सिखों के तीसरे गुरु अमर दासजी के आगे नतमस्तक हुआ था मुगल बादशाह अकबर
अनन्या मिश्रा
गुरु अमर दास जी सिखों के तीसरे गुरु थे। उनका जन्म अमृतसर के ‘बासर के’ गांव में 5 मई 1479 को हुआ था। इनके पिता का नाम तेजभान और माता का नाम लखमीजी था। बता दें कि गुरु अमर दास आध्यात्मिक चिंतन वाले व्यक्ति थे। दिन भर खेती और व्यापार आदि के कार्यों में व्यस्त रहने के बाद भी वह लगातार हरि नाम का जाप करते रहते थे। इसी कारण लोग उनको भक्त अमर दास जी कहकर पुकारते थे।
कहा जाता है कि अमर दास जी ने अपनी पुत्रवधु से गुरु नानक देवजी द्वारा रचित एक ‘शबद’ सुना। उस शबद को सुनकर वह इतना ज्यादा प्रभावित हो गए कि गुरु अंगद देवजी का पता पूछकर वह फौरन गुरु चरणों में पहुंच गए। स्वयं से 25 साल छोटे और रिश्ते में समधी लगने वाले सिखों के दूसरे गुरु अंगद देवजी को उन्होंने अपना गुरु बना लिया। इसके बाद वह लगातार 11 सालों तक पूरी निष्ठाभाव से उनकी सेवा करते रहे।
समाज में फैली थीं कई बुराइयां
सिखों के दूसरे गुरु अंगद देवजी अमर दास जी की सेवा और समर्पण से बहुत अधिक प्रसन्न हुए। जिसके बाद गुरु अंगद देवजी ने उनको सभी प्रकार से योग्य जान गुरु अमर दास जी को ‘गुरु गद्दी’ सौंप दी। मध्यकालीन भारतीय समाज ‘सामंतवादी समाज’ होने के चलते तमाम सामाजिक बुराइयों से ग्रस्त था। उस दौरान सती प्रथा, जाति-प्रथा, ऊंच-नीच, कन्या हत्या जैसी तमाम बुराइयां समाज में फैली हुई थीं। समाज के स्वस्थ विकास में यह बुराइयां अवरोध बनकर खड़ी थीं।
सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ चलाया आंदोलन
ऐसे कठिन समय में सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ गुरु अमर दास जी ने इन बड़ा प्रभावशाली आंदोलन चलाया। उन्होंने समाज में फैली तमाम कुरीतियों को मिटाने के लिए समाज को सही मार्ग दिखाया। ऊंच-नीच और जाति प्रथा को खत्म करने के लिए गुरु अमर दास जी ने लंगर प्रथा को और सशक्त करने का काम किया। बता दें कि उस दौरान जाति के हिसाब से भोजन की पंगते लगा करती थीं। लेकन वह गुरु अमर दास जी ही थे, जिन्होंने सभी के लिए एक ही पंगत में बैठकर लंगर छकना अनिवार्य किया था। गुरु अमर दास के समय मुगल बादशाह अकबर भी उनसे बहुत प्रभावित था।
मुगल बादशह अकबर भी हुआ नतमस्तक
अकबर ने भी लंगर के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। जिसके कारण उसके मन में सिख धर्म को जानने की इच्छा प्रबल थीऔर वह गुरु-दर्शन के लिए गोइंदवाल साहिब पहुंचा। कहा जाता है कि लंगर के भोजन में चाहे राजा हो या साधारण मनुष्य सभी के साथ एक समान व्यवहार किया जाता है। उस दौरान मुगल बादशाह अकबर ने भी वहां आकर इन नियमों का पालन किया क्योंकि वो इस तरह की व्यवस्था देख कर हतप्रभ था। बता दें कि अकबर के समय मुगलों और सिखों के बीच कोई संघर्ष नहीं हुआ।
क्रांतिकारी कार्य
इसके बाद छुआछूत की कुप्रथा को समाप्त करने के लिए गुरु अमर दास ने गोइंदवाल साहिब में एक ‘सांझी बावली’ का निर्माण कराया था। इस सांझी बावली में कोई भी व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के इसके जल का इस्तेमाल कर सकता था। वैष्णव मत में विश्वास रखने वाले अमर दास को हरिद्वार की यात्रा काफी पसंद की थी। उन्होंने करीब 20 बार हरिद्वार की यात्रा की थी। इसके अलावा उन्होंने एक और क्रांतिकारी कार्य किया था। उन्होंने सती प्रथा जैसी कुरीतियों को समाज से मिटाने के लिए उसके विरुद्ध जबरदस्त प्रचार किया। जिससे कि महिलाएं सती प्रथा की कुरीति से मुक्ति पा सकें।
दिव्य ज्योति में हुए विलीन
सती-प्रथा के विरोध में आवाज उठाने वाले गुरु अमर दास जी पहले समाज-सुधारक थे। उन्होंने गुरुजी द्वारा रचित ‘वार सूही’ में सती-प्रथा का जोरदार खंडन किया भी गया है। बता दें कि 1 सितंबर 1574 में गुरु अमर दासजी दिव्य ज्योति में विलीन हो गए। सिखों के तीसरे गुरु अमर दास जी का समाज से भेदभाव खत्म करने के प्रयासों में बड़ा योगदान है।