ठन गई है कि इसका समाधान अब कांग्रेस के बूते से बाहर हो गया है। सचिन पायलट और मुख्यमंत्री गहलोत एक-दूसरे पर जमकर राजनीतिक प्रहार करने में जुटे हुए हैं। पार्टी में सम्मानजनक पद नहीं दिए जाने से आहत पायलट ने लंबे अर्से तक घुटन झेलने के बाद खिलाफत का रास्ता अपनाया है। दो साल पूर्व की गई गहलोत सरकार की तख्ता पलटने की साजिश के बाद से ही पायलट कांग्रेस में हाशिए पर हैं। हालांकि विशाल किसान रैलियां निकाल कर पायलट अपनी ताकत का एहसास पार्टी को करा चुके हैं। पार्टी हाईकमान पायलट की भूमिका को लेकर कोई निर्णय नहीं कर पाए। इससे अनुभवी पायलट को अंदाजा लग गया कि पार्टी उनके साथ न्याय नहीं करेगी और न ही अशोक गहलोत के मामले में कोई निर्णय करेगी। इस राजनीतिक विवाद को लटकाने की कांग्रेस की रणनीति से आजिज आकर पायलट ने आक्रामक भूमिका अख्तियार कर ली। पिछले दिनों उन्होंने भाजपा की मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार की जांच की मांग को लेकर एक दिवसीय धरना दिया था। सचिन ने दो साल पहले मौजूद पार्टी अध्यक्ष खरगे की मौजूदगी में बहुमत का प्रदर्शन करने वाले गहलोत के दो करीबी नेताओं पर कार्रवाई नहीं किए जाने को लेकर भी कई बार सवाल उठाए हैं।
सचिन के उठाए इस अप्रत्याशित कदम ने राजस्थान के कांग्रेस प्रभारी सुखजिन्दर सिंह रंधावा और पार्टी के अन्य नेताओं को गंभीर राजनीतिक संकट में डाल दिया। खरगे और रंधावा सहित अन्य कांग्रेसी नेताओं ने सचिन के लगाए आरोपों से कन्नी काट ली। देश में कांग्रेस जिस राजनीतिक संक्रमण के दौर से गुजर रही है, ऐसी हालत में मुख्यमंत्री गहलोत पर किसी तरह का दवाब डाल कांग्रेस विद्रोह को हवा नहीं देना चाहती। लेकिन पायलट को लेकर कांग्रेस की उलझन बढ़ती जा रही है। कांग्रेस प्रभारी रंधावा ने अनुशासनहीनता का आरोप लगा कर पायलट को दबाने का प्रयास किया। इससे पायलट ज्यादा भड़क उठे। उन्होंने रंधावा के बयान की परवाह नहीं की और गहलोत के खिलाफ सीधा मोर्चा खोल लिया। कांग्रेस के यह कहने के बाद कि राजस्थान में अगला मुख्यमंत्री चुनाव के बाद तय होगा, गहलोत के समर्थकों ने अघोषित तौर पर उन्हें आगामी मुख्यमंत्री के तौर पर प्रचारित करना शुरू कर दिया। कांग्रेस हाईकमान सहित दूसरे नेता ऐसे दुविधापूर्ण मामलों में बयान देने से बचते रहे। यह संभव है कि कांग्रेस हाईकमान पायलट और गहलोत के इस विवाद को टालता रहे, किन्तु विधानसभा चुनाव के करीब आने के साथ यह कांग्रेस में उठ रही असंतोष की ज्वाला निश्चित तौर पर बगावत के तौर पर उभरेगी।