पीएम मोदी को मुस्लिम महिलाओं ने अपना मत दिया है? यह बात इस समय विशेषत: उत्तर प्रदेश के संदर्भ में इस प्रकार कही जा रही है कि जैसे मुस्लिम महिलाओं ने कोई अप्रत्याशित कार्य कर दिया हो। वास्तव में देश की परिस्थितियां ही ऐसी रही हैं कि यदि मोदी सरकार के किसी निर्णय के साथ मुस्लिम महिलाएं खड़ी दीख रही हैं तो इसे अप्रत्याशित माना जाए? इस पर विचार करना भी आवश्यक है।
वास्तव में पीएम मोदी का विरोधी हर वह व्यक्ति है जो इस देश के ‘स्व’ को मिटाना चाहता है, इसके बीते हुए कल को दागदार और कालिमायुक्त बनाकर देखने और प्रस्तुत करने का अभ्यासी है। इसके विपरीत हर वह व्यक्ति मोदी का समर्थक है जो इस देश के ‘स्व’ को संभालकर सुरक्षित रखने के लिए अपना सर्वस्व समर्पण करने को तैयार है। इस ‘स्व’ के बड़े व्यापक अर्थ हैं। इन व्यापक अर्थों ने ही इस समय देश में राष्ट्रवाद की बहस छेड़ दी है। इस बहस को कुछ मोदी आलोचक निरर्थक सिद्घ करने का प्रयास कर रहे हैं। उनका तर्क है कि देश में रहने वाला हर व्यक्ति ही देशभक्त राष्ट्रवादी है। मोदी आलोचक अपना यह तर्क देकर हर व्यक्ति को अर्थात जनसाधारण को अनावश्यक ही राष्ट्रवाद की बहस में घसीटना चाहते हैं। इससे उन्हें यह लाभ होता है कि वे जनसाधारण को भ्रमित करके यह बताने का प्रयास करते हैं कि तुम्हारी सत्यनिष्ठा और राष्ट्रभक्ति पर मोदी मंडली अनावश्यक ही अविश्वास कर रही है।
जहां तक इस देश की आम जनता का प्रश्न है तो जिस देश की जनता युग-युगों से ‘इदम् राष्ट्राय इदन्न मम्’ कहकर राष्ट्रदेव की आराधना करने की अभ्यासी रही हो और जिसने राष्ट्र में द्विज ब्रह्म तेजधारी ब्राह्मणों और अरिदल विनाशकारी क्षत्रियों की मंगल राष्ट्र कामना को घुट्टी में पिया हो उसे चाहे राष्ट्रवाद लिखना ना आता हो पर वह राष्ट्रवाद क्या है इसे भली प्रकार जानती है। तभी तो किसी मेहनतकश किसान को और भूखे मरते निरक्षर मजदूर को किसी सीबीआई ने या किसी अन्य जांच एजेंसी ने आज तक किसी राष्ट्रविरोधी कार्य में गिरफ्तार नहीं किया। कारण कि इस देश के किसानों और मजदूरों से जिस जनसाधारण का निर्माण होता है उसका एक एक सदस्य यह जानता है कि देश के प्रति गद्दारी का परिणाम क्या होता है? यहां के राजा ‘जयचंद’ होते हैं परंतु जनसाधारण तो सदा से ही ‘गजनी और गौरी’ का पीछा करता आया है। आज भी देश में जितने बड़े घोटाले हुए हैं उन सबमें ‘राजा’ ही सम्मिलित हैं। उनसे जनसाधारण का कोई लेना देना नहीं रहा है। अत: इस देश के जनसाधारण की सत्यनिष्ठा या राष्ट्रभक्ति पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता। उसके रक्त में ही राष्ट्रवाद की धारा बहती है और उस धारा का अजस्र स्रोत उसके हृदय रूपी हिमालय की ऊंची चोटी अर्थात मस्तिष्क में समाहित है। यहां के हर किसान का और मजदूर का मस्तिष्क माया के अभाव में या भाव में कभी धूमिल नहीं होता है, इसलिए उसकी देशभक्ति का अजस्र स्रोत कभी सूखता नहीं है। उसमें समुद्र की गंभीरता है और देशभक्ति का ज्वार सदा ही चढ़ा रहता है। इस देश का जनसाधारण सदा से ही पृथ्वीराज चौहान, आल्हा ऊदल, महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, छत्रसाल, बंदा वीर बैरागी, गुरू गोविन्दसिंह, रानी लक्ष्मीबाई और नेताजी सुभाषचंद्र बोस को अपना नायक मानता आया है। यद्यपि छद्म इतिहास लेखकों ने भारतीय इतिहास के इन नायकों को इतिहास से मिटाने का हरसंभव प्रयास किया है पर इन्हें जनसाधारण ने अपने हृदय पटल पर लिख लिया और राष्ट्रवाद की बहती धारा के साथ इनके रक्तबीज को इस देश की मिट्टी में धीरे-धीरे मिलाता रहा-जिससे इस देश में राष्ट्रवाद मरा नही अपितु ‘मरा’ का उल्टा होकर ‘राम’ हो गया अर्थात इस देश की मिट्टी के कण-कण में रम गया। अब जिस देश का जनसाधारण इस पवित्र कार्य को करने का अभ्यासी स्वभाव से ही है, उस देश के जनसाधारण को कोई देशभक्ति का पाठ पढ़ाये यह संभव नहीं है।
देश के जनसाधारण ने समझ लिया है कि देशभक्ति और राष्ट्रवाद किन हाथों में सुरक्षित है। अब यदि वे हाथ कभी इस देश के जनसाधारण के साथ छल करते हैं तो इसके लिए वे हाथ दोषी होंगे ना कि इस देश का जनसाधारण किसी प्रकार से दोषी होगा।
जो लोग इस देश में चुपचाप धर्मांतरण के माध्यम से इसके ‘स्व’ को गंदा करने का काम करते रहे हैं, या विखण्डन और विघटन के लिए इस देश के युवा को हथियार पकड़ाते रहे हैं या इस देश की संस्कृति को हीना सिद्घ करने के लिए ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे नारे देश के युवा से लगवाते रहे हैं-उनके लिए मोदी नहीं इस देश का राष्ट्रवाद सबसे बड़ा शत्रु है। वे लोग इस देश के ‘स्व’ को मिटाकर अपने षडय़ंत्रों में लगे रहे हैं। उन्हें देश के जनसाधारण का कभी समर्थन नहीं रहा। अब जाकर यह पता चला है कि देश के जनसाधारण के पैसे से जे.एन.यू. में एक विद्यार्थी पर लगभग ग्यारह लाख रूपया प्रतिवर्ष खर्च किया जाता रहा है और प्रत्येक 6 विद्यार्थियों पर एक प्रोफेसर को यहां रखकर देश विरोध का पाठ पढ़ाया जाता रहा है। जब इस गंदगी को देश के जनसाधारण ने मोदी सरकार की ‘कृपा’ से अपनी आंखों से देखा तो पता चला कि कितने ‘जयचंद’ तैयार हो रहे हैं और कितने तैयार कर दिये गये हैं? इन ‘जयचंदों’ के विरूद्घ इस देश का जनसाधारण एक जुट हो रहा है-यूपी ने यह संकेत दे दिया है। निश्चय ही अब ‘जयचंदों’ की नींद हराम हो रही है और ‘जयचंदों’ के संरक्षकों के चेहरों पर अपने आप ही कालिख पुत गयी है।
मुस्लिम महिलाएं भी प्राणी हैं और उनके भीतर भी आत्मा विराजमान है। जब देश में महिलाओं के बराबरी के अधिकारों की बात की जाती है तो उसकी हकदार मुस्लिम महिलाएं भी हैं। उन्हें किसी भी प्रकार से कम करके नहीं आंका जा सकता। उनके भीतर चेतना लाना और उन्हें बराबरी की पंक्ति में लाकर खड़ा करना प्रत्येक संवेदनशील सरकार का कार्य है। मोदी सरकार के किसी निर्णय से मुस्लिम महिलाएं प्रसन्न हैं तो कठमुल्लों को परेशानी है। इन कठमुल्लों ने अपनी मुट्ठी भर शक्ति से एक बड़े वर्ग को कब्जा रखा है। इन्हीं कठमुल्लों का विरोध कहीं न कहीं भारत के ‘स्व’ से है, अन्यथा यदि भारत के आम मुसलमान को या पढ़ी-लिखी मुस्लिम महिला को आप लें तो वह भारत के साथ खड़े हैं। अत: जो भारत के साथ खड़े हैं-यदि वे मोदी के साथ आते हैं तो इसमें तो अप्रत्याशित कुछ भी नहीं होना चाहिए।