प्रभु-प्रदत्त विभूति अर्थात् विलक्षणता के संदर्भ में:-
"शेर"
तौफीक है ख़ुदा की,
ये मुनव्वर जो तेरा।
नादानगी से कहता,
ये मुनव्वर है मेरा॥
है जुगनू जैसा डेरा ,
तू सिर झुका कर कह दे,
जो भी दिया है तेरा॥
भाव यह है किं प्रभु-प्रदत्त विभूतियाँ अर्थात- विलक्षणताएँ परम-पिता परमात्मा की दिव्य दौलत हैं। भगवान कृष्ण गीता में अर्जुन को उपदेश देते कहते हैं-” हे पार्थ! जो मेरे जैसे चित्त वाला होता है, मेरा यजन करता है, मेरा भजन करता है, और मुझे नमन करता है, उन्हें मैं सात विभूतियों से अलंकृत करता हूँ। ये सात विभूतियाँ इस प्रकार हैं – श्री अर्थात् जंगम् और स्थावर सम्पत्ति, कीर्ति अर्थात् यश, प्रतिष्ठा, वाक अर्थात- वाणी का परिष्कृत होना वाणी का बहु-आयामी सौन्दर्य यशस्वी, तेजस्वी और वर्चस्वी होना, प्रभावशील होना, वाणी वाणी का पाण्डित्य झलके, उससे विद्वत्ता और विनम्रता का रस टपके। ऐसी वाणी ‘वाक ‘कहलाती है । धृति अर्थात् संकट के समय भी धर्मवान होना यानि कि मनुष्य को अपने सिद्धान्त मान्यता आदि पर अडिग रहना तथा उनसे विचलित न होने देने की शक्ति का नाम धृति है। स्मृति, अर्थात् पुरानी सुनी समझी बात की पुनः याद आने का नाम स्मृति है,मेधा- अर्थात् बुद्धि की जो स्थायी रूप से धारण करने की शक्ति है, उसे मेधा कहते हैं, क्षमा-अर्थात् दूसरा कोई बिना कारण अपराध कर दे तो अपने में दण्ड देने की शक्ति होने पर भी उसे दण्ड न देना और उसे लोक-परलोक में कहीं भी उस अपराध का दण्ड न मिले इस तरह का भाव रखते हुए उसे भाफ कर देने का नाम क्षमा है।
ध्यान रहे ! कीर्ति, श्री और वाक ये तीन प्राणियों के बाहर प्रकट होने वाली विलक्षणताएँ हैं। तथा स्मृति, धृति, मेधा और क्षमा ये चार प्राणियों के भीतर प्रकट होने वाली विलक्षणताएँ हैं। इन सातों विलक्षणताओं को भगवान ने अपनी विभूति बताया है। उपरोक्त ‘शेर’ में इन्हें मुनव्वर शब्द से उद्धृत किया गया है। किसी व्यक्ति में ये गुण दिखायी दें, तो उस व्यक्ति की विलक्षणता न मान कर भगवान की ही विशेषता माननी चाहिए। इन गुणों अपना मान लेने से अभिमान पैदा होता है, जिससे पतन हो जाता क्योंकि अभिमान सम्पूर्ण आसुरी सम्पत्ति का जनक है। अत: याद रखो, मनुष्य को जो भी विभूतियाँ मिली हैं उन पर कभी अभिभान न करें बल्कि परम पिता परमात्मा के प्रति कृतज्ञ रहे विनम्र रहे अन्यथा प्रभु इन्हें इन्हें वापिस भी छीन लेते हैं।
मुनव्वर – दीप्ति, चमक, यश, प्रतिष्ठा, गौरव, ज्योति, शौहरत,आभा, कान्ति।
- प्रोफेसर विजेन्द्र सिंह आर्य
मुख्य संरक्षक “उगता भारत” समाचार पत्र