पूज्य दानवीर भामाशाह जी का पुण्य स्मरण –
ईरान 17 साल में इस्लाम के झंडे के नीचे आ गया. अफगानिस्तान 100 साल में. परन्तु भारत 650 साल से अधिक समय में भी पूर्ण इस्लामिक राज्य नहीं बन पाया.
इसके कई कारण थे. महाराणा प्रताप, बन्दा बैरागी और छत्रपति शिवाजी जैसे योद्धा. समर्थ गुरु रामदास, सन्त रविदास, गुरु तेगबहादुर और गुरु गोबिन्द सिंह जैसे सन्त और भामाशाह जैसे दानियों के योगदान से ये भारत देश इस्लामिक होने से बच गया.
दानवीर भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ राज्य में 29 अप्रैल 1547 को ओसवाल परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम भारमल था।वो रणथंभौर के किलेदार थे भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप का सर्वस्व होम हो जाने के बाद भी उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा अर्पित कर दी। यह सहयोग तब दिया जब महाराणा प्रताप अपना अस्तित्व बनाए रखने के प्रयास में निराश होकर परिवार सहित पहाड़ियों में छिपते भटक रहे थे। मेवाड़ के अस्मिता की रक्षा के लिए दिल्ली गद्दी का प्रलोभन भी ठुकरा दिया। महाराणा प्रताप को दी गई उनकी हरसम्भव सहायता ने मेवाड़ के आत्म सम्मान एवं संघर्ष को नई दिशा दी।
भामाशाह अपनी दानवीरता के कारण इतिहास में अमर हो गए। भामाशाह के सहयोग ने ही महाराणा प्रताप को जहाँ संघर्ष की दिशा दी, वहीं मेवाड़ को भी आत्मसम्मान दिया। कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ जंगलों में भटक रहे थे, तब भामाशाह ने अपनी सारी जमा पूंजी महाराणा को समर्पित कर दी। तब भामाशाह की दानशीलता के प्रसंग आसपास के इलाकों में बड़े उत्साह के साथ सुने और सुनाए जाते थे।
हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप के लिए उन्होंने अपनी निजी सम्पत्ति में इतना धन दान दिया था कि जिससे २५००० सैनिकों का बारह वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। प्राप्त सहयोग से महाराणा प्रताप में नया उत्साह उत्पन्न हुआ और उन्होंने पुन: सैन्य शक्ति संगठित कर मुगल शासकों को पराजित करा और फिर से मेवाड़ का राज्य प्राप्त किया।
वह बेमिसाल दानवीर एवं त्यागी पुरुष थे। आत्मसम्मान और त्याग की यही भावना उनके स्वदेश, धर्म और संस्कृति की रक्षा करने वाले देश-भक्त के रूप में शिखर पर स्थापित कर देती है। धन अर्पित करने वाले किसी भी दानदाता को दानवीर भामाशाह कहकर उसका स्मरण-वंदन किया जाता है। उनकी दानशीलता के चर्चे उस दौर में आसपास बड़े उत्साह, प्रेरणा के संग सुने-सुनाए जाते थे। उनके लिए पंक्तियाँ कही गई हैं-
वह धन्य देश की माटी है, जिसमें भामा सा लाल पला।
उस दानवीर की यश गाथा को, मेट सका क्या काल भला॥
पूज्य भामाशाह जी को शत शत नमन
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