गोरों की युद्धक की निशानियां….!
आज 10 मई है भारतीय स्वाधीनता संग्राम 1857 को लगभग 176 वर्ष पूरे हो गए हैं। कभी दुनिया के 50 देशों पर शासन करने वाले अंग्रेज राजघराने का शासन आज महज इंग्लैंड, वेल्स, स्कॉटलैंड आयरलैंड जैसे 5 देशों में सिमट गया है कोई लंबे चौड़े देश नहीं है उन्हें देश भी नहीं कह सकते छोटे-छोटे टापू है। जिन्हें संयुक्त तौर पर यूनाइटेड किंगडम ऑफ ब्रिटेन कहा जाता है ब्रिटेन में आज भी राजा प्रमुख होता है। अंग्रेजों ने अपने पराधीन देशों में क्रूरता वहसीयत की सारी हदें पार कर दी…. अभी कुछ दिन पहले ब्रिटेन के राजा बने चार्लस तृतीय का राज्य अभिषेक हुआ उन्होंने भी अपने पूर्वर्ती राजाओं ,महारानी का अनुकरण करते कोई माफी नहीं मांगी है ब्रिटिश एंपायर के अधीन देशों की प्रजा पर अत्याचार नरसंहार लूट के लिए । ऐसा कर वह भी अपनी औपनिवेशिक मानसिकता का परिचायक दे रहे, रस्सी जल गई बल नहीं गया। वह माफी मांगे ना मांगे लेकिन हांगकांग चीन जापान श्रीलंका सहित अधिकांश देशों ने स्वाधीन होते ही सबसे पहले अंग्रेजों की निशानियां को उनके युद्ध कालीन व शांति कालीन प्रतीकों को चुन चुन कर नष्ट-भ्रष्ट कर किया अपने देशो को मानसिक वैचारिक भौतिक सांस्कृतिक तौर पर गुलामी से मुक्त किया। लेकिन भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश में आज भी अंग्रेजो के द्वारा बनवाए गए मोनुमेंट्स युद्ध वार मेमोरियल जैसे औपनिवेशिक प्रतीक भारत माता की छाती पर शत्रु की निशानी के तौर पर आज भी जीवित है। जो हमारे स्वाधीनता संग्राम यज्ञ के बलिदानी क्रांतिकारियों को मुंह दिखा रहे हैं। जरा विचार कीजिए कोई आपके घर पर हमला कर दे धोखे से आप को पराजित कर दें और आपके घर में अपने पराक्रम का प्रतीक स्थापित कर दे और सदियों बाद भी आपके वशंज शत्रु के उस प्रतीक को अपने घर में सजा सवार कर रखें तो इससे बड़ा द्रोह नादानी कायरता मूर्खता बेरुखी अपने दिवंगत बलिदानी पूर्वजों के साथ क्या होगी ?ठीक ऐसी ही मानसिकता का परिचय हम अपने क्रांतिकारी बलिदानीयों के संबंध में दे रहे हैं । सन 1803 में अंग्रेजों व मराठों का युद्ध नोएडा में छलेरा गांव के निकट होता है। जिसे पटपड़गंज की जंग भी कहते हैं जो दूसरे अंग्रेज मराठा वार का ही महत्वपूर्ण हिस्सा थी। अंग्रेजों ने छल धोखे से मराठा व उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर बलिदान देने वाले स्थानीय दादरी रियासत के देशभक्त राव राजा दरगाही सिंह गुर्जर को पराजित किया उनके 133 गांवो को अंग्रेजों ने जप्त कर लिया अपमानित करते हुए महत्व ₹500 की वार्षिक पेंशन बांधी। बात करते हैं नोएडा विक्टरी पिलर की अंग्रेज दिल्ली जब राजधानी लाते हैं एक सदी पहले हुए उस युद्ध में गवर्नर जनरल लेक की स्मृति में वॉर मेमोरियल विक्ट्री पिलर अंग्रेज 1911 से 1916 के बीच में बनाते हैं ,जो आज भी कायम है नोएडा गोल्फ कोर्स के बीचो-बीच । 18 57 के स्वतंत्रता संग्राम में हमारे क्रांतिकारियों ने चुन-चुन कर अंग्रेजों के भवनों को निशाना बनाया उन्हें जमींदोज किया वे उन्हें तब भी गुलामी की निशानियां मान रहे थे लेकिन आजाद भारत में हमें आज कोई फर्क नहीं पड़ता। इस संबंध में मैंने माननीय प्रधानमंत्री, महामहिम राष्ट्रपति महोदया से तथ्यों दस्तावेजों के साथ अनुरोध पत्र प्रेषित किया है कि नोएडा गोल्फ कोर्स के मध्य बने हुए इस अंग्रेजों के मेमोरियल को हटाया जाये जाए ।उसके स्थान पर राव दरगाही राव उमराव व मराठों का गौतम नगर सहित आसपास के क्रांतिकारियों का भव्य स्मारक बनाया जाए। माननीय प्रधानमंत्री कार्यालय ने अनुरोध पत्र को मुख्यमंत्री सचिवालय उत्तर प्रदेश को अग्रिम कार्रवाई के लिए प्रेषित कर दिया है देखते आगे क्या होगा? हमारी इस मुहिम को दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार श्रीमान मनीष तिवारी जी ने आज स्थानीय ग्रेटर नोएडा जागरण में प्रकाशित किया उसके लिए तिवारी जी का हार्दिक आभार !
आर्य सागर खारी ✍