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आर्य सागर खारी🖋️
सन 1802 आते आते अंग्रेजों का शासन बंगाल अवध फर्रुखाबाद हैदराबाद मेसूर में स्थापित हो गया। दिल्ली आगरा उनकी पहुंच से फिर भी बहुत दूर था। अंग्रेजों को सर्वाधिक परेशानियां इसी हिस्से पर कब्जे को लेकर आयी थी। कारण सीधा था गुर्जर जाट अहीर सैनी जैसी कृषक लेकिन युद्ध कौशल में परंपरा से निपुण बिरादरी अपनी मातृभूमि पर मर मिटने के लिए तैयार थी। मुगलों अफ़गानों से सैन्य संघर्ष छापामार युद्ध नीति का उन्हें लंबा अनुभव था लेकिन प्रयास एकीकृत नहीं थे। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में लॉर्ड वेलेजली भारत का गवर्नर जनरल बनकर आता है ।
ईस्ट इंडिया कंपनी के अधूरे लक्ष्यों की पूर्ति के लिए समूचे भारत पर अंग्रेज शासन की स्थापना के लिए उसकी मदद के लिए क्रूर चालाक मक्कार अंग्रेज फौजी अफसर गेरार्ड लेक को commander-in-chief बनाकर भारत भेजा जाता है। यह शातिर क्रूर अंग्रेज फौजी अफसर था। जनरल लेक अपने अभियान में रात्रि में चुपके से गांवो में आग लगा देता था ।सामुहिक कत्ले-आम में इसे आनंद आता था। साथ ही स्थानीय गद्दार लोगों को यह पहचान कर उन्हें रिश्वत देकर अपनी और मिला लेता था ।यह काम इसने आयरलैंड ,अमेरिका में बखूबी किया था। भारत आने से पूर्व जल्द ही में उसने आयरलैंड के स्वाधीनता संग्राम को निर्ममता से कुचला था। फ्रेंच रिवॉल्यूशन में उसने विद्रोहियों को उकसाया था। भारत में नियुक्ति उसके सैन्य कौशल को देख कर उसे दी गई थी आगरा दिल्ली को फतह करने के लिए। 1802 मैं उसने अलीगढ़ के किले को जीता मराठा सेना को हराकर। अपने जीवन की सबसे ज्यादा निर्णयाक बड़ी लड़ाई इसने गौतम बुध नगर की भूमि में छलेरा ग्राम मे लड़ी जहां आज नोएडा गोल्फ कोर्स बना हुआ है वहीं इस की स्मृति में विक्ट्री पिलर विजय स्तंभ बना हुआ है ।नोएडा की लड़ाई अंग्रेज- मराठा सेकंड वार इसके जीवन का सबसे भयानक युद्ध था जिसमें मराठों के साथ स्थानीय दादरी गुर्जर भाटी राव राजाओं की रियासत शासक उसके सैनिकों ने हिस्सा लिया था ।11 सितंबर 1803 की लड़ाई अंग्रेजों के भारत में शासन स्थापना में एक निर्णायक लड़ाई मानी जाती है। महज 5000 अंग्रेज थे जबकि मराठों व रावो की कुल सेना 19000 थी लेकिन दुर्भाग्य देखिए दौलतराव सिंधिया जो खुद वीर स्वाभिमानी मराठा नरेश था उन्हें अपने सैन्य योद्धाओं की काबिलियत पर विश्वास नहीं था उन्होंने एक फ्रेंच मिलिट्री अधिकारी Louis Bourqien को इस युद्ध में कमांडर बनाया स्थानीय राव सैनिक व मराठी सैनिक फ्रेंच भाषा नहीं जानते थे वह फ्रेंच भाषा में कमांड दे रहा था यही चीज मराठों के विपरीत गई नतीजा मराठों की पराजय हुई। नोएडा शहर गोल्फ कोर्स के बीचो बीच सैकड़ों फिट ऊंचाई है इस विजय स्तंभ की । इस विजय स्तंभ का निर्माण अंग्रेजों ने 1916 में कराया था। जो शान से आज भी आजाद भारत की धरा पर खड़ा हुया है। अंग्रेज हमारे शत्रु थे लेकिन शत्रु से भी सीखना चाहिए ऐसा महाभारत के अनुशासन पर्व अर्थशास्त्र मनुस्मृति से लेकर प्राचीन स्मृतियों में उल्लेख मिलता है अंग्रेजों से हमें सीखना चाहिए अपने योद्धाओं का सम्मान कैसे उनके शौर्य को स्थापित किया जाता है। ब्रिटेन के राजघराने ने अपने अधिकारियों अंग्रेज फौजियों को भरपूर सम्मान दौलत शोहरत दी जिन्होंने उनके शासन को भारत में स्थापित करने में अपनी जान की बाजी लगाई। उनमें कुछ के वॉर मेमोरियल कीर्ति विजय स्तंभ तो यही भारत में बनाए गए जिनमें यह नोएडा का विक्टरी पिलर शामिल है तो कुछ के स्मारक लंदन स्कॉटलैंड ब्रिटेन के अन्य नगर ग्रामों में बने हुए हैं। 18 57 में जिन अंग्रेज अफसरों ने निर्णायक भूमिका निभाई स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने में उनके अधिकांस के स्मारक पूरे ब्रिटेन में आपको मिल जाएंगे लेकिन हमारा दुर्भाग्य देखीये जिन वीरों ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी राष्ट्रीय स्वाधीनता की यज्ञ में अपनी खुद आहुति दे डाली । उनके स्मारक तो दूर उनका आज कोई नाम लेने वाला भी नहीं है आजादी के अमृत महोत्सव में। भारत सरकार चुन-चुन कर गुलामी की निशानियां मिटा रही है नौसेना के ब्रिटिश कालीन ध्वज को प्रचलन से बाहर किया गया है कहीं पुरानी अंग्रेज परंपराओं को संस्थानों में खत्म किया जा रहा है वही नोएडा का यह अंग्रेजों द्वारा बनवाया हुआ विजय स्तंभ आज भी प्रत्येक स्वाभिमानी देशभक्त स्वाधीनता मूल्यों को जानने समझने वाले भारतीयों को ओपनिवेशिक दुष्ट मानसिकता से ग्रसित शत्रु अंग्रेजों की स्मृति दिलाता है। आपको ताजुब होगा इस कोर्स में गोल्फ खेलने वाले कुछ कुलीन भारतीय जो अपने आप को विशिष्ट मानते हैं वह बड़ी शान से इस विक्ट्री पिलर के साथ सेल्फी लेते है। घोर आश्चर्य तो यह जानकर हुआ वर्ष 1989 में सबसे भ्रष्ट माने जाने वाला नोएडा प्राधिकरण के काले अंग्रेज अफसरों ने इस अंग्रेजों के बनाए हुए विक्ट्री पिलर का सौंदर्यकरण इस पर लगी प्रशस्ति का रखरखाव भारत की जनता के पैसों से कराया था। पश्चिम के इतिहासकार जिनमें प्रमुखता से अंग्रेज इतिहासकार शामिल है आज भी इसे वर्ल्ड हेरिटेज घोषित करने की मांग करते हैं ट्विटर पर दबे पांव आज भी अभियान चलाया जाता है। आज भी नोएडा प्राधिकरण समय-समय पर इसका रखरखाव करता है जनधन का प्रयोग कर। कितना आश्चर्यजनक है यह गुलामी की निशानी इसका रख रखाव आजाद भारत के नागरिकों के पैसों से कराया जा रहा है। जबकि होना तो यह चाहिए था मराठों के साथ-साथ अपनी रियासत व अपने प्राणों की आहुति देने वाले दादरी के राव भाटी शासकों, 19वीं शताब्दी से लेकर 1947 तक स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों का सामूहिक शौर्य वीर स्मारक बनना चाहिए था। पूरे जिले में जिला प्रशासन गौतमबुद्धनगर नगर उत्तर प्रदेश सरकार नोएडा ग्रेटर नोएडा यमुना विकास प्राधिकरण में से किसी ने भी गौतम बुध नगर के स्वाधीनता संग्राम सेनानियों की स्मृति में किसी भी अधिकारिक राजकीय शौर्य स्थल का निर्माण आज तक नहीं कराया है। हम भारत सरकार से केंद्रीय गृह मंत्रालय से यह मांग करते हैं लफंगे क्रूर शातिर अंग्रेज जनरल लेक के इस स्मारक को ध्वस्त कर अंग्रेजों के 200 वर्ष से अधिक पुराने इस मोनुमेंट्स गुलामी की निशानी को मिटाया जाए। इसके स्थान पर दादरी के राव शासक दरगाही सिंह राव उमराव सिंह सहित उनके साथ बलिदान होने वाले 80 से अधिक वीर स्वाधीनता संग्राम सेनानियों का स्मारक बनना चाहिए ।
आर्य सागर खारी ✍
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