राम मंदिर और राष्ट्र मंदिर
दिसंबर
1940 में मदुरई में अखिल
भारत हिन्दू महासभा
का अधिवेशन हुआ
तो वीर सावरकर
को संगठन ने
पुन: अपना अध्यक्ष
निर्वाचित किया। भीषण ज्वर
होते हुए भी
उन्होंने विशाल जनसमुदाय को
संबोधित करते हुए
कहा-”हिन्दुओं को
अहिंसा, चरखा व
सत्याग्रह के प्रपंच
से सावधान रहना
चाहिए। संपूर्ण अहिंसा की
नीति आत्मघाती नीति
है, एक बड़ा भारी
पाप है। हिंदुओं
को इस समय
अधिकाधिक संख्या में सेना
में भर्ती होना
चाहिए। सैनिकीकरण से शस्त्र
विद्या की प्राप्ति
होगी और इसी
विद्या के आधार
पर हिंदू जाति
वीर और अपराजेय
बन सकती है।”
वीर सावरकर के इस
भाषण का अर्थ
गांधीजी समझ गये
थे। वह पाकिस्तान
की मांग करने
वाली मुस्लिम लीग
के सामने जिस
प्रकार याचनापूर्ण शैली अपना
रहे थे उसे
सावरकर पसंद नहीं
करते थे। तब
गांधीजी ने एक
लेख में लिखा-”सेना में
भर्ती होने व
शस्त्र विद्या प्राप्त करने
का सुझाव ठीक
नहीं है। हमें
तो सत्य, अहिंसा
के मार्ग पर
चलकर ही स्वाधीनता
प्राप्त करनी है।”
सावरकर जी ने
इस लेख को
पढ़ा तो उन्होंने
इसका उत्तर देते
हुए पुन: लिखा-”सत्य, अहिंसा से
ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त
करने की कल्पना,
किसी बड़े किले
को बारूद की
जगह फूंक से
उड़ा देने का
सपना देखने के
समान ही हास्यास्पद
है। अत्याचार व
आतंक पर आधारित
ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त
करने के लिए
पहले उसकी नींव
में बारूद ही
लगानी पड़ेगी और
यह 1857 से लगाई
जाती रही है।”
आज देश को
आजाद हुए लगभग
70 वर्ष होने को
आये। अब लोगों
को सब कुछ
समझ में आ
गया है कि
आजादी के लिए
बलिदान देने होते
हैं और बलिदानों
से ही उसे
जीवित रखा जा
सकता है। बलिदानों
के इतिहास को
भूलना अपने साथ
छल करना होता
है। बापू के
सत्य और अहिंसा
के सिद्घांत निश्चित
रूप से मानवता
के कल्याण के
लिए उपयुक्त हो
सकते हैं, परंतु
सत्य और अहिंसा
के सिद्घांत कभी
किसी तानाशाह को
उसकी क्रूरता से
बाज रख सके
हों–यह नहीं
कहा जा सकता।
सत्य और अहिंसा
का पाठ पढ़ाते–पढ़ाते कश्मीर में
हमने अपनी सेना
के कितने ही
जवानों और अधिकारियों
को समाप्त करा
लिया परंतु जिनका
विश्वास गोली में
था वे गोली
लिये ही खड़े
रहे और पत्थरबाज
पैदा करके देश
की एकता और
अखण्डता से खिलवाड़
करते रहे। आज
पत्थरबाजों को जब
खदेड़ा जा रहा
है और उन्हें
गोली की भाषा
में ही समझाया
जा रहा है
तो आज वहां
भी बापू पराजित
होकर सावरकर जीत
रहे हैं।
हमने 1528 ई. से
लेकर आज तक
राम मंदिर के
लिए लाखों बलिदान
दिये हैं। उन
बलिदानों की कहानी
इतनी लंबी है
कि पूरा एक
ग्रंथ तैयार हो
जाएगा। पुरूषार्थी राष्ट्र और
बलिदानी लोगों के पुरूषार्थ
और बलिदान को
निकम्मी सरकारें धर्मनिरपेक्षता के
नाम पर छुपाती
और दबाती रही
हैं। पर आज
स्थिति में परिवर्तन
आ रहा है
और चाहे देर
से ही सही
परंतु बहुत से
लोगों के भीतर
एक आवाज उठ
रही है कि
राम के देश
में राम का
मंदिर बनना ही
चाहिए और वहीं
बनना चाहिए जहां
उनका स्थान लोग
मानते आ रहे
हैं। इसी प्रसंग
में शिया धर्मगुरू
व ऑल इंडिया
मुस्लिम पर्सनली लॉ बोर्ड
के उपाध्यक्ष मौलाना
डा. कल्बे सादिक
ने कहा है
कि जिन्हें मंदिर
बनाना है उन्हें
मंदिर बनाने से
मुसलमान रोकें नहीं। मुसलमान
बदले में मस्जिद
न बनायें, बल्कि
देश बनना चाहिए।
डा. सादिक का
कहना है कि
किसी भी सूरत
में इस समस्या
का समाधान होना
चाहिए। उनका मानना
है कि मंदिर
मस्जिद कोई समस्या
नहीं है। दुनिया
में जितनी भी
बड़ी मस्जिदें हैं
वे सभी वलियों
या सूफी संतों
ने नहीं बनाईं।
उन्हें तानाशाहों ने अपने
अपराध को छिपाने
के लिए बनाया।
धर्म मस्जिदों को
नहीं अपितु इंसानों
को शानदार देखना
चाहता है।
वास्तव में देश
को उन्नति और
विकास के मार्ग
पर ले चलने
वाले लोगों की
ऐसी ही सोच
होती है। डा.
सादिक का चिंतन
राष्ट्रहित में इसलिए
ही उचित नहीं
माना जा सकता
कि वे हिन्दू
हित की बात
कर रहे हैं,
अपितु इसलिए भी
उचित है कि
वह इतिहासबोध और
राष्ट्रबोध दोनों से प्रेरित
होकर एक सत्य
का उद्घाटन कर
रहे हैं। उनकी
बात में वैसी
ही स्पष्टता है
जैसी उपरोक्त उद्घृरण
में सावरकर जी
की बात में
स्पष्टता है। विवेकशील
और दूरदृष्टि रखने
वाले लोगों की
बात को यह
संसार समझता तो
है–पर थोड़ा
देर से समझता
है। कई बार
तो ठोकर खाकर
ही समझता है।
हमें इतिहास के पन्नों लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।
पर जाना चाहिए
और इतिहास के
सच को स्वीकार
करते हुए तथा
श्रीराम जन्मभूमि की खुदाई
के समय मिले मंदिर
के प्रमाणों को
आधार मानकर हमें
राम मंदिर ही
नहीं अपितु राष्ट्र
मंदिर का भी
निर्माण करना चाहिए।
राष्ट्रमंदिर का निर्माण
तभी संभव है
जब उसमें माननीय
सर्वोच्च न्यायालय के परामर्श
का ध्यान रखते
हुए सभी पक्ष
शांति और सहयोग
की