-लेखक: डा. भवानीलाल भारतीय।
(आगामी दिनांक 26-4-2023 को ऋषि दयानन्द के प्रमुख भक्त वेद मनीषी पं. गुरुदत्त विद्यार्थी जी की 155वी जयन्ती है। इस अवसर पर हम उनका भावपूर्ण स्मरण करते हैं और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देते हैं। पं. जी की जयन्ती पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित ऋषि दयानन्द के जीवन एवं साहित्य के मर्मज्ञ मनीषी ऋषिभक्त डा. भवानीलाल भारतीय का एक आलेख प्रस्तुत कर रहे हैं।)
अनुपम मेधावी पं. गुरुदत्त जी का जन्म 26 अप्रैल 1868 को मुलतान (पाकिस्तान) में श्री रामकृष्ण जी के यहां हुआ। उनकी उच्च शिक्षा लाहौर में हुई जहां विज्ञान विषय लेकर उन्होंने एम.ए. की परीक्षा पास की। उन दिनों विज्ञान के स्नातकों को भी एम.ए. की ही उपाधि दी जाती थी। 20 जून 1880 को वे लाहौर आर्यसमाज के सभासद् बने और स्वामी दयानन्द के रुग्ण होने पर उनकी सेवा सुश्रुषा के लिए उक्त आर्यसमाज ने उन्हें लाला जीवनदास के साथ अजमेर भेजा। स्वामी दयानन्द के देहान्त के पश्चात् जब लाहौर के आर्य पुरुषों ने अपने आचार्य की स्मृति में डी.ए.वी. कालेज स्थापित करने का संकल्प किया, तो पं. गुरुदत्त इस कार्य की पूर्ति में सर्वात्मना लग गये। यों तो इनका सम्पूर्ण जीवन ही आर्यसमाज के कार्य के लिए समर्पित था, किन्तु उनकी प्रबल इच्छा रही कि स्वामी दयानन्द के स्मारक रूप डी.ए.वी. कालेज लाहौर में वेदादि शास्त्रों तथा संस्कृत भाषा एवं साहित्य का उच्च स्तरीय अध्ययन-अध्यापन प्रचलित किया जाये। इसके लिये उन्हें अपने साथियों और सहयोगियों के साथ संघर्ष भी करना पड़ा। 19 मार्च 1890 को अल्पावस्था में ही पं. गुरुदत्त का निधन हो गया। जुलाई 1889 में पं. गुरुदत्त ने वैदिक मैगजीन नामक एक उच्च कोटि की शोध पत्रिका निकाली, जिसके कुछ ही अंक निकल पाये। उनका समस्त लेखन अंग्रेजी में हुआ।
लेखन कार्य-वैदिक संज्ञा विज्ञान-1. (The Terminology of the Vedas) वेदार्थ को समझने में सहायक इस ग्रन्थ को आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में रक्खा गया था (1888), यह आर्य पत्रिका के 11 जुलाई, 1 अगस्त, 19 सितम्बर तथा 10 अक्टूबर 1882 के अंकों में धारावाही छपा था, 2. The Terminology of the Vedas and the European Scholars (1889), यह उक्त पुस्तक का ही परिशिष्ट है जिसमें प्रो. मैक्समूलर तथा प्रो. मोनियर विलियम्स की वेदार्थ विषयक धारणाओं का खण्डन किया गया है, 3. ईश, मुण्डक तथा माण्डूक्य उपनिषदों की व्याख्या, 4. Vedic Text No. 1, 2, 3 इनके अन्तर्गत ऋग्वेद 1.2.1. ऋग्वेद 1.2.7 तथा ऋग्वेद 1.50. इन तीन मंत्रों की वैज्ञानिक व्याख्या की गई है। कतिपय अन्य ग्रन्थ –Evidences of the Human Spirit (1889), Pecuniomania (1889), The Realities of Inner Life, Criticism of Monier William, Indian Wisdom (1893), A Reply to Mr. Williams’ Criticism on Niyoga (1890).
पं. गुरुदत्त विद्यार्थी के कुछ अन्य स्फुट लेख-
- Conscience and the Vedas, with reference to the Brahmo Samaj, 2. Religious Sermons, (Criticism of a book entitled Short Sermons and Essays on Religious subjects by a Punjabi Brahmo.), 3. A Reply to some Criticism of Svamiji’s veda Bhashya., 4. Origin of thought and Language: 1. Virjanand Press Labore 1888, 2. Arya Society, Lahore 1893, 5. Man’s Progress Downwards., 6. Righteousness or Unrighteousness of Flesh Eating., 7. A Reply to Mr. T. Williams’ letter on ‘Idolatory in the Vedas’, 8. Mr. T. Williams on Vedic Test No. 1 (The Atmosphere), 9. Pincot on the Vedas.
पं. गुरुदत्त विद्यार्थी के सभी ग्रन्थों के संग्रहों का विवरण–
- The Works of Late Pandit Gurudatta Vidyarthi M.A. with a Biographical Sketch. Edited by Shri Jiwan Das Pensioner, Vice-President Lahore Arya Samaj. The Aryan printing publishing & General Trading Co. Ltd. Lahore.
इनके तीन संस्करण निकले–
1897 First Edition, 1902 Second Edition and 1912 3rd Edition.
- Wisdom of the Rishi or Works of Pt. Gurudatta Vidyarthi M.A. with a Biographical Sketch by Pt. Chamupati M.A. Edited by (Swami) Vedanand Tirth. Rajpal & Sons LAHORE 1912 and Sarvadeshik Pustakalya Delhi 1959.
उक्त ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद गुरुदत्त लेखावली शीर्षक से पं. भगवद्दत्त तथा पं. सन्तराम ने संयुक्त रूप से किया था। इसके अब तक तीन संस्करण (1918 में लाहौर से, 1960 में गोविन्दराम हासानन्द से तथा 1986 में वेद प्रचारक मण्डल नई दिल्ली से) निकल चुके हैं।
डा. रामप्रकाश जी ने पं. गुरुदत्त विद्यार्थी जी की एक खोजपूर्ण जीवनी भी लिखी है।
वर्तमान समय में पं. गुरुदत्त विद्यार्थी जी के लेखों व पुस्तकों का संग्रह ‘गुरुदत्त लेखावली’ सुलभ नहीं होता। हम (मनमोहन आर्य) इसके प्रकाशन का आवश्यकता अनुभव करते हैं। यदि कोई प्रकाशक महोदय इस हिन्दी लेखावली को प्रकाशित कर दें तो इससे नई पीढ़ी के पाठक लाभान्वित हो सकेंगे। प्रकाशन से पूर्व यदि लेखावली के हिन्दी अनुवाद के उन अंशों को सरल किया जा सके जो हिन्दी पाठकों को समझ नहीं आते अथवा समझने में कठिनाई होती है, तो यह भी एक उत्तम कार्य होगा। ओ३म् शम्।
-प्रस्तुतकर्ता मनमोहन कुमार आर्य