ओ३म्
मौलाना कैसे बने आर्य प्रचारक
पंडित भोजदत्त आर्य मुसाफिर आगरा में पंडित लेखराम जी की स्मृति में आर्य मुसाफिर उपदेशक विद्यालय चलाते थे एवं ‘आर्य मुसाफ़िर’ के नाम से साप्ताहिक पत्र का संपादन भी करते थे। इस्लाम की मान्यताओं की तर्क पूर्ण समीक्षा इस पत्र में छपती रहती थी जिसे पढ़कर अनेक मुसलमान भाई बिना विचार आक्रोशित हो जाते थे। मौलाना गुलाम हैदर भी उत्तेजित होने वालों में से एक थे।
एक दिन उनके मन में विचार आया कि पंडित लेखराम की ही भांति इस्लाम का आलोचक होने के कारण पंडित भोजदत्त भी ‘वाजिबुल क़त्ल’ (मारे जाने योग्य) है। उन्होंने स्वयं पंडित जी को क़त्ल करने का मनसूबा बनाया और पंडित भोजदत्त के निकट गये। परन्तु जैसे ही पंडित भोजदत्त की दिव्य मूर्ति और भव्य व्यक्तित्व के दर्शन किए तो प्रभावित होकर उनसे इस्लाम सम्बन्धी अपनी विभिन्न शंकाओं का समाधान पूछा।
पंडित जी ने मौलाना जी की सभी शंकाओं का समाधान कर दिया और उन्हें अपने पास रहने का निमंत्रण दिया। पंडित जी की निर्भीकता, धर्माचरण से प्रभावित होकर गुलाम हैदर का हृदय परिवर्तन हो गया।
उन्होंने पंडित भोजदत्त जी को वह छुरा दिखाया, जिससे वे उनका वध करना चाहते थे। सम्पूर्ण भेद प्रकट हो जाने पर भी पंडित भोजदत्त की स्थितप्रज्ञता में कोई अंतर नहीं आया। उनकी आकृति पूर्व की भांति शांत, सौम्य तथा तेजस्विता पूर्ण बनी रही। मौलाना इस्लाम त्याग कर वैदिकधर्मी बन गये एवं अपना नाम पंडित सत्यदेव रख लिया। यह आर्यसमाज की बड़ी उपलब्धि थी।
इस्लाम के मर्मज्ञ विद्वान पंडित देवप्रकाश जी (जिनका जन्म भी इस्लामिक परिवार में हुआ था) ने मौलाना के पंडित सत्यदेव बनने पर एक नज्म लिखी जो ‘आर्य मुसाफिर’ में प्रकाशित हुई
“तुझे वैदिक धर्म में ए सज्जन आना मुबारिक हो
सच्चाई का जलवा ये दिखलाना मुबारिक हो।
अविद्या की घटनाओं और खिज़ा के तुन्द झोंकों से
निकल कर गुलशने बहदत में आजाना मुबारिक हो”
मौलाना हैदर ने पंडित सत्यदेव बनने के बाद अनेक पुस्तकें वैदिक धर्म प्रचारार्थ लिखी जैसे
1. अर्शसवार (मौलाना मुहम्मद अली ने अर्श की व्याख्या पर एक पुस्तक लिखी थी यह उसका प्रतिउत्तर था)
2. क़ुरान में परिवर्तन (मौलाना मुहम्मद अली की पुस्तक जमा क़ुरान का उत्तर था)
3. अफशाए राज
4. नाराए हैदरी
5. क़ुरान में तहरीफ़
6. क़ुरान में इख्तलाफात
7. इस्लाम का परिचय
8. इस्लामी धर्मानुसार सृष्टि उत्पत्ति
9. रहमत मसीह महाशय की वेदों की तादात नामक पुस्तक का प्रकाशन एवं उत्तराद्ध लेखन
10. शास्त्र परिचय
11. वेद तथा ब्राह्मण ग्रंथों में ओम। आदि
पंडित सत्यदेव आजीवन वैदिक धर्म का प्रचार करते रहे।
स्वामी दयानंद के सन्देश “सत्य को ग्रहण करने एवं असत्य के त्याग के लिए सर्वदा उद्यत रहना चाहिए ” को पंडित सत्यदेव ने अपने जीवन में चरित्रार्थ किया।
(साभार- आर्य लेखक कोष- डॉ भवानी लाल भारतीय, पृष्ठ संख्या 308-309)
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