कैसे बने भाजपा की पसंद का राष्ट्रपति
देश को अगले राष्ट्रपति को लेकर हर देशवासी की उत्सुकता बढ़ती जा रही है। कुछ लोगों ने उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिली शानदार सफलता के पश्चात इस पद के लिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का नाम भी उछाल दिया है। जबकि भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी संभावित प्रत्याशी चले आ रहे हैं। अब इस समय अपनी मनपंसद का राष्ट्रपति बनवाना भाजपा के लिए कुछ सरल सा हो गया है, लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि इसके प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित है।
देश को अगले राष्ट्रपति मिलने में अभी दो महीने शेष हैं. राष्ट्रपति पद के लिए मतदान दो महीने पश्चात यानी जुलाई में होगी. इस चुनाव से पहले बीजेपी मत की जुगाड़ में दिन रात जुटी हुई है। उत्तर प्रदेश के चुनावों में मिली शानदार सफलता के बाद भाजपा को काफी राहत मिली है।
अब विधानसभा और लोकसभा की 15 सीटों पर हुए उपचुनाव में भी बीजेपी ने जीत के लिए पूरा जोर लगाया है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एनडीए के नेताओं की बैठक बुलाई है और इस बैठक में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे सहित एनडीए के कुल 32 सहयोगी शामिल हुए।
अब देखते हैं कि राष्ट्रपति के चुनाव के लिए भाजपा के पक्ष में लोकसभा का गणित क्या कहता है ? लोकसभा में अभी 545 सांसद हैं। तीन सीटें खाली हैं और दो एंग्लो इंडियन समुदाय के सदस्यों को वोट करने का अधिकार नहीं है तो सदन की संख्या 540 हुई। इसमें एनडीए के कुल 339 सांसद हैं जिनमें दो मनोनीत सदस्य हैं। अब चुनाव में वोट देने वाले कुल सदस्य 337 हुए. हर सांसद के वोट का मूल्य 708 होता है। इस तरह लोकसभा में एनडीए के कुल 2 लाख 38 हजार 596 मत हुए।
अब राज्यसभा का गणित देखें कि उसका संतुलन भाजपा के पक्ष में कितना है। 245 सांसदों वाली राज्यसभा में ओडिशा और मणिपुर की एक-एक सीट खाली है। इसके बाद 243 सांसद बचे। इनमें 12 मनोनीत सदस्य हैं. एनडीए के कुल 74 सांसद हैं, चार मनोनीत हैं, तो बचे 70 सांसद. एक वोट का मूल्य 708 होता है. इस गणित से राज्यसभा में एनडीए के 49 हजार 560 वोट हुए.
राष्ट्रपति चुनाव में विधायकों का गणित क्या कहता है? राष्ट्रपति के लिए सांसद के साथ-साथ विधायक भी वोट डालते हैं। 29 राज्यों में से 17 राज्यों में एनडीए की सरकार है, जबकि सभी राज्य मिलाकर एनडीए के 1805 विधायक हैं।
सांसदों के मत का मूल्य निश्चित है, लेकिन विधायकों के मत का मूल्य अलग-अलग राज्यों की जनसंख्या के अनुसार होता है। जैसे सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के एक विधायक के वोट का मूल्य 208 है तो सबसे कम जनसंख्या वाले प्रदेश सिक्किम के विधायक के मत का मूल्य मात्र 7 हैं। विधायकों के मत का गणित लगायेंं तो एनडीए के 1805 विधायकों के वोटों का मूल्य 2 लाख 44 हजार 436 है।
एनड़ीए का आंकड़ा कहां तक पहुंचा है? लोकसभा और राज्य सभा के 771 सांसदों के हैं इस हिसाब से कुल 5 लाख 45 हजार 868 मत होते हैं। जबकि पूरे देश में 4120 विधायक हैं। विधायकों के कुल मत 5 लाख 47 हजार 786 हैं। देश में कुल मत हैं 10 लाख 93 हजार 654 और जीत के लिए आधे से एक अधिक यानी 5 लाख 46 हजार 828 मत चाहिए।
एनडीए के सांसद और विधायकों का मत जोडक़र 5 लाख 32 हजार 592 हुआ, अर्थात एनडीए को अभी जीत के लिए और 14 हजार 236 वोट चाहिए। अब मान लिया जाए कि उपचुनाव की सभी सीटों पर बीजेपी जीत जाती है तो तीन सांसदों के 2124 मत और 10 राज्यों की 12 विधानसभा सीटों के 1388 वोट को जोड़ दें तो कुल 3512 मत होते हैं। अर्थात अब भी एनडीए को 10 हजार 724 मत चाहिए और इन्हीं मतों के लिए एनडीए बड़े स्तर पर विचार करने के लिए आज जुटा है ।
प्रधानमंत्री मोदी की जब देश में ही नहीं विदेश में भी सर्वत्र जय-जयकार हो रही हो और लोग उन्हें विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली शासनाध्यक्षों में गिन रहे हों तब स्वाभाविक है कि उनकी प्रतिष्ठा देश के अगले राष्ट्रपति को अपनी मनपसंद का बनाने से जुड़ चुकी है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी नही चाहेंगे कि उन्हें राष्ट्रपति के चुनाव में संयुक्त विपक्ष मुंह की खिलाए। निश्चित है कि प्रधानमंत्री मोदी इस समय अपने नये साथियों की खोज में हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शपथग्रहण समारोह में मुलायम सिंह यादव का पहुंचना और उसके पश्चात उनकी पुत्र वधू और भाई शिवपाल सिंह यादव का मुख्यमंत्री से मिलना कुछ नये गुल खिला सकता है। इसके अतिरिक्त नीतीश कुमार भी भाजपा के साथ एक अच्छा राष्ट्रपति देश को देने के नाम पर खड़े दिखाई दे जाएं, तो भी कोई आश्चर्य नहीं होगा। कुछ ऐसे क्षेत्रीय दल भी भाजपा के साथ हमें जाते हुए दिखायी देंगे जिनके पास विशेष मत तो नहीं हैं परंतु उनके साथ जुडऩे से भाजपा का गणित सरल अवश्य हो सकता है। कुल मिलाकर आगामी एक माह राष्ट्रपति चुनाव के दृष्टिगत भारतीय राजनीति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसी एक माह में ही भारत के अगले राष्ट्रपति का नाम निश्चित हो जाना है। अब देखते हैं कि भाजपा राष्ट्रपति के चुनाव में अपनी नैया कैसे पार लगाती है?