13 अप्रैल 1919 भारतीय इतिहास का वह ‘काला दिवस’ है जिसे ‘जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड’ के लिए जाना जाता है। उस समय देश के स्वातंत्रय समर का क्रांतिकारी आंदोलन अपने यौवन पर था। कांग्रेस के नेता अक्सर यह कहते मिलते हैं कि देश की स्वतंत्रता के लिए हमने ही बलिदान दिये हैं-भाजपा जैसे दलों का स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं रहा। वास्तव में कांग्रेस का यह मतिभ्रम है-जिसे आज की युवा पीढ़ी सच का पता चलते ही नकार रही है। भाजपा के या आरएसएस के लोगों को चाहिए कि वे ऐसा दावा करने वाली कांग्रेस को समझायें कि आजादी के संग्राम में जितने भी बलिदान दिये गये वे कांग्रेस के नहीं-अपितु उन हिंदू महासभाई या अन्य क्रांतिकारियों के हैं जिन्हें कांग्रेस आज तक गद्दार मानती आ रही है। कांग्रेस ने एक भी ऐसा बलिदानी उत्पन्न नहीं किया जिसने अंग्रेजों पर गोली चलायी हो और उसके बदले में फांसी खायी हो। इसने ‘लाठी खाने वालों’ को तो उत्पन्न किया पर ‘लाठी खिलाने वाले’ उत्पन्न नहीं किये।
13 अप्रैल 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के लिए किसी कवि ने लिखा है :-
वह तेरह अप्रैल कि जिस दिन कितनी गोद हुई सूनी।
वह तेरह अप्रैल कि जिस दिन कितनी सेज हुई सूनी।।
वह तेरह अप्रैल कि जिस दिन बहे रक्त के नाले थे।
छोटे-छोटे से बच्चे डायर के बने निवाले थे।।
‘डायर के निवाले’ बनने का शौक उस समय भारतीय क्रांतिकारियों के सिर चढक़र बोल रहा था। सबका एक ही सपना था और एक ही लक्ष्य था कि जैसे भी हो देश को यथाशीघ्र गोरों से मुक्ति दिलायी जाए। हमारे क्रांतिकारी बलिदानी केवल यही चाहते थे कि अपना देश यथाशीघ्र आजाद हो और हम अपना शासन स्थापित कर देश को उन्नति और प्रगति के रास्ते पर ले चलें। वह चाहते थे कि इस आजादी की प्राप्ति के साथ ही देश से प्रत्येक प्रकार का शोषण, दलन और दमन का विनाश हो जाए और सर्वत्र समता और विकास का साम्राज्य स्थापित हो जाए।
देश आजाद हुआ। देश की बागडोर उन लोगों के हाथों चली गयी जो क्रांतिकारियों के सपनों का भारत न बसाकर ‘भ्रांतिकारियों’ के सपनों का भारत बनाने का सपना ले रहे थे। ये ‘भ्रांतिकारी’ स्वयं अस्पष्ट थे, दोगले थे और इतिहास की उन सच्चाईयों से अनभिज्ञ थे जिनसे इस सनातन राष्ट्र का उस दिन का नाता है जिस दिन इस धरती पर मानवता ने पहली बार आंखें खोली थीं, और मानव ने आगे बढऩे के लिए अपना पहला कदम बढ़ाया था।
आज देश में ऐसे ही ‘भ्रांतिकारियों’ का राजनीति में वर्चस्व है या कहिए कि बोलबाला है। इन्होंने भारत के बारे में इतने झूठ इतनी बार बोले हैं कि यदि इनकी दृष्टि से भारत को देखा जाए तो भारत को बहुत शीघ्र खण्ड-खण्ड हो जाना चाहिए। आजादी से पूर्व इस देश को खण्ड-खण्ड करने की अंग्रेजों की रणनीति और राजनीति को स्वतंत्र भारत के कुछ राजनीतिज्ञों ने भी अपना लिया है। जिन्हें देखकर यही कहा जा सकता है :-
पासबां जब चोर हो तो कौन रखवाली करे।
उस चमन का हाल क्या माली जब पामाली करे।
सचमुच भारत का ‘पासबां चोर’ है, और माली पामाली कर रहा है। बात बसपा की करें तो इस पार्टी ने सत्ता का स्वाद चखने के लिए पहली बार नारा दिया था-‘तिलक, तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार।’ संयोग की बात रही कि मायावती इस नारे से सत्ता के गलियारों में पहुंचने में सफल हो गयीं। पर कमी यह रही कि सत्ता का पूर्ण उपभोग नहीं कर पायीं। तब अगली बार नारे में परिवर्तन किया गया और ‘सोशल इंजीनियरिंग’ के नाम पर नारे को कुछ जातियों के अनुकूल बना दिया गया। तब कहा गया कि ‘हाथी नहीं गणेश है-ब्रह्मा, विष्णु महेश है।’
अब की बार उत्तर प्रदेश का एक बड़ा वर्ग इस नारे ने दिग्भ्रमित कर दिया। फलस्वरूप ‘हाथी’ अपने बल पर सत्ता में आ गया। पर उसके पश्चात प्रदेश में जो कुछ हुआ वह स्पष्ट कर गया कि प्रदेश के लोगों ने बहनजी को गद्दी सौंपकर गलती कर दी है। बहन जी गलती को नहीं मानती हैं, उन्हें आज तक नहीं लगा कि उन्होंने सत्ता प्राप्त कर समाज के कुछ लोगों के साथ ज्यादती की थी। अत: उन्होंने आज तक अपनी किसी गलती का प्रायश्चित नहीं किया। इसका एक कारण यह भी था कि वह जब-जब सत्ता में आयीं तब-तब उन्होंने प्रदेश की जनता की जातिगत और वर्गीय भावनाओं को उकसाकर उनके आधार पर सत्ता प्राप्त की। उन्हें अब भी लगता है कि वे अब भी प्रदेश में दलित व मुस्लिम का गठजोड़ कर सत्ता प्राप्त कर लेंगी। यही कारण है कि अब उनकी ओर से अपनी सारी शक्ति दलित मुस्लिम गठजोड़ को बलशाली बनाकर इसी के आधार पर सत्ता प्राप्त करने में लगायी जा रही है। वह अच्छी प्रकार जानती हैं कि इस गठजोड़ के विषय में कभी बाबा साहेब के भी नकारात्मक विचार रहे थे, पर उन्हें बीते हुए कल से शिक्षा न लेकर आने वाले कल को शिक्षा देने की हठ है और उसको पूर्ण कर लेना चाहती हैं।
पर इन सबके बीच एक प्रसन्नता की बात ये है कि अब मुस्लिम समाज में एक वर्ग तेजी से पनपा है जो अब किसी राजनीतिक पार्टी या राजनीतिज्ञ का वोट बैंक बनकर रहने को अपराध मानने लगा है। उसने आंखें खोलकर देखना आरंभ कर दिया है और अपने आपको भेड़ बकरियों की तरह बेचने वाले ‘शाही इमामों’ या कठमुल्लों की गिरफ्त से बाहर लाकर दिखाने के लिए कमर कस ली है। पढ़ा लिखा विचारशील मुस्लिम युवा वर्ग कई मामलों में बीजेपी को भी पसंद कर रहा है और न केवल पसंद कर रहा है अपितु उसे वोट भी कर रहा है। इसलिए मुस्लिम समाज के लिए अब बहन मायावती को यह सोचना बंद कर देना चाहिए कि वे इस समाज को मूर्ख बनाने में सफल हो जाएंगी। अब हर मुस्लिम वोटर सोचने और समझने का प्रयास कर रहा है। अब वह किसी एक दल की जागीर बनने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि मुस्लिम मतदाता इस समय हर दल के साथ खड़ा है। यदि उसकी यही स्थिति रही तो कुमारी मायावती का सपना निश्चय ही चूर-चूर हो जाएगा। सचमुच समाज को बांटने की राजनीति करने वालों को हाशिये पर धकेलने का समय आ गया है और हमारा मानना है कि इस विषय में प्रदेश का पढ़ा-लिखा विचारशील मुस्लिम मतदाता निश्चय ही सकारात्मक भूमिका निभा सकता है। चोर पासबानों को राजधर्म सिखाना लोकतंत्र में जनता का ही काम होता है, और हमारा मानना है कि प्रदेश की जनता इस बात सोच समझकर निर्णय लेगी और चोर पासबानों को उनका सही स्थान उपलब्ध कराएगी।