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राजनीति संपादकीय

कांग्रेसविहीन भारत बनाते राहुल गांधी

बहुत सी दुर्बलताओं के उपरांत भी कांग्रेस का गौरवपूर्ण इतिहास है। इसके गौरवपूर्ण पक्ष पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, लालबहादुर शास्त्री और इन जैसी अनेकों प्रतिभाएं अपना डेरा डाले बैठी हैं, जिनको पढ़े बिना कांग्रेस का इतिहास किसी भी जिज्ञासु विद्यार्थी की समझ आ नहीं सकता। जिन लोगों ने कांग्रेस को केवल एक परिवार की जागीर के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया, राष्ट्र के साथ छल तो किया ही स्वयं इस सबसे पुराने राजनीतिक संगठन के साथ भी छल किया। उस छल का ही परिणाम है कि हर कांग्रेसी अपने आप में ठगा सा बैठा है। वह चाहता है कुछ बोला जाए, पर बोल नहीं पा रहा है। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक ही परिवार की चाटुकारिता करते रहने वाले लोग कैसे समाप्त कर देते हैं या उसका हनन कर लेते हैं, कांग्रेसियों की यह चुप्पी इसी बात की प्रमाण है। जिन कांग्रेसियों ने सोनिया गांधी के हाथों सीताराम केसरी, जितेन्द्र प्रसाद, माधवराव सिंधिया व राजेश पायलट जैसे स्वाभिमानी नेताओं को केवल इसलिए अपमानित होते देखा है कि उन्होंने सही समय पर कांग्रेस में एक ही परिवार की परिक्रमा से पार्टी को बाहर निकालकर नये विचार और नये नेतृत्व को अवसर देने का आंदोलन चलाया। यद्यपि इन नेताओं का यह आंदोलन पूर्णत: संवैधानिक और लोकतांत्रिक ही था परंतु सोनिया गांधी को यह रूचिकर नहीं लगा था कि कोई कांग्रेस में उनके परिवार की परम्परागत ‘जागीर’ को चुनौती दे। आज कांग्रेस के भीतर माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजेश पायटल के बेटे सचिन पायलट प्रमुख युवा नेता हैं, परंतु अपने पिताओं की फजीहत को देखकर ये दोनों शांत बैठे हैं। कांग्रेसी पार्टी इस समय नेतृत्व के संकट से निकल रही है और यह काल इस संगठन का संक्रमणकाल है। इस सबके उपरांत भी कांग्रेस में वास्तविक मंथन की प्रक्रिया का आरंभ न होना स्पष्ट करता है कि देश की इस सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को अभी और भी बुरे दिन देखने पड़ सकते हैं। राहुल गांधी प्रधानमंत्री के ‘अच्छे दिनों’ का बार-बार उपहास उड़ाते हैं लेकिन कभी भी अपने संगठन के ‘बुरे दिनों’ पर चिंतन करते नहीं दिखते। हमारी दृष्टि में कांग्रेस के नेतृत्व की ऐसी सोच ही इसके लिए सबसे घातक सिद्घ होगी। 
जब किसी संगठन में केवल चाटुकारिता रह जाए और जब किसी राजा के महामंत्री और पुरोहित केवल उसकी वंदना या चाटुकारिता करने में लगे दिखाई दें या जब कोई संगठन या कोई राजा अपने अधीनस्थ लोगों को बोलने न दे या उसके बोलने पर लगभग प्रतिबंध लगा दे, या ऐसे लोगों की बातों को ही अपने लिए और प्रजा के लिए हितकारी समझे जिनमें केवल चाटुकारिता का भाव ही झलकता हो, तब ऐसे संगठन या राजा के राज का विनाश निश्चित होता है।
भारत में कांग्रेस के आलोचकों की दृष्टि में कांग्रेस का विनाश होना ही उचित है। परंतु जो लोग ऐसा सोचते हैं उन्हें भी अपने चिंतन पर थोड़ा गंभीर होना पड़ेगा। कांग्रेस का एक मजबूत विपक्ष के रूप में इस देश की राजनीति में बने रहना आवश्यक है। मैं इसे तब भी चाहूंगा जब कांग्रेस अपनी वर्तमान नीतियों पर ही चलती रहे। यह इसलिए आवश्यक है कि कांग्रेस की नीतियों और किसी राष्ट्रवादी संगठन या नेता की नीतियों की समीक्षा करने और तुलना करने का अवसर हमारे देशवासियों के पास उपलब्ध होना चाहिए। दूसरे यह इसलिए भी आवश्यक है कि भाजपा को यदि मैदान में कोई नहीं मिला तो वह या तो स्वेच्छाचारी निरंकुश घोड़ा हो सकती है या फिर उसके भीतर आलस्य और प्रमाद का आत्मघाती तत्व आ सकता है। भाजपा को सजग और सावधान रखने के लिए और सदा राष्ट्रवादी कार्यों के प्रति समर्पित रखने के लिए एक सजग और सावधान विपक्ष की आवश्यकता है। दुर्भाग्य से राहुल गांधी ने अभी तक एक सजग और सावधान विपक्ष के नेता की भूमिका का निर्वाह नहीं किया है। इसी कारण देश की जनता उन्हें निरंतर पीछे धकेलती जा रही है। नरेन्द्र मोदी यदि आगे बढ़ रहे हैं तो इसमें राहुल गांधी की अपनी अपरिपक्वता भी जिम्मेदार है, या तो मोदी सही समय पर राष्ट्रीय पटल पर नहीं आए हैं, जब उनके बराबर का नेता विपक्ष के पास राष्ट्रीय पटल पर नहीं है, या राहुल गांधी गलत समय पर कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं जब प्रधानमंत्री मोदी जैसा नेता उनके सामने पाले में खड़ा है। राहुल गांधी भारतीय राजनीति के अखाड़े के पहलवान प्रधानमंत्री मोदी के हर दांव पर बचाव की मुद्रा अपना रहे हैं, और हम देख रहे हैं कि वह संसद से सडक़ तक और सडक़ से संसद तक प्रधानमंत्री मोदी का सामना करने से बच रहे हैं। राहुल गांधी ने बचाव की इस राजनीति को संसद के शोर-शराबे और देश के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली अपनी सभाओं में प्रधानमंत्री मोदी पर कटाक्ष करने की अपनी प्रवृत्ति के रूप में प्रदर्शित किया है। देश की जनता इस समय हर नेता से अधिक सजग और सावधान है इसलिए वह अपने नेताओं की हर गतिविधि को और उनके भाषण देने की शैली को बड़ी साधानी से समीक्षित करती रहती है। राहुल गांधी की राजनीति की रणनीति यह थी कि प्रधानमंत्री मोदी को संसद में विधायी कार्य न करने दिया जाए और उनकी सरकार को काम न करने वाली सरकार के रूप में जनता जनार्दन के दरबार में प्रदर्शित किया जाए, परंतु देश की जनता ने सब कुछ समझ लिया और उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड की जनता ने राहुल गांधी को बता दिया कि मोदी तो काम कर रहे हैं परंतु तुम स्वयं काम नहीं कर रहे हो। अब इन प्रदेशों की जनता ने राहुल गांधी को सचेत किया है कि काम करो और काम करने भी दो, यदि काम में रोड़ा बनोगे तो देश की जनता तुम्हें गलियों का रोड़ा बना देगी। जिस डगर पर राहुल गांधी अभी तक चल रहे हैं उससे उन्होंने भारत को कांग्रेसविहीन करने का संकल्प स्वयं ही ले लिया लगता है। कांग्रेस अंतर्मंथन करे और अपनी नीतियों को ऐसी धार दे जिससे कि भाजपा का अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा रोका जा सके।

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