दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल दिल्ली को दुर्दशाग्रस्त करने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं। दिल्ली की जनता उनके पीछे-पीछे बड़े-बड़े प्रश्न लिये घूम रही है और केजरीवाल हैं कि जनता की ओर न देखकर देश के अन्य प्रांतों की ओर देख रहे हैं। उन्होंने दिल्ली छोडक़र पंजाब भागने का मन बनाया, परंतु पंजाब की जनता ने उन्हें अपने लिए उचित न मानकर दिल्ली की ओर ही भगा दिया। अब बेचारे केजरीवाल कुमारी मायावती के साथ मिलकर ईवीएम में गड़बड़ी का रोना रो रहे हैं, जिसका अभिप्राय है कि ‘खिसियायी बिल्ली खम्भा नोंचे’।
दिल्ली की समस्याओं पर यदि विचार करें तो दिल्ली में 15 प्रतिशत से 20 प्रतिशत ‘स्ट्रीट लाइट’ जलती ही नहीं हैं, दिल्ली की 20 प्रतिशत सडक़ें व गलियां टूटी फूटी पड़ी हैं, दिल्ली को नहीं मिला वाई-फाई, दिल्ली को नहीं मिला सीसीटीवी कैमरा, पिछले 2 वर्षों में कोई नया फ्लाई ओवर, ब्रिज, अंडर पास का निर्माण दिल्ली में कहीं नहीं हुआ, पिछले 2 वर्षों में दिल्ली में कई बार सडकों, गलियों, मुहल्लों में कूड़े का ढ़ेर लगा और बीमारियां फैलीं और बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के उपरांत केजरीवाल सरकार ने एमसीडी के कर्मचारियों को वेतन दिया तब जाकर दिल्ली की परिस्थितियां सुधरी, केजरीवाल सरकार ने पिछले 2 वर्षों में दिल्ली में कोई भी नया सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगाया जिसे कि यमुना का पानी प्रदूषित हुआ और प्रदूषण का स्तर भी बढ़ा । इन सारी समस्याओं की ओर केजरीवाल का ध्यान नहीं गया परंतु दिल्ली की जनता अपने मुख्यमंत्री से आने वाले एमसीडी चुनावों में प्रश्न पूछने का मन बना चुकी है। देखते हैं केजरीवाल उस समय ईवीएम में गड़बड़ी का रोना ही रोएंगे या उससे पहले जनाक्रोश को समाप्त करने के लिए अपनी ओर से कोई ठोस कदम उठाएंगे?
पिछले 2 वर्षों में दिल्ली सरकार ने कार पार्किंग पर कोई योजना नहीं बनाई या ये कह सकते हैं कि दिल्ली सरकार के पास लोगों को यातायात जाम से मुक्ति दिलाने के लिये कोई योजना नहीं है, दिल्ली की सडक़ें अब रेहड़ी, पटरी, रिक्शे वालों के अवैध कब्जे से भर गई हैं और दिल्ली सरकार के पास इसे सीमित करना, या इन पर नियंत्रण करने की क्षमता नहीं है। दिल्ली की स्थिति इस समय दयनीय है और ‘दिल्ली का नीरो’ बांसुरी बजा रहा है। दिल्ली स्लम बस्ती बनती जा रही है और केजरीवाल को इसकी कोई चिंता नहीं है। जहाँ दिल्ली सरकार ने एक तरफ पानी के बिलों में माफ़ी दी वहीं दूसरी तरफ फूंक वाले पानी के मीटर से आज भी लोग दुखी हैं। वहीं दूसरी तरफ कमर्शियल मीटर व पुराने बकाया बिलों को लेकर दिल्ली की जनता को सरकार की ओर से लूटा जा रहा है और भ्रष्टाचार व्याप्त है । यही नहीं कमर्शियल पानी के बिलों में दुगनी तेजी आई है और दूसरी तरफ गुपचुप तरीके से ये ही केजरीवाल सरकार ने बोरिंग के पानी पर करीब एक वर्ष पहले रुपये 1610 प्रति महीने से चार्ज लगा दिया। इसमें सभी कमर्शियल इस्टैब्लिशमेंट और यूनिट आती हैं। इसका नोटिफिकेशन तो जारी कर दिया गया पर समाचार पत्रों में कोई सार्वजनिक सूचना प्रकाशित नहीं करायी गयी, और यदि कराई भी गयी तो बहुत छोटी सी सूचना दी गयी।
निर्धन वर्ग के लोगों की परिश्रम की कमाई जो टैक्सी चालकों ने ऋण लेकर अपनी आजीविका चलाने के लिए डीज़ल की कमर्शियल गाडिय़ां लीं अब उन्हें अपनी 5 वर्ष पुरानी गाड़ी को मजबूरी में बेचना पड़ रहा है।
केजरीवाल सरकार ने भ्रष्टाचार के कीर्तिमान स्थापित किये हैं, उसके कई मंत्री और विधायकों पर न केवल भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं अपितु महिलाओं से छेड़छाड़ और अभद्र व्यवहार या दुराचार के गंभीर आरोप भी लगे हैं। दिल्ली की जनता सब कुछ समझ रही है उसे पता चल रहा है कि केजरीवाल एण्ड कंपनी को सरकार बनाने के लिए जनादेश देकर उसने भारी गलती की है।
एमसीडी में कन्वर्शन चार्जेज को लेकर दिल्ली के व्यापारी बहुत नाराज हैं। केजरीवाल सरकार ने इसे रोकने के लिए कभी भी कोई प्रस्ताव पास करके शहरी विकास मंत्रालय नहीं भेजा और न ही मास्टर प्लान 2021 के तहत कन्वर्शन चार्जेज के पैसे का हिसाब एमसीडी से लिया जबकि ये उनकी कानूनन जिम्मेदारी थी। दिल्ली सरक़ार अपनी जिम्मेदारी से बचती रही और दिल्ली का पैसा बेकार गया ?
दिल्ली सरकार ने टैक्स / वैट की पालिसी को और जटिल कर दिया जिससे कि व्यापारी बहुत परेशान हैं, जबकि केजरीवाल सरकार ने वायदा किया था कि वह टैक्स की पालिसी को सरलीकृत करेगी और टैक्स स्लैब को भी कम करेगी, परन्तु टैक्स को बढाकर दिल्ली की जनता पर और भार डाल दिया गया। दिल्ली के करदाता की गाढ़ी कमाई को दूसरे राज्य में विज्ञापन टीवी चैनल में देकर फिजूल ख़र्च करके अपना नाम बढ़ाना राजनीतिक श्रेय लेना, दिल्ली की जनता से निरा धोखा ही कहा जाएगा।
कैग की रिपोर्ट में दिल्ली सरकार के झूठ और गलत तथ्य सामने आने पर भी क्या अब अन्ना हज़ारे उनसे सहमत होंगे? दिल्ली में करीब 20 प्रतिशत सीवर लाइन व पानी की लाइन खराब है और उनको बदलने की जरुरत है परंतु दिल्ली की केजरीवाल सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है । ऐसे में दिल्ली का नागरिक कहां जाये? दिल्ली में केजरीवाल सरकार के शासन में शराब की दुकानों की बढ़ोतरी हुई है, जिससे दिल्ली का सामाजिक परिवेश दूषित हो गया। महिलाओं के पहले से अधिक अपने सम्मान का भय रहता है।
दिल्ली की यातायात व्यवस्था भी आज बहुत ही दयनीय है। आप दिल्ली में यदि घुस जाएं तो उसकी भीड़ से निकलना आपके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि बन गयी है। जबकि केजरीवाल सत्ता में आने से पहले यातायात व्यवस्था को सुधारने की डींगें मार रहे थे। परंतु बीते दो वर्षों में ही लोगों को कांग्रेस की शीला दीक्षित की सरकार याद आने लगी है, जिसमें बहुत से काम हो रहे थे और लोगों के लिए शीला दीक्षित बहुत आम होकर रह गयी थीं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना करके केजरीवाल अपने आपको मोदी के समान स्तर का राजनेता बनाने का अतार्किक प्रयास कर रहे हैं। माना कि लोकतंत्र में किसी भी व्यक्ति को बड़े से बड़ा पद लेने का संवैधानिक अधिकार है, परंतु इस अधिकार की अपनी सीमाएं हैं और उन सीमाओं की पवित्रता इसमें है कि आप जितने बड़े पद को लेना चाहते हैं उतने ही बड़े अनुपात में आपके साथ जनाधार होना चाहिए। यह जनाधार किसी भी राजनेता को तभी मिलता है जब लोग उसके कार्य को प्रशंसा देने लगते हैं। यदि केजरीवाल जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए दिल्ली के दिल को जीतने में असफल हो रहे हैं तो मानना पड़ेगा कि वह प्रधानमंत्री मोदी से बराबरी करके न केवल अपनी ऊर्जा को नष्ट कर रहे हैं, अपितु अपनी अपने आपको उपहास का पात्र भी बना रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में केजरीवाल से हमारा विनम्र अनुरोध है कि वह राजनीति में अपनी लंबी पारी खेलने के लिए अपने आपको दिल्ली और दिल्ली की जनता की समस्याओं के समाधान तक सीमित रखें। शेष देश की समस्याओं के लिए अभी अपने आपको प्रस्तुत न करें।
मुख्य संपादक, उगता भारत