संजीव पांडेय
पिछले कुछ समय
से भारत में
आइएस यानी इस्लामिक
स्टेट की गतिविधियां
एकाएक बढ़ी हैं।
आइएस से जुड़े
कई आतंकी गिरफ्तार
किए गए। लखनऊ
में आइएस से
प्रभावित एक आतंकी
को पुलिस ने
मार गिराया। आइएस
से प्रभावित आतंकियों
की गिरफ्तारी के
बाद पूछताछ से
कई खुलासे हुए
हैं, जिससे सुरक्षा
एजेंसियों की नींद
उड़ गई है।
नींद उडऩे का
मुख्य कारण आतंकियों
द्वारा डिजिटल तकनीक का
इस्तेमाल है। पकड़े
गए आतंकियों को
किसी भी आतंकी
संगठन ने अपने
प्रशिक्षण शिविर में कड़ा
प्रशिक्षण नहीं दिया
था। पकड़े गए
आतंकी पाकिस्तान, अफगानिस्तान
और सीरिया जैसे
देशों के किसी
आतंकी शिविर में
प्रशिक्षण लेकर नहीं
आए थे। गिरफ्तार
आतंकी डिजिटल तकनीक
के माध्यम से
आतंकी संगठनों के
संपर्क में आए।
डिजिटल तकनीक के सहारे
ही उन्हें प्रशिक्षित
किया गया।
यही खुलासे डिजिटल इंडिया
के सामने डिजिटल
आतंकवाद की नई
चुनौती लेकर आए
हैं। भारत सरकार
ने कुछ समय
पहले ही इसकी
गंभीरता को समझा
था। तभी सार्क
सदस्यों के बीच
डिजिटल तकनीक के दुरुपयोग
का मामला उठाया
था। पिछले साल
इस्लामाबाद में सार्क
देशों के गृहमंत्रियों
की बैठक में
खुद गृहमंत्री राजनाथ
सिंह ने सोशल
मीडिया के माध्यम
से आतंकवादियों के
संपर्क पर चिंता
जाहिर की थी।
उन्होंने सदस्य देशों से
अपील की थी
कि सोशल मीडिया
और अन्य आधुनिक
प्रौद्योगिकी का आतंकवाद
के लिए इस्तेमाल
को रोकने के
लिए कदम उठाए।
आतंकी सैफुल्लाह की
मौत के बाद
कई खुलासे हुए
हैं। सैफुल्लाह आइएस
का ऑनलाइन निर्देशित–प्रभावित आतंकी था।
सैफुल्लाह के पिता
ने माना कि
उसका बेटा ऑनलाइन
जेहाद का शिकार
हुआ।
सैफुल्लाह वाट्स ऐप और
अन्य डिजिटल तरीकों
से आइएस के
संपर्क में था।
चिंता की बात
है कि डिजिटल
तकनीक का दुरुपयोग
रोकने की तकनीक
में भारत काफी
पीछे है। जनता
भी सोचने को
विवश है। क्योंकि
इंटरनेट क्रांति ने जहां
भारत में आम
लोगों को काफी
सुविधा दी है,
तो इससे देश
की सुरक्षा पर
भी खतरा मंडरा
रहा है। डिजिटल
तकनीक के दुरुपयोग
को रोकने के
लिए स्वदेशी तकनीक
विकसित करने की
कोशिश की जा
रही है। भारत
में अभी तक
आइएस की गतिविधियां
इंटरनेट तकनीक से ही
चल रही हैं।
मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र
प्रदेश, केरल और
कर्नाटक में आइएस
की गतिविधियां डिजिटल
तकनीक पर आधारित
हैं। आइएस से
प्रभावित भारतीय युवा सीरिया
और इराक में
सक्रिय आइएस के
कमांडरों से संपर्क
में हैं।
भविष्य में यह
चुनौती और बढ़ेगी।
क्योंकि आइएस पूरे
विश्व में ऑनलाइन
आतंकी तैयार कर
रहा है। वैसे
आइएस पूरी दुनिया
में तीन तरीके
से आतंकी तैयार
कर रहा है।
पहला, सीरिया और
इराक में गहन
प्रशिक्षण देकर आतंकी
तैयार किए जा
रहे हैं। जबकि
ऑनलाइन निर्देश देकर आतंकी
तैयार करने का
एक दूसरा तरीका
आइएस के पास
है। इससे अलग
ऑनलाइन प्रभावित आतंकियों की
एक टीम भी
दुनिया में तैयार
हो रही है,
जो किसी कमांडर
से निर्देश नहीं
लेते हैं। हालांकि
आतंक फैलाने के
लिए ऑनलाइन तकनीकों
का सहयोग तीनों
तरह के आतंकी
ले रहे हैं।
सीरिया या इराक
में प्रशिक्षित आतंकी
भी वहां से
निकलने के बाद
कमांडरों से ऑनलाइन
निर्देश लेते हैं।
वहीं प्रभावित आतंकी
आतंकी संगठनों के
ऑनलाइन साहित्य का सहारा
लेकर अपनी गतिविधियां
चला रहे हैं।
इस साहित्य से
ही वे विस्फोटक
तैयार करने से
लेकर विस्फोट करने
तक की तकनीक
सीख रहे हैं।
सुरक्षा एजेंसियों के लिए
डिजिटल दुनिया के माध्यम
वाट्सऐप, फेसबुक, टेलीग्राम बहुत
बड़ी चुनौती बन
गए हैं। इसके
माध्यम से आतंकी
सीरिया और दुनिया
के दूसरे हिस्सों
में मौजूद आइएस,
अलकायदा और अन्य
आतंकी संगठनों के
कमांडरों से जुड़
गए हैं। आतंकी
अलकायदा और आइएस
के ऑनलाइन साहित्य
और पत्रिकाओं से
जुड़े हुए हैं।
हाल ही में
हैदराबाद में आइएस
से प्रभावित आतंकी
इब्राहिम याजदानी को सुरक्षा
एजेंसियों ने गिरफ्तार
किया था। वह
टेलीग्राम पर सीरिया
स्थित आइएस के
कमांडरों से निर्देश
ले रहा था।
सुरक्षा एजेंसियों की चिंता
है कि जिन
डिजिटल माध्यमों से याजदानी
आइएस से जुड़ा
था, उन्हें रोकने
का उपाय उनके
पास नहीं है।
वाट्सऐप से लेकर
टेलीग्राम तक पर
लिए जा रहे
निर्देशों की रिकार्डिंग
सुरक्षा एजेंसियां नहीं कर
सकती हैं। भारत
सरकार डिजिटल धन
स्थानांतरण को बढ़ावा
दे रही है।
लेकिन भविष्य में
इसका भी दुरुपयोग
होने की संभावना
है।
सुरक्षा एजेंसियों को इसकी
चिंता है। क्योंकि
आतंकी इसका दुरुपयोग
कर सकते हैं।
आतंकी संगठनों ने
बिट क्वाइन का
इस्तेमाल इस दिशा
में शुरू कर
दिया है। बिट
क्वाइन एक प्रकार
की डिजिटल करंसी
है। इसे इलेक्ट्रॉनिक
रूप में बनाया
जाता है और
इसी रूप में
इसे रखा भी
जाता है।
यह एक ऐसी
करंसी है, जिस
पर किसी देश
की सरकार का
कोई नियंत्रण नहीं
है। रुपए या
डॉलर की तरह
इसकी छपाई नहीं
की जाती। इसे
कम्प्यूटर के जरिए
बनाया जाता और
इसमें ऑनलाइन भुगतान
होता है। इसे
डिजिटल या ‘गुप्त
मुद्