रसना रूपी कमान से,
चले शब्द के तीर।
कोई हियो घायल करे,
कोई बंधावे धीर॥2271॥
जब प्रभु-कृपा बरसती है-
शमा रोशन हौ गई,
रहमत बरसी आज।
तू और मैं का भेद ना,
मनुआ करता नाज़॥2272॥
पीड़ा भरी पुकार प्रभु अवश्य सुनते है-
तुझे पुकारू सुन मेरी,
दर्द भरी आवाज।
रक्षक मेरा है तू ही,
प्रभु बचाओ लाज॥2273॥
आन्तरिक शत्रुओं को सर्वदा सावधान रहो…
दुनियां तुम्हें बांधे नही,
बांध रहा है मोह।
शत्रु नही संसा में,
शत्रु तुम्हारा द्रोह॥2274॥
कौन किसका भोजन है:-
आत्मा का भोजन भजन,
और तन का है अन्न।
मन का भोजन सत्य,
हृदय रहे प्रसन्न॥2275॥
'शेर'
जिन्दगी का सफर, है कैसा
मुसाफिर हूँ; सफर में हूँ,
अभी तो और पिला साकी।
इसे केवल खुदा जाने,
सफ़र कितना रहा बाकी॥2276॥
इकला चलो रे…
अर्थात् निर्लिप्त रहो:-
इकला चल संसार में,
मोह-माया को छोड़।
रमण करे मन ओ३म् में,
सब ग्रन्थों का तोड़॥2277॥
हे प्रभु!मेरा जीवन ऐसा हो :-
(i) कृपा-कवच तेरा प्रभु बना रहे सिर माहिं ।
वश में हो मन इन्द्रियाँ, तुझको भूलूँ नाहि॥
(ii) तेरी कृपा से प्रभु,
सत् चिन्तन हो रोज।
कीचड़ की परवाह नहीं,
मनुआ बने सरोज॥2279॥
कटु वचन कितना ख़तरनाक:-
अन्धे का अन्धा कह गई,
द्रौपदी की जब जीभ ।
तत्क्षण ही रखी गई,
महाभारत की नींव॥2280॥
क्रमशः