कौन जीता कौन हारा
उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, मणिपुर और गोवा की पांचों विधानसभाओं के चुनाव परिणाम आ गये हैं। इनमें से उत्तर प्रदेश विधानसभा के 403, उत्तराखण्ड के 70, पंजाब विधानसभा के 117, मणिपुर के 60 और गोवा के 40 सदस्यों को जनता ने चुना है। चुनाव परिणामों पर यदि दृष्टिपात किया जाए तो स्पष्ट होता है कि जनता ने बहुत परिपक्व निर्णय दिया है। साथ ही अपवाद स्वरूप यदि पंजाब को छोड़ दें तो हर प्रदेश की जनता ने प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों में अपना विश्वास व्यक्त किया है।
इन चुनाव परिणामों की गंभीरता से समीक्षा की जानी अपेक्षित है। सर्वप्रथम हम उत्तर प्रदेश पर आते हैं, यहां की जनता ने सपा के परिवारवाद, पारिवारिक कलह, साम्प्रदायिक तुष्टिकरण की नीति, शासन प्रमुख का जातिवादी दृष्टिकोण पर अपना नकारात्मक दृष्टिकोण स्पष्ट कर दिया है। इसी प्रकार बसपा के खुरपा व बुरका के समीकरण को सिरे से नकार दिया है। कुमारी मायावती ने इन चुनावों को पूर्णतया साम्प्रदायिक आधार पर लड़ते हुए मुस्लिम मतों को अपने साथ लाने हेतु 100 से अधिक टिकट मुस्लिम प्रत्याशियों को दिये। परंतु जनता ने उन्हें बता दिया कि अब यहां साम्प्रदायिक आधार पर मतों का धु्रवीकरण करते हुए मुस्लिम मतों को किसी खेत की गाजर, मूली नहीं समझा जाएगा। बहन मायावती की जितनी फजीहत इन चुनावों में हुई है, आशा है उससे वह नसीहत लेंगी। सपा ने अपने साथ कांग्रेस के राहुल गांधी को लेकर अपनी साईकिल में स्वयं पेंचर कर लिया। राहुल और अखिलेश का साथ लोगों को पसंद नहीं आया। वैसे भी कल परसों तक एक दूसरे की खुली आलोचना करते रहने वाले ये दोनों युवा जब एक साथ ‘साईकिल’ पर बैठकर निकले तो लोगों ने इनके लिए मजाक में तालियां बजाईं, जिन्हें ये अपने सम्मान में बजाई गयी तालियां मानते रहे। अब जनता ने होली पर जाकर यह बताया है कि तुम्हारे मजाक का वह भी मजाक में ही जवाब दे रही थी।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में भाजपा को प्रचण्ड बहुमत मिलने का अभिप्राय सत्ता विरोधी लहर मानना गलती होगी। इसके विपरीत इसे इस रूप में मानना होगा कि यहां मोदी लहर सूनामी में परिवर्तित हो चुकी थी और जनता उनके साथ तनमनधन से जुड़ चुकी थी। इसलिए इन दोनों प्रांतों में मोदी का राष्ट्रवादी विचार विजयी हुआ है। जनता ने जातिवाद, सम्प्रदायवाद और परिवारवाद को नकारकर राष्ट्रवाद पर अपनी मुहर लगाकर यह स्पष्ट कर दिया है कि मोदी तुम संघर्ष करो-हम तुम्हारे साथ हैं।
पंजाब भारत का एक सीमावर्ती राज्य है। इस राज्य में पिछले दस वर्ष से शिरोमणि अकाली दल और भाजपा की सरकार चल रही थी। यहां भाजपा शिरोमणि अकाली दल के कारण डूबी है। इस गठबंधन को पंजाब में जितनी भी सीटें मिलीं हैं वे सब मोदी के कारण मिल पायी हैं। फिर भी प्रधानमंत्री मोदी ने यहां पर शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो यह उनकी बुद्घिमत्ता ही रही। क्योंकि जिसके साथ सुख प्राप्त किया उसके साथ यदि दुख भी मिलता है तो उसे भी उन्होंने स्वीकार करने का संकल्प लिया। यहां पर सत्ता विरोधी लहर बनी पर उसका लाभ कांग्रेस को मिला। इस प्रकार यहां कांग्रेस नहीं जीती अपितु शिरोमणि अकाली दल और भाजपा का गठबंधन हारा है। फिर भी पंजाब की जनता ने बहुत सावधानी बरतते हुए अपना समर्थन कांग्रेस को देकर अच्छा ही किया है क्योंकि यदि वह अपना समर्थन ‘आप’ को देती तो वह देश और प्रदेश के लिए अधिक खतरनाक होता। ‘आप’ को सत्ता से दूर रखकर पंजाब की जनता ने बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया है। इस प्रकार पंजाब में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन केवल इसलिए कर पाई है कि वहां की जनता के पास उससे अलग कोई विकल्प नहीं था। कहने का अभिप्राय है किपंजाब में कांग्रेस की जीत में राहुल गांधी का कोई योगदान नहीं है।
मणिपुर और गोवा में खंडित जनादेश मिला है, मणिपुर में कांग्रेस की सरकार रही है। अब से पूर्व वहां पर भाजपा ने कभी अपनी सरकार नहीं बनाई है। पहली बार वहां की विधानसभा में इतनी बड़ी संख्या में विधायकों का पहुंचना भी अपने आप में भाजपा की एक जीत है। मणिपुर की जनता ने कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने का जनादेश दिया है। ऐसे में यदि भाजपा अन्य दलों के साथ मिलकर मणिपुर में सरकार बनाती है तो यह जनादेश का सम्मान होगा। क्योंकि प्रदेश की जनता ने ‘कांग्रेस नहीं’ की अपनी सोच को व्यक्त किया है।
अब आते हैं गोवा पर, जहां अभी तक भाजपा की सरकार रही है। भारत के रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर रक्षामंत्री बनने से पूर्व तक इस प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। उनके पश्चात प्रदेश में भाजपा की सरकार उतने अच्छे ढंग से कार्य नहीं कर पायी जितने अच्छे ढंग से उनके शासनकाल में कार्य हो रहा था। यही कारण रहा कि गोवा की जनता ने बीजेपी में अविश्वास व्यक्त किया। गोवा की जनता ने फिर भी बीजेपी को अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने का खंडित जनादेश दिया है। परंतु हम फिर भी इसे भाजपा की हार मानेंगे। भाजपा यदि यहां पर सरकार बनाने में सफल होती है तो यह हमारे संविधान के उन प्राविधानों का प्रयोग करके भाजपा के द्वारा सत्ता तक पहुंचने का एक सरल रास्ता होगा, जिन्हें अभी तक राजनीतिक दल सिरों की गिनती के नाम पर अपनाते रहे हैं।
इस सबके उपरांत भी हमें यह समझना होगा कि उत्तर प्रदेश की 403 सीटों में से लगभग सवा तीन सौ सीट लेकर भाजपा ने इस प्रदेश में आजादी के बाद के भारत के इतिहास में शानदार अध्याय जोड़ा है। ध्यान रहे कि भाजपा को उत्तर प्रदेश में जितनी सीटें मिलीं हैं उतनी सीटें उत्तराखण्ड, पंजाब, मणिपुर व गोवा की कुल सीटें भी नहीं हैं। इस प्रकार उत्तर प्रदेश में सफलता पाने का अर्थ है अपने आपको सर्वश्रेष्ठ सिद्घ कर देना। इस जीत से सर्वत्र भगवा ही भगवा दिखाई दे रहा है। जिसके परिणाम भविष्य में अच्छे आने निश्चित हैं। अब प्रधानमंत्री मोदी को विदेशों में अधिक सम्मान मिलेगा और देश की संसद के ऊपरी सदन अर्थात राज्यसभा में भी उनकी स्थिति सुदृढ़ होगी। जिसका लाभ देश के विधायी कार्यों को निपटाने और संसद को सुचारू रूप से चलाने में देखने को मिलेगा। हमें आशा करनी चाहिए कि विपक्ष अब संसद को अनावश्यक रूप से रोकने के अपने राष्ट्रविरोधी कार्य से बाज आएगा। इन चुनावों में राष्ट्रवाद की विजय हुई है और छद्मवाद परास्त हुआ है।