आर्यसमाज रेणुकूट,जनपद सोनभद्र (उत्तर प्रदेश ) का 52वां वार्षिकोत्सव समारोहपूर्वक सम्पन्न

सोनभद्र ,उ.प्र.। युग प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200 वीं जयंती की आयोजित श्रृंखलाओं में आर्य समाज रेणुकूट ,सोनभद्र का 52 वां वार्षिकोत्सव दिनांक 22 ,23 एवं 24 अप्रैल,2023 दिन शनिवार, रविवार व सोमवार पर्यन्त समारोह पूर्वक संपन्न हो गया। इस पावन उपलक्ष्य में आर्य जगत् के प्रकांड विद्वान् प्रो.डॉ .व्यास नन्दन शास्त्री वैदिक, मुजफ्फरपुर (बिहार), पंडित सत्य प्रकाश आर्य भजनउपदेशक दानापुर ( बिहार), आर्य भजनोपदेशिका श्रीमती मधु आर्या, मीरजापुर, आर्य भजनोपदेशक श्री जय प्रकाश भारद्वाज एवं तबला-नाल वादक श्री मिता राम झा , समस्तीपुर (बिहार) के मनोहारी वेद -प्रवचन एवं भजनोपदेश कार्यक्रम आयोजित हुए। कार्यक्रम में पधारे महानुभावों को “आर्य समाज “तथा “भारत को समझो अभियान” से जुड़कर यज्ञ,संस्कार, आर्ष ग्रंथों का स्वाध्याय , सत्संग,राष्ट्रधर्म एवं सामाजिक सभी कार्यक्रमों में खुल कर हाथ बंटाने का आह्वान किया गया।

इस अवसर पर डॉ व्यास नंदन शास्त्री ने कहा कि अज्ञान व अन्धविश्वास मनुष्य की उन्नति में बाधक होते हैं जो मनुष्य को पतन के मार्ग पर ले जाते हैं। भारत की पराधीनता व पतन का कारण भी धार्मिक अज्ञान व अन्धविश्वासों से युक्त सामाजिक परम्परायें ही थीं। ज्ञान व विज्ञान मनुष्य को जगत के सत्य नियमों से परिचित कराते हैं। पांच हजार वर्ष पूर्व हुए महाभारत युद्ध के बाद विज्ञान का आरम्भ विगत तीन चार सौ वर्ष पूर्व माना जा सकता है और इस अल्प अवधि में विज्ञान के प्रायः सभी सिद्धान्तों व मान्यताओं में उत्तरोत्तर आवश्यकतानुसार परिवर्तन व संशोधन हुआ है। किसी मान्यता व सिद्धान्त में चाहे व धर्म हो या विज्ञान, इसके प्रवर्तकों का अल्पज्ञ होना है।
उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन करते हुए डॉक्टर शास्त्री ने कहा कि विज्ञान का आरम्भ व उन्नति मनुष्यों ने अपने ज्ञान, अनुभूतियों तथा तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार की है। सभी परवर्ती वैज्ञानिकों ने पूर्व खोजे गये वैज्ञानिक रहस्यों वा सिद्धान्तों की परीक्षा की और उनमें अपेक्षित सुधार व संशोधन किये। यह क्रम वर्तमान में भी जारी है। वैज्ञानिक जगत में कोई नया या पुराना, अनुभवहीन व अनुभवी वैज्ञानिक यह नहीं कहता कि पूर्व का अमुक वैज्ञानिक बहुत बड़ा वैज्ञानिक था इसलिये उसके खोजे गये किसी सिद्धान्तों में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। हम विज्ञान व वैज्ञानिकों को अपने नियमों व सिद्धान्तों पर सतत विचार, चिन्तन-मनन व परीक्षण करने तथा उसमें किसी पूर्व वैज्ञानिक की त्रुटि या न्यूनता ज्ञात होने पर उसकी उपेक्षा न करने के स्वभाव वा प्रवृत्ति की प्रशंसा करते हैं और उनके प्रति नतमस्तक हैं। किसी वेदेतर वा अर्वाचीन मत में ऐसे विचार, मनन, परीक्षण एवं सशोधन की परम्परा नहीं है। यदि वह ऐसा करें तो उनके अस्तित्व पर ही खतरा बन सकता है। वैदिक धर्म ही अपने अनुयायियों को विचार, चिन्तन, मनन, परीक्षण एवं आवश्यकता पड़ने पर संशोधन का अधिकार देता है। इस कारण से वैदिक घर्म पुरातन व आधुनिक दोनों समयों में सबके लिये ग्राह्य एवं पालनीय धर्म बना हुआ है। सत्यार्थप्रकाश में प्राकशित यही वैदिक सद्धर्म भविष्य के सभी मनुष्यों का धर्म हो सकता है वा होगा। इसका कारण यह है कि इसकी नींव सत्य पर, ईश्वर के ज्ञान पर तथा प्रकृति के अनुकूल ज्ञान व विज्ञान के नियमों पर आधारित है।

प्रतिदिन प्रातः 8:00 से 11:30 बजे तक वैदिक यज्ञ एवं प्रवचन भजन तथा सायंकालीन सत्र संध्या 7:00 से लेकर रात्रि 10:00 तक ब्रह्मयज्ञ, दीप- प्रज्वलन एवं प्रवचन- भजन के साथ आयोजित होते रहे ।स्थानीय नर -नारियों ने कार्यक्रम को खूब सराहा। 20 वर्षों के बाद इस प्रकार का प्रभावपूर्ण मनोहर वैदिक कार्यक्रम स्थानीय आर्य जनता को सुनने को मिला और सभी बड़े लाभान्वित हुए। अब ऐसा वार्षिकोत्सव कार्यक्रम प्रतिवर्ष करते रहने का आह्वान किया गया तथा सभी आर्य समाज के पदाधिकारियों ने सहर्ष स्वीकार किया।
कार्यक्रम संस्थापक व संयोजक श्री खिरधर लाल जी पूर्व मंत्री, संरक्षक माननीय श्री हरमंदिर सिंह जी, प्रधान श्री महेंद्र नाथ आर्य ,मंत्री अवकाश बाबू सिंह, कोषाध्यक्ष श्री विनोद कुमार आर्य, उप प्रधान विनोद कुमार सिन्हा , उप मंत्री दिग्विजय सिंह ,उप कोषाध्यक्ष श्री धनेश सिंह आर्य, वेद प्रकाश शास्त्री, शिव प्रसाद आर्य ,इंटर स्कूल के प्रधानाचार्य आचार्य देवप्रकाश पाण्डेय, प्रथम मंत्री श्री राधेश्याम सिंह आर्य रावट्सगंज,अजय कुमार जी, राजप्रिया इंदु ,ममता आर्या,छागुर पटेल जी ,अमरावती देवी ,सीमा सिंह आदि की उपस्थिति सराहनीय रही।
कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संचालन शिक्षक श्री रमेश कुमार सिंह ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन आर्य समाज रेणुकूट के प्रधान श्री महेंद्र नाथ आर्य ने किया।

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