विशेष सम्पादकीय :
महाभारत में आया
है कि ऐसा
राजा जो प्रजा
की रक्षा करने
में असमर्थ है
और केवल जनता
के धन को
लूटना ही जिसका
लक्ष्य होता है
और जिसके पास
कोई नेतृत्व करने
वाला मंत्री नहीं
होता वह राजा
नहीं कलियुग है।
समस्त प्रजा को
चाहिए कि ऐसे
निर्दयी राजा को
बांध कर मार
डाले।
महाभारत के इस
उद्घरण में बड़े
पते की बात
कही गयी है
और सच पूछो
तो विश्व का
एक ऐसा लोकतांत्रिक
मूल्य इस उद्घरण
में छिपा है
जिसे आज के
किसी भी लोकतांत्रिक
देश ने अपने
संविधान में स्थान
नहीं दिया है
और यह मूल्य
है कि समस्त
प्रजा को चाहिए
कि ऐसे निर्दयी
राजा को बांधकर
मार डाले।
भारत को विश्व
का सबसे बड़ा
लोकतंत्र कहा जाता
है पर विश्व
के इस सबसे
बड़े लोकतंत्र ने
भी इस लोकतांत्रिक
मूल्य को अपने
जनप्रतिनिधियों के विरूद्घ
अपनाने की बात
नही कही है
और ना मानी
है। इस प्रकार
हमारे विधायक और
सांसद पूरे पांच
वर्ष जितना जनता
को लूटें उनसे
कोई कुछ कहने
वाला नहीं है।
ये कलियुग के
रूप में जनता
का शोषण करते
रहें–यह इनका
एक ऐसा संवैधानिक
अधिकार मान लिया
गया है जिसे
चुनौती नहीं दी
जा सकती। बड़ी
सावधानी से हमारे
संविधान में यह
व्यवस्था कर दी
गयी है कि
हमारे जनप्रतिनिधियों को
जनता ना तो
वापस बुला सकती
है और ना
ही पद से
हटा सकती है।
अब आप बतायें
कि यह कैसा
लोकतंत्र है जिसमें
लोक (जनता जनार्दन)
पर अपना तंत्र
किसी और के
हाथों में सौंपने
की अनिवार्य बाध्यता
थोप दी गयी
है। किसी भी
स्थिति में जनता
अपने जनप्रतिनिधि को
बांधकर मारने के लिए
स्वतंत्र नहीं है।
भारत के इस
लोकतांत्रिक मूल्य को अंग्रेजों
ने और मुगलों
ने नहीं माना,
क्योंकि वे जनता
को लूटना और
उस लूट के
माल से मौज
उड़ाना अपना नैसर्गिक
अधिकार मानते थे। ‘राजा‘
को महाभियोग से
हटाने की बात
यद्यपि कही गयी
है परंतु वह
प्रक्रिया इतनी जटिल
है कि उसे
पूर्ण नहीं किया
जा सकता और
उसमें भी जनता
जनार्दन का कोई
सहयोग या परोक्ष
वा अपरोक्ष उसकी
किसी प्रकार की
भूमिका नही होती।
हमारे जनप्रतिनिधि और राजनीतिक
दल चुनावों के
समय जनता को
कितने ही झूठे
आश्वासन देते हैं–और फिर
उनसे मुंह फेर
लेते हैं। ऐसे
जनप्रतिनिधियों और राजा
के लिए भी
महाभारतकार का मत
है कि जो
राजा प्रजा से
यह कहकर कि
मैं तुम लोगों
की रक्षा करूंगा
(अर्थात ऐसे आश्वासन
देकर उनके मत
प्राप्त करता है
और फिर राज्यैश्वर्य
का भोग करता
है) उनकी रक्षा
नहीं करता वह
पागल और रोगी
कुत्तों की तरह
सबके द्वारा मार
डालने योग्य है।
इस व्यवस्था की
कसौटी पर कसकर
यदि हमारे वर्तमान
राजनीतिज्ञों को देखा
जाए तो ये
अधिकांशत: ऐसे हैं
जो दण्ड के
पात्र हैं। राज्यैश्वर्य
भोगने के लिए
ये केवल झूठे
आश्वासन देते हैं
और इतना ही
नहीं–विकास कार्यों
को बाधित करने
के लिए राजकोष
को वोट प्राप्ति
के लिए लोगों
को मत देने
हेतु घूस के
रूप में लुटाने
का दण्डनीय अपराध
भी करते हैं।
अब दिल्ली के
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने
दिल्ली के एमसीडी
के चुनावों में
उनकी पार्टी को
जिताने के लिए
जनता को घूस
देते हुए घोषणा
की है कि
यदि उनकी पार्टी
को जिताया गया
तो वे लोगों
के गृहकर को
माफ कर देंगे।
अब उनसे कौन
पूछेगा कि दिल्ली
प्रदेश में सरकार
बनाने के लिए
भी उन्होंने ऐसे
ही झूठे वचन
दिल्ली की जनता
को दिये थे
क्या वे पूर्ण
कर दिये गये?
यदि नहीं तो
अब फिर ऐसे
झूठे वचन लोगों
को क्यों दिये
जा रहे हैं
और यह भी
कि यदि सारे
राजस्व को वायदों
को पूरा करने
में समाप्त कर
दोगे तो दिल्ली
का विकास कहां
से करोगे? दिल्ली
अपनी समस्याओं से
जूझ रही है
और केजरीवाल अपनी
नौटंकी की डुगडुगी
बजाकर फिर नुक्कड़
सभाओं में जमूरे
का खेल दिखाने
लगे हैं। चुनावोपरांत
प्रदेश की जनता
उन्हें बताने जा रही
है कि अब
उसका केजरीवाल के
जमूरे वाले खेल
की नौटंकी से
मन भर चुका
है।
महाभारतकार
का कहना है
कि शासक देश
को हानि पहुंचाने
वाले समस्त अप्रियजनों
को निकाल दे
और जो राज्य
के आश्रित होकर
जीविका चला रहे
हों, उनके सुख
दु:ख की
देखभाल प्रतिदिन स्वयं ही
करें।
वास्तव में महाभारतकार लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।
ने यहां राजधर्म
की स्पष्ट व्याख्या
की है और
ऐसी व्याख्या दी
है जिसे राजा
या देश के
जनप्रतिनिधि अपना पवित्र
धर्म समझकर प्रतिदिन
निर्वाह करें। ऐसे प्रत्येक
व्यक्ति को जो
कि देश के
शांतिप्रिय लोगों की जीवन
धारा को अपने
असंवैधानिक कार्यों से बाधित
करता हो या
उन्हें कष्ट पहुंचता
हो–राजा को
दंडित करना चाहिए
और ऐसी व्यवस्था
करनी