Categories
धर्म-अध्यात्म हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

स्वामी सत्यपति जी को समाधि अवस्था में हुई कुछ अनुभूतियां

ऋषि भक्त स्वामी सत्यपति जी महाराज ऋषि दयानन्द जी की वैदिक विचारधारा और पातंजल योग दर्शन के सफल साधक हैं। आपने दर्शन योग महाविद्यालय और वानप्रस्थ साधक आश्रम की रोजड़, गुजरात में स्थापना की है और अपने अनेक शिष्यों को दर्शनों का आचार्य बनाया है। दर्शन के अध्ययन सहित आपने उन्हें योगाभ्यास भी कराया है। आपके सभी शिष्य योग साधक हैं जिनमें साधना की दृष्टि से स्वामी ब्रह्मविदानन्द जी का महत्वपूर्ण स्थान है। स्वामी जी ने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है जिसमें एक प्रमुख ग्रन्थ ‘बृहती ब्रह्ममेधा’ है। योग व ध्यान विषयक आपका एक ग्रन्थ योगदर्शनम् है जिसमें आपने योग सूत्रों की व्याख्यायें की हैं। आपके सभी ग्रन्थ पठनीय एवं उपयोगी हैं। विगत वर्ष फरवरी, 2016 में हमें वानप्रस्थ साधक आश्रम रोजड़ में स्वामी जी के दर्शन व वार्तालाप का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। तब हम वहां से उनका ‘योगदर्शनम’ ग्रन्थ लाये थे। आज इसी ग्रन्थ से हम स्वामी जी की समाधि की अवस्था में हुई कुछ अनुभूतियों का उल्लेख कर रहे हैं जिससे पाठक लाभान्वित होंगे। स्वामी सत्यपति जी की समाधि अवस्था की अनुभूतियां निम्न हैं:
(1) जब समाधि प्राप्त होती है तब हमारे शरीर पर कुछ प्रभाव होते हैं। उन प्रभावों में से एक प्रभाव यह है कि साधक के मस्तक के मध्य भाग में एक विशेष दबाव अनुभव में आता है, मानों कि कोई वस्तु मस्तक में चिपका दी गई हो। 
(2)  दूसरा प्रभाव यह अनुभव में आता है कि समाधि अवस्था में साधक में शीत व उष्णता को सहने का विशेष सामथ्र्य उत्पन्न हो जाता है। उदाहरण के लिये साधक को समाधि की स्थिति से पूर्व यदि शीत से शरीर की रक्षा के लिये एक कुर्ता व कम्बल धारण करने पड़े थे तो उसी साधक को समाधि की स्थिति में अब इन शरीर रक्षक वस्त्रों के न धारण करने पर भी शीत बाधित नहीं करता है। परन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं है कि साधक को बर्फ से ढकने पर भी उसे शीत बाधित नहीं करेगा। एक सीमा तक ही सहनशक्ति में वृद्धि माननी चाहिये। 
(3)   इसी प्रकार से रुग्ण अवस्था में भी एक सीमा तक साधक को रोग बाधित नहीं करता। 
(4)   समाधि के प्राप्त होने पर साधक को यह मानसिक अनुभूति होती है कि मैं समस्त दु:खों, क्लेशों व बन्धनों से छूट गया हूं और संसार के अन्य समस्त प्राणी बन्धनों, क्लेशों से ग्रस्त हैं।
(5)  बौद्धिक स्तर पर वह आकाशवत् अवस्था का अनुभव करता है अर्थात् उसे संसार की प्रलयवत् अवस्था दिखाई देती है। उस स्थिति में वह मृत्यु आदि समस्त भयों से मुक्त हो जाता है। 
(6)   इस अवस्था में संसार के समस्त पदार्थों का स्वामी ईश्वर को ही मानता है और अपने तथा समस्त प्राणियों के बने हुवे स्वस्वामी सम्बन्ध को समाप्त कर देता है। यह अवस्था उसे इतनी प्रिय और सुखप्रद लगती है कि संसार के समस्त सुखों को वह दु:खरुप देखता है। इस स्थिति व सुख को वह छोडऩा नहीं चाहता। इस स्थिति को छोडक़र के वह रात्रि में सोना नहीं चाहता परन्तु स्वास्थ्य रक्षा हेतु उसे रात्रि में सोना पड़ता है।
(7)  ईश्वरप्रणिधान से युक्त इस बौद्धिक स्तर पर सम्पादित की गई प्रलयावस्था में सम्प्रज्ञात समाधि का प्रारम्भ हो जाता है। इस अवस्था में साधक को देहादि से पृथक अपने स्वरूप की अनुभूति होनी प्रारम्भ हो जाती है। सम्प्रज्ञात समाधि का जैसे-जैसे उत्कर्ष होता चला जाता है वैसे-वैसे शरीर, इन्द्रियों, मनादि उपकरणों से पृथक, अपने स्वरूप की अनुभूति होनी प्रारम्भ हो जाती है। धीरे धीरे अपने आत्मस्वरूप की अनुभूति में भी स्पष्टता बढ़ती चली जाती है अर्थात् साधक का अपने स्वरूप विषयक ज्ञान प्रवृद्धि को प्राप्त होता चला जाता है। साधक सम्प्रज्ञात समाधि की अन्तिम उत्कर्षता को प्राप्त करके भी पूर्णरूपेण सन्तुष्ट नहीं हो पाता है। क्योंकि अभी उसकी ईश्वर साक्षात्कार की अभिलाषा पूर्ण नहीं हो पाई है। 
(8)  ईश्वर-साक्षात्कार के लिए वह परमात्मा, ओम् आदि शब्दों को लेकर बार बार ईश्वर नाम को जपता हुआ ईश्वर-प्रणिधान की ऊंची स्थिति को बना लेता है। जिस प्रकार से एक छोटा बालक अपनी माता के भीड़ में खो जाने पर उसकी प्राप्ति के लिये अत्यन्त लालायित होता है, उस समय उस बालक को अपनी माता के अतिरिक्त कुछ भी अच्छा नहीं लगता। वह बार-बार माताजी, माताजी ……. ऐसा बोलता है। ऐसी स्थिति में ईश्वर उसको सुपात्र मानकर अपनी शरण में ले लेता है और उसको अपना विशिष्ट ज्ञान देकर अपने स्वरूप का साक्षात्कार करवा देता है। इस ईश्वर-साक्षात्कार की अवस्था में साधक को ईश्वर के विशिष्ट नित्य आनन्द तथा विशिष्ट ज्ञान की अनुभूति हाती है। इस अवस्था में सर्वव्यापक ईश्वर का साक्षात्कार ऐसे ही होता है जैसे कि लोहे के गोले में अग्नि सर्वव्यापक दिखाई देती है। 
(9)   साधक सब जीवों तथा लोक लोकान्तरों को ईश्वर में व्याप्य तथा ईश्वर को इनमें व्यापक प्रत्यक्षरूप में अनुभव करता है। और साधक यह अनुभव करता है कि मैंने जो पाना था सो पा लिया और जो जानना था वह जान लिया। अब इससे अतिरिक्त कुछ और पाने योग्य और जानने योग्य शेष नहीं रहा रहा। 
स्वामी सत्यपति जी की उपुर्यक्त अनुभूतियों के बाद हम ऋषि दयानन्द के दुर्लभ अनुभवों से युक्त ईश्वर साक्षात्कार विषयक पंक्तियां भी उनके ग्रन्थ ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ से उद्धृत कर रहे हैं। वह लिखते हैं कि ‘जिस समय सब साधनों से परमेश्वर की उपासना करके उसमें प्रवेश किया चाहें, उस समय इस रीति से करें कि कण्ठ के नीचे, दोनों स्तनों के बीच में, और उदर के ऊपर जो हृदय देश है, जिसको ब्रह्मपुर अर्थात् परमेश्वर का नगर कहते हैं, उसके बीच में जो गर्त है, उसमें कमल के आकार वेश्म अर्थात् अवकाशरूप एक स्थान है, और उसके बीच में जो सर्वशक्तिमान् परमात्मा बाहर-भीतर एकरस होकर भर रहा है, वह आनन्दरूप परमेश्वर उसी प्रकाशित स्थान के बीच में खोज करने से मिल जाता है।
दूसरा उसके मिलने का कोई उत्तम स्थान वा मार्ग नहीं है।’ ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका का समस्त उपासना विषयक अध्याय सभी को अवश्य पढऩा चाहिये। इसी में एक स्थान पर ऋषि दयानन्द जी ने लिखा है कि ईश्वर के अनुग्रह का फल परिपक्व शुद्ध परम आनन्द से भरा हुआ और मोक्षसुख को प्राप्त करनेवाला है। उपासनावृति का महत्व बताते हुए ऋषि लिखते हैं कि यह उपासनावृत्ति सब क्लेशों को नाश करनेवाली और सब शान्ति आदि गुणों से पूर्ण है। इसी प्रकरण में ऋषि ने उपासनावृत्ति के अभ्यास के द्वारा आत्मा को परमात्मा से युक्त कर परमात्मा को अपने आत्मा में प्रकाशित करने की बात भी कहते हैं।  
स्वामी सत्यपति जी ने समाधि के अनुभवों को लेखबद्ध कर साधकों पर महान उपकार किया है। स्वामी दयानन्द जी के भी हमने कुछ वाक्य प्रस्तुत किये हैं। यह भी उनके आपने ज्ञान व अनुभवों पर ही आधारित हैं।  आश्चर्य है कि उनके अपने ही अनुयायी इनसे कोई विशेष लाभ उठाने का प्रयत्न नहीं करते। हम यह अनुभव करते हैं कि योग व उपासना के क्षेत्र में जो साधक जितना पुरुषार्थ करता है उसे उसके अनुरुप ही सफलता प्राप्त होती है। योग का अभ्यास वही व्यक्ति कर सकता है जो स्वावलम्बी होने के साथ सभी प्रकार के क्लेशों से मुक्त हो। योगाभ्यास भी साधकों को क्लेशों से मुक्त करता है। हम आशा करते हैं कि पाठक समाधि विषयक अनुभवों सहित ऋषि दयानन्द के वाक्यों से भी लाभ प्राप्त करेंगे।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version