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भारतीय संस्कृति

देश के युवा वर्ग से एक सन्यासी की अपील

देश के युवा वर्ग से एक सन्यासी की अपील

ओ३म्

-भारत के वीर-वीरांगनाओं की जय

कृण्वन्तो विश्वमार्यम्

आओ बनायें आयविर्त

आदरणीय राष्ट्रवादी देशभक्त, धर्माधिकारी, विद्वत्त वर्ग एवं आर्य बन्धुओं से अपील

बन्धुओं ! हमारे समृद्ध आर्यवर्त (भारत) के धन, वैभव को अक्रान्ता यवनों व अंग्रेजों ने लूटकर हमारे ही पूर्वज भाईयों का इस्लामीकरण व ईसाईकरण किया और आज भी किया जा रहा है। आर्यवर्तीय वैदिक संस्कृति का विनाश करके हिन्दी, हिन्दु, हिन्दुस्तान और बाँटो, राज करो के सूत्र द्वारा इण्डिया, इंग्लिश संस्कृति से अपमानित किया। ऐसे समय में भारत भाग्य विधाता, युग-प्रवर्तक, विचार क्रान्ति के जनक महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की प्रेरणा से प्रेरित देशभक्त आर्यों के बलिदान से प्राप्त आजादी के बाद भी सत्य सनातन वैदिक धर्म संस्कृति तो विदेशी भाषा, शिक्षा से अपमानित है और राष्ट्र के कुछ कर्णधार वोटवादी नेता राष्ट्रीय शिक्षा, संस्कृति, जनसंख्या वृद्धि व बेरोजगारी की अनदेखी करके धर्मस्थल, क्षेत्र, भाषा, जाति, सम्प्रदाय, आरक्षण, अल्पसंख्यकवाद आदि, रूढ़िवादिता के भेदभाव को बढ़ावा देकर और उद्योग एवं शिक्षा का व्यवसायीकरण करके वोटवादी स्वार्थी सत्तासुख भोग रहे हैं।

भारत की प्रजा करे पुकार ।
ब्यवस्था बदलो अबकी बार ॥
फूट डाल कर वोट ना माँगो
काम दीजिए भीख ना बाँटो ॥

1- राष्ट्रहित में जातिवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद, आरक्षणवाद, भाषावाद, अल्पसंख्यकवाद, पूँजीवाद से उत्पन्न भेदभाव को दूर करके समान नागरिक व्यवस्था को ही प्राथमिकता दी जाय। जन्म से मरण तक शिक्षा व रोजगार सभी स्थानों से जाति व सम्प्रदाय का कॉलम समाप्त किये जायें।

2- शिक्षा का राष्ट्रीयकरण करके एक ही पाठ्यक्रम, एक ही देवनागरी लिपि को प्रान्तीय भाषाओं में प्रकाशित कराकर लड़कियों को शिक्षिकाओं, लड़कों को शिक्षकों द्वारा अलग-अलग विद्यालयों में अध्ययन-अध्यापन कराया जाये।

संस्कृत को अनिवार्य विषय एवम् राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाये। अन्य देशस्थ अंग्रेजी आदि भाषा को स्वैच्छिक रूप से पढ़ाया जाये। धर्म के नाम पर सम्प्रदाय परिवर्तन को प्रतिबन्धित किया जाये।

जनसंख्या नियन्त्रण करके दो बच्चों का अधिकार एवं योग्यतानुसार रोजगार प्रबन्ध किया जाये । शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा, क्रय-विक्रय एवं न्याय की समान, सरल व्यवस्था एवं वृद्धों को समान एवं करदाता वृद्धों को विशेष सेवा भत्ता दिया जाये।

आयकर धारा 80G, कर प्रणाली, चिकित्सा, पेंशन, सब्सिडी एवं अनेक योजनाओं पर हो रहे अर्थ (धन) व्यय में अनर्थ (चोरी) को रोका जाये। ग्राम पंचायत न्याय सभा द्वारा न्यायिक व्यवस्था प्रदान करायी जाये। राष्ट्र में GST व IT समानता के आधार पर क्रय-विक्रय व्यवस्था समान की जाये। एक परिवार से मात्र एक ही विधायक या सांसद हो जिसके शिक्षा, आयु, चरित्र और सुधार योजना – पत्र को मतदाताओं के बीच वितरित कराया जाये। प्रत्याशी मात्र टी.वी. फेसबुक, समाचार-पत्रों आदि पर स्वयं प्रचार करे। कार्यकाल के बाद वेतन, विशेष पेंशन, अतिरिक्त सुविधाएँ बन्द की जाये।

संविधान, विधेयक नागरिक आचार संहिता आधार पर बनें, चर्चा पर पार्टी व्हिप जारी न किया जाये। यह भी सामंतवाद है। सांसद व विधायक स्वैच्छिक मतदान करें। 10- सम्पूर्ण राष्ट्र में मांसाहार, शराब, नशीले पदार्थो को प्रतिबन्धित किया जाये।

बन्धुओं!

संगठन सुधार सूत्र

मानवीय विकास हेतु सांसारिक व्यवस्थाओं में प्रभु प्रदत्त मानव ही क्या सभी प्राणियों को वायु, जल, अग्नि, चन्द्र आदि भौतिक पदार्थों का लाभ एक समान है। क्योंकि प्राणियों में आत्मिक सत्य, न्याय, दया, अहिंसा, प्रेम, ज्ञान का प्रभु प्रदत्त बोध मानवमात्र में स्नेह, सेवा भाव की मान्यता भी एक समान है। अतः आत्मिक धर्म पालन से ही कर्मों की समानता होगी। जिससे मानव हित में परिणाम भी एक समान ही होंगे। विरोध का कारण महर्षि दयानन्द जी के शब्दों में, “मनुष्य का आत्मा सत्यासत्य का जानने वाला है. तथापि अपने प्रयोजन की सिद्धि, हठ, दुराग्रह और अविद्यादि दोषों से सत्य को छोड़ असत्य में झुक जाता है।” आवश्यकता है ऐसे पक्षपाती, स्वार्थी समाज राष्ट्र विरोधियों को शासक, संविधान अनुसार सुधार करें।

विद्वानों का वचन है- “दण्ड: शास्ति प्रजा।” राजा का दण्ड ही शासक है।

मानव निर्माण हेतु वैदिक धर्म संस्कृति का मूलाधार वेदानुकूल शिक्षा और चरित्र निर्माण है। शिक्षा से स्वच्छ विचार, विचारों से पवित्र भावना, भावना से परोपकारी कर्म, परस्पर परोपकार भावना और कर्म ही समाज संगठन का आधार है- अतः स्वच्छ विचार एकता से संगठित प्रजा ही शासक है। विचार और संगठनात्मक कार्य परम्पराओं का पालन करना प्रजा का कर्तव्य है। परम्पराओं की रक्षा करना, कराना राजा का कर्तव्य और अधिकार भी है। क्योंकि राष्ट्र की भावी सन्तति व संस्कृति की रक्षा से अखण्ड आर्यवर्त राष्ट्र का निर्माण सम्भव है।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी राष्ट्र निर्माण क्रान्ति के बदले कुछ स्वार्थी सत्ताधारियों ने भाई-भाई के रूप में नागरिकों के परस्पर प्रेम को जाति, सम्प्रदाय, भाषा, अल्पसंख्यक्कवाद और क्षेत्रवादी रूढ़ियों में बाँट कर विदेशियों की गुलामी को स्थायी कर रहे हैं। ऐसे में प्रजा हितैषी संस्कृति रक्षकों का कर्तव्य है कि प्रजा की विचार एकता के लिए नगर व ग्रामों में सुधार समितियाँ बनाकर शिक्षा, श्रमदान, चरित्र सुधार कार्यों को प्रारम्भ करें। भ्रष्टाचारी शासकों व पूँजीवादी व्यवस्था में सुधार करावें। समिति में गाँव के प्रधान, पूर्व प्रधान, पराजित प्रधान, बी.डी.सी., सभासद, प्रबुद्ध माननीय नागरिकों और सभी कार्मिक वर्गों से चुने प्रतिनिधि प्रजा के सहयोग से निम्न सुधार कार्यो को करें / करावें।

1- 2- 3- नगर, गाँव की गलियों का नामकरण धार्मिक, ऐतिहासिक, शहीद पुरुषों के नाम से करें। नगर, गाँव में खेत, गृह बँटवारे आदि सामाजिक विवादों का न्याय समिति करावे । आवश्यकतानुसार मार्गों की सफाई, धार्मिक एवं विद्यालय शिक्षा शिविर, असहाय गरीबों को सहयोग आदि का श्रमदान करें / करावें।

4- नगर, गाँव में खेल मैदान व खेल उपकरणों का प्रबन्ध और खेल प्रतियोगिता भी करावें।

5- 6- नगर, गाँव में पुस्तकालय व्यवस्था व मेघावी छात्र-छात्राओं को सम्मानित करें। गाँव में प्राथमिक चिकित्सा, पशु चिकित्सा व आवारा पशुओं का प्रबन्ध करावें ।

7 – शराब, भिक्षावृत्ति, दहेजप्रथा को प्रतिबन्धित करें / करावें । चुनावी भ्रष्टाचार को रोकें व पूर्व पृष्ठ पर लिखित राष्ट्रीय सुधार योजनाओं का प्रचार करें / करावें।

8- मित्रों! सर्वत्र सुधार के कार्य करते हुए जनपदीय प्रान्तीय और राष्ट्रीय सुधार हेतु सभी समितियाँ संगठित होकर सत्ताधारी शासकों को भी ज्ञापन आदि देकर सुधार क्रान्ति कार्य करें।

बन्धुओं! सर्वहित संगठित आवाज ही सुधार की शुरुआत है।

• परिव्राजक स्वामी ओमानन्द – मो०- 992720301

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