ड्रैगन और पाकिस्तान की चाल में कैसे फंसा तालिबान ,?

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Afghanistan तक होगा China के BRI प्रोजेक्ट का विस्तार,

गौतम मोरारका

अब तक तालिबान शासन को किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है लेकिन पाकिस्तान और चीन ने लगातार तालिबान शासन से संवाद बनाये रखा है और उसे करोड़ों डॉलर की मदद भी मुहैया कराई है। हालांकि पाकिस्तान के संबंध तालिबान शासन से पिछले वर्ष काफी बिगड़ गये थे।

पाकिस्तान को दुनिया में आतंकवाद का उत्पादक, प्रश्रयदाता और प्रवक्ता माना जाता है। तालिबान को दुनिया में क्रूरता और महिलाओं पर निर्ममता बरतने के लिए जाना जाता है। चीन को विस्तारवादी नीतियों के चलते दुनिया में अशांति फैलाने और कोरोना जैसे वायरसों का आविष्कार और उसका प्रसार कर तबाही मचाने के लिए जाना जाता है। इसलिए यह खबर काफी विरोधाभासी लगती है कि पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान आतंकवाद का मिलकर मुकाबला करने पर सहमत हुए हैं। हम आपको बता दें कि इन तीनों देशों के विदेश मंत्रियों की इस्लामाबाद में बैठक संपन्न हुई जिसमें कई बड़े निर्णय लिये गये। इन बड़े निर्णयों में सबसे बड़ा निर्णय यह है कि चीन अब अपनी बीआरआई परियोजना का अफगानिस्तान में भी विस्तार करेगा। इसके अलावा तीनों देश विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर भी सहमत हुए हैं।

चीन-पाकिस्तान-अफगानिस्तान त्रिपक्षीय विदेश मंत्रियों की वार्ता में तीनों देशों के विदेश मंत्रियों ने भाग लिया। बयान में कहा गया है, ‘‘तीनों पक्ष त्रिपक्षीय ढांचे के तहत राजनीतिक जुड़ाव, आतंकवाद से निपटने के लिए सहयोग और व्यापार, निवेश और संपर्क (कनेक्टिविटी) बढ़ाने पर सहमत हुए।’’ त्रिपक्षीय वार्ता के बारे में हालांकि कोई विस्तृत विवरण नहीं दिया गया है। हम आपको बता दें कि इस बैठक के लिए अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी को संयुक्त राष्ट्र द्वारा विशेष रूप से पाकिस्तान की यात्रा करने की अनुमति दी गई थी। इस बैठक में भाग लेने के लिए चीनी विदेश मंत्री छिन कांग गोवा में एससीओ की बैठक में भाग लेने के बाद सीधे वहां से इस्लामाबाद पहुँचे थे।

तालिबानी विदेश मंत्री मुत्तकी ने शनिवार की त्रिपक्षीय बैठक के बाद रविवार को पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो-जरदारी से मुलाकात की और प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की। शांति और सुरक्षा के मद्देनजर उन्होंने आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए समन्वय बढ़ाने और द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। मुत्तकी ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर से भी मुलाकात की और दोनों ने आपसी हित के मुद्दों पर चर्चा की।

इसके अलावा, पाकिस्तानी मीडिया में इस आशय की भी खबरें हैं कि इस त्रिपक्षीय वार्ता के दौरान तालिबान चीन और पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विस्तार करने के लिए सहमत हो गया है। दरअसल तालिबान भी आर्थिक संकट से जूझ रहा है इसलिए उसे उम्मीद है कि अफगानिस्तान में बुनियादी ढांचे में आने वाला चीनी निवेश उसकी दिक्कतें दूर कर देगा इसलिए चीन और पाकिस्तान की योजना को हरी झंडी दे दी गयी है। इसके तहत अफगानिस्तान के शासक तालिबान के हाथों अरबों डॉलर का निवेश लग गया है। हम आपको बता दें कि चीन अपनी बीआरआई परियोजना को पाकिस्तान से आगे ईरान और तुर्की तक ले जाना चाहता है।

बताया जा रहा है कि इस त्रिपक्षीय वार्ता के दौरान चीन और पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और 60 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर को अफगानिस्तान तक ले जाने के लिए साथ मिलकर काम करने का संकल्प भी लिया। इसके अलावा, चीन और पाकिस्तान की द्विपक्षीय मुलाकात के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने जो संयुक्त बयान जारी किया है उसमें भी कहा गया है कि दोनों पक्ष अफगान लोगों के लिए अपनी मानवीय और आर्थिक सहायता जारी रखने और अफगानिस्तान में सीपीईसी के विस्तार पर सहमत हुए हैं। यही नहीं, अफगानिस्तान के विदेश मंत्री के उप प्रवक्ता हाफिज जिया अहमद ने भी इस बात की पुष्टि की है कि चीन और पाकिस्तान ने एक दशक पहले शुरू हुई परियोजना BRI के तहत बनाये जा रहे CPEC प्रोजेक्ट को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने को अपनी मंजूरी दे दी है।

हम आपको यह भी बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान राज आने के बाद अफगानिस्तान की विदेशों में संपत्तियों को फ्रीज कर दिया था। पाकिस्तान और चीन बार-बार यह मांग दोहरा रहे हैं कि अफगानिस्तान की संपत्तियों को अनफ्रीज किया जाये। अब तक तालिबान शासन को किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है लेकिन पाकिस्तान और चीन ने लगातार तालिबान शासन से संवाद बनाये रखा है और उसे करोड़ों डॉलर की मदद भी मुहैया कराई है। हालांकि पाकिस्तान के संबंध तालिबान शासन से पिछले वर्ष काफी बिगड़ गये थे लेकिन इन संबंधों में सुधार लाने के लिए चीन ने काफी प्रयास किये हैं क्योंकि अफगानिस्तान के लिए उसका अपना जो लक्ष्य है वह बिना पाकिस्तान की मदद के पूरा नहीं हो सकता। इसलिए इस त्रिपक्षीय बैठक का आयोजन भी पाकिस्तान में ही किया गया। हम आपको यह भी बता दें कि तीनों देशों के विदेश मंत्रियों की पिछली बैठक जून 2021 में चीन में हुई थी जिसके कुछ सप्ताह बाद ही तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था।

जहां तक अफगानिस्तान संबंधी भारत की रणनीति की बात है तो आपको बता दें कि भारत भी अपने इस पड़ोसी देश की हर तरह से मदद जारी रखे है। साथ ही भारत ने इस महीने की शुरुआत में अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस द्वारा दोहा में बुलाई गई बैठक में भी भाग लिया था। इस बैठक में विभिन्न देशों के विशेष दूतों ने भाग लिया था। इस बैठक का उद्देश्य तालिबान के साथ संवाद को लेकर एक आम समझ विकसित करना था। बैठक में चीन, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, ईरान, जापान, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, नॉर्वे, पाकिस्तान, कतर, रूस, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन, अमेरिका, उज्बेकिस्तान, यूरोपीय संघ और इस्लामी सहयोग संगठनों ने भाग लिया था।

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