योगी आदित्य नाथ ने भारत के उस उत्तर प्रदेश नामक प्रांत के मुख्यमंत्री पद का दायित्व संभाल लिया है, जो इस देश में जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा प्रांत है और विश्व में जनसंख्या की दृष्टि से जिससे केवल छह देश ही बड़े हैं। सचमुच इसे बड़े प्रांत का मुख्यमंत्री बनना किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष से कम नहीं होता। योगी आदित्यनाथ अब से पूर्व में अपने कई आलोचकों की दृष्टि में इसलिए बदनाम रहे कि वह विवादित बयान देते हैं, यह अलग बात है कि योगी आदित्यनाथ सदा ही सत्य बोलने का साहस करते रहे और उस सत्य को उनके विरोधियों ने ‘विवादित बयान’ कहकर उन्हें अपमानित करने का प्रयास किया। योगी आदित्यनाथ एक ऐसे व्यक्तित्व का नाम है जो बाधाओं से भयभीत नहीं होता और भयंकर तूफानों के मध्य रहकर भी जो अपना मार्ग बनाना जानता है। उन्होंने प्रदेश में अपना राजनीतिक अस्तित्व स्थापित किया और सारी बाधाओं को पार करते हुए निरंतर आगे बढ़ते गये। आज जब वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने गये हैं तो निश्चय ही उनके ऊपर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व आ गया है। अब उनसे भारतीय लोकतंत्र की उन महान परम्पराओं के निर्वाह की स्वाभाविक अपेक्षा की जाएगी जो इस देश में विभिन्न समुदायों और संप्रदायों के मध्य सामंजस्य बनाकर चलने की परम्परा है। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह किसी का तुष्टिकरण नहीं करेंगे और अपनी शासकीय नीतियों में पूर्ण समन्वय स्थापित कर सबको साथ लेकर चलने का प्रयास करेंगे। साथ ही प्रदेश को दंगामुक्त प्रदेश बनाकर ‘उत्तम प्रदेश’ बनाने की दिशा में ठोस कार्य करेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी के चमत्कारिक व्यक्तित्व के सहारे यूपी में प्रचंड बहुमत से जीतकर सत्ता में आई भाजपा ने मुख्यमंत्री के नाम पर निर्णय करने में लगभग एक सप्ताह का समय लगाया। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक पर्याप्त मंथन हुआ। सभी दावेदारों के नामों पर चर्चा हुई, परंतु अंत में योगी आदित्यनाथ को ही इस विशाल प्रांत की जिम्मेदारी देने का निर्णय लिया गया। बात स्पष्ट है कि भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व में उनकाा चयन करने में 2019 के लोकसभा चुनावों को तो दृष्टि में रखा ही है, साथ ही 2022 में यूपी विधानसभा के होने वाले अगले चुनावों को भी दृष्टि में रखा है। निश्चय ही भाजपा को ऐसा ध्यान रखने का पूरा अधिकार भी था और उसके लिए यह आवश्यक भी था। क्योंकि अगले चुनावों में लोग भाजपा का कार्य देखेंगे, और उस कार्य को पूरी तन्मयता से करने के लिए भाजपा को सचमुच किसी ‘योगी’ की ही आवश्यकता थी। एक ऐसा ‘योगी’ जिसका ‘मोदी’ की भांति अपना कोई परिवार न हो, पर जो मोदी की ही भांति संपूर्ण भारतवर्ष को अपना विशाल परिवार मानता हो। बात स्पष्ट है कि विशाल व्यक्तित्व के साथ-साथ उत्तर प्रदेश जैसे विशाल प्रांत के लिए विशाल दृष्टिकोण के मुख्यमंत्री की खोज भी भाजपा के मंथन का एक विषय था। इस विशाल प्रांत की विशाल समस्याएं मुंहबाये खड़ी हैं-उन्हें वही व्यक्ति समझ सकता है और वहीव्यक्ति उनका समाधान खोज सकता है जो चौबीसों घंटे जनसेवा के लिए अपने आपको समर्पित करने के लिए तैयार हो। निश्चय ही योगी आदित्यनाथ इस शर्त को पूर्ण करने की क्षमता रखते हैं।
403 में से 325 सीटों पर जीतकर प्रचंड बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई भाजपा के सामने मुख्यमंत्री के नाम को लेकर कोई दुविधा थी तो केवल यही थी कि इस विशाल प्रांत को संभालने वाला सर्वसमन्वयी व्यक्तित्व का धनी कौन व्यक्ति हो सकता है? सबसे बड़े दावेदार राजनाथ सिंह ने अपना नाम वापस ले लिया और इसके बाद योगी आदित्यनाथ अपने प्रतिद्वंद्वी केशव प्रसाद मौर्य और मनोज सिन्हा जैसे दावेदारों को पीछे छोड़ते हुए सबसे आगे हो गए। निश्चय ही केशव प्रसाद मौर्य और मनोज सिन्हा का अपना व्यक्तित्व है,परंतु प्रदेश के बहुसंख्यक समाज में वह प्रदेश के प्रत्येक आंचल के लिए स्वीकार्य नहीं थे। भाजपा को लोगों ने अपना मत दिया है तो इसका एक कारण यह भी रहा कि प्रदेश का बहुसंख्यक समाज पिछली सरकार की पक्षपाती नीतियों से दुखी था और प्रशासनिक स्तर पर अपने साथ होने वाली अतिवादिता से वह भीतर ही भीतर खिन्न था। उसे देश में मोदी और प्रदेश में योगी की आवश्यकता थी। यह तथ्य भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व भली प्रकार समझता था, इसलिए उसे प्रदेश के लिए योगी के नाम पर मुहर लगाने में अधिक समय नहीं लगा।
योगी आदित्यनाथ के संघ से भी निकट के संबंध हैं। गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मंदिर के महंत हैं और हिंदू युवा वाहिनी के संस्थापक भी हैं। लव जेहाद और राम मंदिर जैसे मुद्दों को लेकर वे अपना कट्टर दृष्टिकोण अक्सर दिखाते रहे हैं। हिंदू युवा वाहिनी के माध्यम से आदित्यनाथ हिन्दू युवाओं को एकजुट कर सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी मुद्दों पर पूर्वांचल के राजनीतिक परिवेश को अपने पक्ष में रखने में वह सफल रहे हैं। राम मंदिर निर्माण के वादे के साथ उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई भाजपा के लिए योगी आदित्यनाथ की यह छवि बहुत काम आ सकती है। लोगों को आशा है कि न्यायालय की कार्यवाही का सम्मान रखते हुए राम मंदिर निर्माण के लिए अब निश्चय ही कोई सुगम मार्ग निकल आएगा।
योगी आदित्यनाथ पांच बार से लगातार गोरखपुर के सांसद रहे हैं। योगी आदित्यनाथ गोरखपुर लोकसभा सीट से 2014 में तीन लाख से भी अधिक मतों से चुनाव जीते थे। 2009 में दो लाख से भी अधिक वोटों से जीत हासिल की थी. पूर्वांचल की 60 से अधिक सीटों पर योगी आदित्यनाथ की पकड़ मानी जाती है। ऐसे योगी को प्रदेश की कमान सौंपकर भाजपा ने उत्तम कार्य किया है। हमारी शुभकामनाएं योगी आदित्यनाथ के साथ हैं। हम उनसे अपेक्षा करते हैं कि वह अपने भीतर के युवा को सदा ऊर्जान्वित रखते हुए राष्ट्र सेवा के अपने दिव्य संकल्प से कभी पीछे नहीं हटेंगे और जिन आशाओं और अपेक्षाओं के साथ प्रदेश की जनता ने अपना नायक स्वीकार किया है, उन आशाओं और अपेक्षाओं पर वह खरा उतरेंगे। 2019 बहुत निकट है, और उसके बाद 2022 भी अधिक दूर नहीं होगा। योगी को न चैन से बैठना होगा और न किसी को चैन से बैठने देना होगा। आशा है वह इसी कसौटी पर अपना कार्य करना आरंभ करेंगे। उनके ‘युग’ को हमारा प्रणाम।
मुख्य संपादक, उगता भारत