बी.एम.सी. चुनाव परिणामों से पूर्व शिवसेना काफी उत्साहित थी। शिवसेना का आत्मविश्वास बताा रहा था कि नोटबंदी से परेशान हुए लोग मोदी सरकार को दण्ड अवश्य देंगे और वह दण्ड शिवसेना के स्वयं के लिए पुरस्कार बन जाएगा, जिससे वह बी.एम.सी. में अपना बहुमत प्राप्त करने में सफल होगी। इसी भ्रांति के कारण शिवसेना ने भाजपा से अपना गठबंधन समाप्त कर दिया, और दोनों पार्टियों ने इन चुनावों में अकेले अपने-अपने बूते पर मैदान में उतरने का निर्णय लिया। भाजपा ने बी.एम.सी. की कुल 227 सीटों में से 32 सीटें छोडक़र शेष पर अपने प्रत्याशी उतारे। इससे लगता है कि भाजपा शिवसेना से गठबंधन टूटने पर कुछ शंकाओं से घिरी हुई थी, अन्यथा यदि वह सारी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारती तो उसके पासबी.एम.सी. चुनाव परिणामों और भी अधिक सीटें होनी अनिवार्य थीं।
भले ही किसी को बीएमसी में बहुमत नहीं मिला है, और भाजपा व शिवसेना में से कोई भी पार्टी सत्ता स्थापित करने की स्थिति में नहीं है पर ये परिणाम यदि आप ध्यान से देखें तो देश के लिए अत्यंत शुभ हैं। भाजपा या शिवसेना में से कोई जीते या नहीं जीते पर ये देश जीता है, देश की आत्मा जीती है हिंदुत्व जीता है, चूँकि दोनों ही पार्टियां, चाहे आप इनके समर्थक हों या नहीं शिवसेना और बीजेपी, कम से कम हिन्दू विरोधी तो नहीं हैं, कम से कम अलगाववादियों आतंकियों की समर्थक तो नहीं हैं, कम से कम गौमांस की समर्थक तो नहीं हंै, पाकिस्तान की समर्थक नहीं हैं, चुनावी नतीजे चाहे जो भी हो, पर देश जीता है चूँकि देश विरोधी और हिन्दू विरोधी हारे हैं।
हमारे देश में हिन्दू विरोध की राजनीति को धर्मनिरपेक्षता मान लिया गया था। यही कारण है कि यदि किसी विशेष प्रांत में दंगे हों तो वे दंगे माने जाते हैं, और यदि बंगाल जैसे किसी अन्य प्रांत में दंगे हों तो उन्हें खेलकूद प्रतियोगिता जैसा मान लिया जाता है। स्पष्ट है कि यह हमारे नेताओं की दोगली राजनीति का ही परिणाम है, जिसने दंगों में मरने वाले लोगों की पहचान भी हिंदू मुस्लिम के रूप में करानी आरंभ कर दी।
महाराष्ट्र में राजनीतिक दलों की बात करें तो यहां पर नेशनल कांग्रेस पार्टी, भाजपा, शिवसेना व कांग्रेस प्रमुख राजनीतिक दल हैं। इनमें से एनसीपी वह राजनीतिक पार्टी है, जिसके संबंध आतंकी अबू जिंदाल के साथ रहे, इशरत जहाँ के नाम पर जिसने एम्बुलेंस चलाया, दाऊद इब्राहिम की समर्थक रही है ये पार्टी, साथ ही साथ इसने बर्बर हत्यारे औरंगजेब को सूफी संत बता दिया था। इसके पश्चात अब आते हैं भारतवर्ष की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस पर। कांग्रेस वह पार्टी है, जिसके बारे में लिखना शुरू करें तो शब्द कम पड़ जाएँ। अभी इसके एक बड़े नेता पी. चिदंबरम ने जिस प्रकार काश्मीर के विषय में यह बयान दिया है कि कश्मीर हमारे हाथ से निकल चुका है-उससे इस पार्टी के राजनैतिक चिंतन के स्तर की जानकारी होती है। इस पार्टी का चिंतन बता रहा है कि वह अपनी सेना और अपनी सरकार के साथ न होकर देश के गद्दों के साथ है। इसने कितनी ही बार यह प्रमाणित किया है कि वह पाकिस्तानी आतंकियों, पत्थरबाजों, जिहादियों की समर्थक है और गौमांस चाहने वाली, पार्टी है। इस पार्टी ने अपने शासनकाल में अवैध रूप से बांग्लादेशियों को भारत की भूमि पर बसने दिया। इसने तनिक भी नहीं सोचा कि इससे हमारे देशवासियों को कितना कष्ट होगा या इसके क्या परिणाम निकलेंगे? यह केवल बांग्लादेशियों के अवैध प्रवेश को अपने लिए वोटों की फसल के रूप में देखती रही और समय आने पर वोटों की फसल से अपनी झोली भरती रही।
वीर सावरकर ने कहा था कि देश के लिए अच्छा तब होगा जब राजनीति का हिन्दूकरण होगा और महाराष्ट्र में जो परिणाम आये हैं, वह भाजपा और शिवसेना के पक्ष में हैं। ये दोनों ही पार्टियां लगभग एक ही विचार वाली हैं अर्थात महाराष्ट्र में अब हिन्दू और देशविरोधी लोग सत्ता से दूर और हिंदूवादी, और राष्ट्रवादी लोग सत्ता में आ गये हैं। जो देश और समाज के लिए बेहतर हैं, राजनीति का हिन्दूकरण करने से ही देश का भला हो सकता है, कम से कम अब हिन्दू विरोधी फैसले तो नहीं ही होंगे। हमारा मानना है कि राजनीति का हिन्दूकरण किसी प्रकार उग्रवाद न होकर मानवतावाद को राजनीति का अपरिहार्य अंग बना देना है, जिसका प्रमुख उद्देश्य ‘सबका साथ और सबका विकास’ है।