भारत के 50 ऋषि वैज्ञानिक : अध्याय – 30 , प्राणाचार्य धन्वंतरि

प्राणाचार्य धन्वंतरि

भारत के महान ऋषियों ने संसार को प्राणशक्ति अर्थात स्वास्थ्य प्रदान किए रखने के लिए आयुर्वेद का आविष्कार करके दिया। यह बहुत संभव है कि संसार में रहते हुए व्यक्ति चौबीसों घंटे और हर दिन खाने-पीने के प्रति सतर्क नहीं रह सकता, कहीं न कहीं चूक हो सकती है। आहार-विहार और आचार-विचार को संतुलित बनाए रखने से स्वास्थ्य की रक्षा होना संभव होता है।
जिन महर्षियों ने हमारे लिए आयुर्वेद की खोज कर समय-समय पर उसमें अभिवृद्धि की, उनमें प्राणाचार्य धन्वंतरि का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
आचार्य धन्वंतरि जी महाराज का जन्मदिवस दीपावली से 2 दिन पहले ‘धन्वंतरि त्रयोदशी’ के नाम से आज भी भारत वर्ष में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इसे ‘धनतेरस’ कहकर कुछ दूसरी अवैदिक मान्यताओं के साथ जोड़ दिया गया है, इसका वास्तविक नाम ‘धन्वंतरि त्रयोदशी’ ही है। आचार्य धन्वंतरि ने मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए कार्य किया। मनुष्य स्वस्थ रहकर किस प्रकार दीर्घायु को प्राप्त कर सकता है ? – इस पर गहन अध्ययन, चिंतन और अनुसंधान किया। इनके चित्र में इनकी चार भुजा शंख और चक्र दिखाई जाते हैं। चारभुजा दिखाने का अधिकार है कि इन्होंने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का पुरुषार्थ किया और संसार की सेवा के लिए अनेक हाथों से कार्य किया। शंख का अभिप्राय है कि जैसे परमपिता परमेश्वर के निज नाम ‘ओ३म’ का जप जिसे अनहद कहा जाता है, हमारे भीतरी विकारों को धो धोकर साफ कर डालता है, वैसे ही शंख परमपिता परमेश्वर के तेजबल का संकेत है। जब यह तेजबल किसी महापुरुष के पास आ जाता है तो वह भी संसार के पाप-ताप-संताप को मिटाने का कार्य करने लगता है। यही अर्थ चक्र का है। चक्र का अभिप्राय ऐसे व्यक्ति के चतुर्धरी होने का संकेतक है अर्थात चारों दिशाओं में उसके यश की पताका फहराती रही और अपने बौद्धिक बल से उसने संसार का नेतृत्व किया।

पाप ,ताप मिटते सभी ,और मिटे संताप।
मनुष्य जब धारण करे, ईश्वर का प्रताप।।

आचार्य धन्वंतरि दो भुजाओं में यदि शंख और चक्र है तो दो अन्य भुजाओं में से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे में अमृत कलश लिये हुये हैं। स्पष्ट है कि यह दोनों भी उनके लोक कल्याणकारी स्वरूप को ही प्रकट करते हैं। अमृत कलश हाथ में होने का अर्थ है कि इन्होंने मानवता के कल्याण के लिए अनेक ऐसी औषधियों को खोजा जो हमारे लिए अमृत के समान थी। भारत के स्वास्थ्य विशेषज्ञ या आरोग्य विशेषज्ञों के विषय में हमें यह जानना चाहिए कि वे औषधियों को मानव कल्याण के लिए खोजते थे, उनका निर्माण मानवता के हित में करते थे। औषधियों के माध्यम से जीविका चलाना एक अलग बात है, पर लोगों को लूट लूटकर धन ,कोठी, कार बंगला खड़े करना- यह हमारे आरोग्य विशेषज्ञ पूर्वजों को कदापि धर्मानुकूल नहीं लगता था। यही कारण है कि लोग ऐसे नि:स्वार्थ दिव्य पुरुषों को देवता के रूप में सम्मान देते थे। हमारे आचार्य धन्वंतरि को भी ‘आरोग्य का देवता’ कहकर सम्मान दिया गया है।

‘आरोग्य का देवता’ कह कर दिया सम्मान।
धन्वंतरि विशेषज्ञ थे, जान आयुर्विज्ञान।।

आचार्य धन्वंतरि जी का ज्ञान विज्ञान का परिश्रम उनकी आने वाली पीढ़ियों में भी निरंतर चलता रहा। इससे स्पष्ट होता है कि उनके परिवार के माध्यम से लोगों ने सदियों तक स्वास्थ्य लाभ लेने का आनंद उठाया। लोगों को स्वास्थ्य देने की इस आरोग्य परंपरा का निर्वाह करने वाले भारत के सुप्रसिद्ध वैद्य दिवोदास इन्हीं के वंश में आगे चलकर उत्पन्न हुए थे। आचार्य धन्वंतरि जी की प्रेरणा देर तक उनके वंशजों को प्रभावित करती रही। यही कारण था कि दिवोदास ने उनकी परंपरा और प्रेरणा का ध्यान रखते हुए ‘शल्य चिकित्सा’ के क्षेत्र में विशेष कार्य करते हुए विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया। उनके इस महान पुरुषार्थ से जहां काशी का नाम संसार भर में फैला, वहीं शेष संसार के सभी लोगों को इसका लाभ भी मिला। इसके पश्चात संसार के कोने-कोने से लोग यहां आकर विद्याध्ययन करने लगे। काशी में बने इस आरोग्य केंद्र अथवा विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर संसार के सभी कोनों में लोगों ने भारत के ऋषियों की आरोग्य परंपरा पर बड़ी श्रद्धा से कार्य किया और संसार के लोगों को उसका लाभ पहुंचाया। इस प्रकार संपूर्ण वसुधा को एक परिवार के रूप में देखने वाले हमारे महान पूर्वजों के चिंतन ने संपूर्ण भूमंडलवासियों को एक ही चिकित्सा पद्धति के झंडे तले लाकर खड़ा करने में सफलता प्राप्त की।
शिक्षा के केंद्र के रूप में विकसित किए गए इस गुरुकुल के प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गए थे। सुश्रुत दिवोदास के शिष्य थे। इनके पिता ॠषि विश्वामित्र थे। कार्तिक माह में जब धन्वंतरि त्रयोदशी आती है तो उस समय अक्सर बीमारियां फैला करती हैं। इसका कारण यह होता है कि उससे कुछ समय पहले ही बरसात का मौसम समाप्त होता है, जिसमें अनेक कीट पतंगे बरसात के कारण पानी में गल सड़कर समाप्त हो जाते हैं। जिनकी दुर्गंध हवा को दूषित प्रदूषित करती है। उसी से अनेक प्रकार के रोग उन दिनों में फैला करते हैं। उसी समय धन्वंतरि त्रयोदशी का आना और उसे हमारे पूर्वजों द्वारा विशेष सम्मान देना इस बात का प्रतीक है कि ऋषि धन्वंतरी की शिक्षाओं पर चलो। उनके दिखाए रास्ते को अपनाकर अर्थात उनकी औषधियों का सेवन कर अपने स्वास्थ्य और दीर्घायुष्य का ध्यान करो।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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