सुदर्शन न्यूज चैनल के
मालिक एवं मुख्य
संपादक श्री सुरेश
चव्हाणके राष्ट्रवाद की एक
मुखर आवाज होकर
उभरे हैं। उन्होंने
भारत में हिन्दू
विरोध की होती
राजनीति को सही
दिशा देनेका सराहनीय
और साहसिक कार्य
किया है। धर्मनिरपेक्षपता
के पक्षाघात से
पीडि़त मीडिया को उन्होंने
सही राह दिखाने
का कार्य किया
है। यह उस
समय की बात
है जब सोनिया
गांधी देशमें साम्प्रदायिक
हिंसानिषेध विधेयक लाकर देश
के बहुसंख्यकों को
उसके द्वारा लपेटकर
मारने का कार्य
करने जा रही
थीं और उस
समय बहुसंख्यकों की
आवाज को उठाने
वाला शायद हीकोई
चैनल था। ऐसे
समय में श्री
चव्हाणके ने अपने
सुदर्शन न्यूज चैनल पर
अच्छी संगोष्ठियों का
और चर्चाओं का
अपने ‘बिंदास बोल‘
नामक लोकप्रिय कार्यक्रम
में आयोजन किया,जिससे लोगों को
सच को सच
समझने का अवसर
मिला। उन्होंने किसी
पक्ष विशेष का
पक्षपोषण न करते
हुए सत्य को
महिमामंडित करने का
सराहनीय प्रयास किया। सत्य
कोमहिमामंडित करना ही
लोकतंत्र के प्राण
हैं। सत्य का
महिमामंडन ही भाषण
और अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता का आधारभूत
मूल तत्व है।
यदि आपने सत्य
का महिमामंडन करना
छोड़ दियाया उसके
महिमामंडन के चर्चाएं
बंद कर दीं
तो मानव की
वैज्ञानिक, धार्मिक, राजनीतिक और
सामाजिक सब प्रकार
की उन्नति रूक
जाएगी। सत्यार्थ और शास्त्रार्थ
मानव जाति का
ऐसायथार्थवादी दृष्टिकोण है जिसके
बिना कुछ भी
असंभव है। इसलिए
लोकतंत्र में भाषण
और अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता को महत्वपूर्ण
माना गया है।
मनुष्य जाति ने
समाचार पत्रों वपत्रिकाओं का
आविष्कार भी इसलिए
किया कि इनके
माध्यम से सत्य
का महिमामंडन होता
रहे और सत्य
हमारे जीवन व्यवहार
में रच बसकर
हमारा मार्गदर्शन करता
रहे। जो लोग
सत्यके महिमामंडन से बिदकते
हैं या उसका
बुरा मानते हैं
या उसका विरोध
करते हैं–उनके
बारे में समझो
कि वे सत्य
को स्वीकार नहीं
कर सकते और
भाषण और अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता केवे
सबसे बड़े शत्रु
हैं।
किसी संपादक को या
लेखक को या
रचनाकार को अपनी
सीमाओं का भली
प्रकार बोध होता
है। इसलिए उसका
संपादकीय अथवा लेख
या रचना रचनात्मक
सीमाओं में रहते
हुए सत्य कामहिमामंडन
करते हैं और
लोगों को सही
राह दिखाने का
प्रयास करते हैं।
कलम या व्यक्ति
की वाणी बहुत
दूर तक जाती
हैं और अपना
प्रभाव दिखाती हैं। सुरेश
चव्हाणके के ‘बिंदास
बोल‘ऐसे ही
प्रभाव को उत्पन्न
करने में सफल
रहे हैं। इससे
कई लोगों की
मान्यताएं बदली हैं
तो कई की
मान्यताएं प्रभावित होने के
कारण उन्हें श्री
चव्हाणके के ‘बिंदास
बोल‘ से परेशानी
हुई है।वास्तव में
ऐसी परेशानी को
असहिष्णुता का नाम
दिया जाना ही
उचित है। इस
असहिष्णुता के चलते
श्री चव्हाणके का
सरल कलम करने
की बात संभल
के एक मौलवी
ने कह दी
है–जिसेकिसी भी
दृष्टिकोण से उचित
नही कहा जा
सकता। एक लोकतांत्रिक
देश में बार–बार ऐसे
लोगों के सर
कलम करने की
बात उठाना पूरी
लोकतांत्रिक व्यवस्था को कठघरे
में खड़े करने
केसमान है। जिन
लोगों को श्री
चव्हाणके द्वारा कश्मीर में
हिंदुओं की हत्याओं
को को लेकर
या उनके वहां
से पलायन करने
के मुद्दे को
उठाने से पीड़ा
है, या जिन्हें
श्री चव्हाणके द्वारापूर्वोत्तर
भारत में ईसाई
मिशनरीज द्वारा चलाई जा
रही धर्मांतरण की
अलोकतांत्रिक और राष्ट्रविरोधी
गतिविधियों को यथार्थ
रूप में उठाने
या किन्हीं स्थलों
पर पूर्व में
तोड़े गये मंदिरोंके
अवशेषों पर खड़ी
की गयी मस्जिद
की पोल खोलने
से आपत्ति है
उन्हें यह सोचना
चाहिए कि यदि
देश के भीतर
ऐसी राष्ट्रविरोधी गतिविधियां
निरंतर जारी रहीं
तो इनका परिणाम
इसदेश के विखंडन
के सिवाय और
कुछ नही होगा।
हमें सहिष्णुता का
परिचय देना चाहिए
और सहिष्णु होकर
समस्याओं को निबटाने
के लिए प्रयास
करना चाहिए। भारत
में भारत कोनुकसान
पहुंचाने वाले खेल
बहुत खेले जा
चुके, अब इनका
भण्डाफोड़ करने और
इन पर अंकुश
लगाने का समय
आ गया है, और
इसके लिए यदि श्री
चव्हाणके काम कर
रहे हैं तो
वह धन्यवाद के
पात्र हैं इससे
बहुत से मुस्लिम
बहन भाईयों को
भी लाभ मिलना निश्चित
है।