योगी आदित्यनाथ इस समय एक कठोर प्रशासक की छवि बना चुके हैं। स्पष्ट है कि उनकी यह कठोरता जनसाधारण के लिए न होकर उन असामाजिक और राष्ट्र विरोधी तत्वों के प्रति है, जो लोगों का जीना मुहाल करते हैं और राष्ट्र की मुख्यधारा में किसी न किसी प्रकार का विघ्न डालते रहते हैं। किसी भी शासक या मुख्यमंत्री से यही अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसे असामाजिक और राष्ट्र विरोधी तत्वों को ‘मिट्टी में मिला दे।’ योगी आदित्यनाथ ने अपनी इस लोकप्रिय छवि और स्थिति को प्राप्त करने में कितने ही उतार-चढ़ाव देखे हैं और कितने ही प्रकार के अपमानजनक घूंटों को पिया है। इस सबके उपरांत उन्होंने अपनी कठोरता को त्यागा नहीं और वे समाज विरोधी एवं राष्ट्र विरोधी तत्वों के प्रति निरंतर मुखर होते चले गए। यही योगी आदित्यनाथ थे जो एक बार देश की लोकसभा में खड़े होकर फूट-फूट कर रोने लगे थे । तब उन्हें ‘सपा के गुंडों’ की ओर से बहुत अधिक उत्पीड़ित और अपमानित किया जा रहा था।
हम सभी जानते हैं कि अक्टूबर 2005 में मुख्तार अंसारी नाम का माफिया मऊ में सांप्रदायिक दंगा करवा रहा था और खुली जीप में हथियार लहराकर लोगों को सांप्रदायिक दंगों के लिए उकसा रहा था। तत्कालीन सपा सरकार के मुखिया मौलाना मुलायम सिंह यादव मुख्तार अंसारी की इस प्रकार की असामाजिक और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को न केवल चुपचाप सहन कर रहे थे बल्कि उन्हें मुख्तार अंसारी को ऐसा करते देख कर आनंद की अनुभूति भी हो रही थी । कारण केवल एक था कि इससे योगी आदित्यनाथ जैसे ‘हिंदूवादी’ नेताओं को कष्ट हो रहा था। योगी आदित्यनाथ के कष्ट में ही मुलायम सिंह यादव को आनंद आ रहा था। 3 दिन तक मुख्तार अंसारी की यह गुंडई निर्बाध चलती रही। मुलायम सिंह कहते रहे कि उत्तर प्रदेश में उनसे बड़ा कोई गुंडा नहीं है। बात स्पष्ट है कि किसी भी गुंडे की गुंडई को कोई गुंडा भला कैसे रोक सकता था ?
आदित्यनाथ इस सारे दृश्य को देखकर बहुत अधिक कष्ट अनुभव कर रहे थे। एक-एक पल उनके लिए कठिन होता जा रहा था। गुंडों की गुंडागर्दी के चलते धरती पर गिरने वाले किसी भी हिंदू की तो बात छोड़िए हिंदू के शरीर पर पड़ने वाली एक लाठी भी योगी आदित्यनाथ ऐसे अनुभव कर रहे थे, जैसे यह लाठी उन्हीं पर पड़ रही है। दंगों में मार खाते हिंदुओं की संवेदनाएं उन्हें झकझोर रही थीं। उनकी अंतरात्मा उन्हें तत्कालीन भाजपा नेतृत्व के प्रति विद्रोही बना रही थी। क्योंकि अप्रत्याशित रूप से उस समय का भाजपा नेतृत्व मऊ की घटनाओं में सम्मिलित मुख्तार अंसारी की हरकतों पर पूर्णतया मौन साध गया था अर्थात मुलायम सिंह यादव की गुंडागर्दी के सामने भाजपा के राजनाथ सिंह अपनी मित्रता तो निभा रहे थे पर खुलकर कुछ भी नहीं कह पा रहे थे। ऐसी असहाय स्थिति में फंसे भाजपा नेतृत्व को देखकर योगी आदित्यनाथ पूर्णतया क्रांति की मुद्रा में थे।
भाजपा नेतृत्व का इस प्रकार का आचरण क्रांति की पवित्र भावना से ओतप्रोत योगी आदित्यनाथ को कतई भी रास नहीं आ रहा था । तब उन्होंने अपने ही नेतृत्व को चुनौती देने का निर्णय लिया। उन्होंने भाजपा नेतृत्व से स्पष्ट कर दिया कि यदि वे मऊ के लोगों को दंगाइयों से बचा नहीं सकते हैं तो वह भाजपा को छोड़ दे रहे हैं। योगी आदित्यनाथ की इस प्रकार की चुनौती से उस समय के भाजपा के बड़े नेता राजनाथ सिंह, अटल बिहारी वाजपेई और मुरली मनोहर जोशी सभी सकते में आ गए थे। योगी आदित्यनाथ ने स्पष्ट कर दिया था कि यदि मेरे साथ भाजपा के कार्यकर्ता और नेता मऊ नहीं गए तो इसका परिणाम बहुत ही भयंकर आएगा। दंगों को रोकने में मैं स्वयं सक्षम हूं,पर ऐसी हत्याओं को यदि भारतीय जनता पार्टी बस देख कर चुप रहेगी तो मैं इसे सहन नहीं कर पाऊंगा और मैं भाजपा छोड़ दूंगा।
वास्तव में योगी आदित्यनाथ के इन शब्दों ने भाजपा में छाई शिथिलता और अकर्मण्यता की भावना को झकझोर कर रख दिया था। सभी नेताओं को अपना कर्तव्य बोध और राष्ट्रबोध स्मरण हो आया। उन्हें समझ आ गया कि भाषणबाजी अलग है और व्यवहार में उस भाषणबाजी को लागू करना अलग बात है। यह भी एक प्रकार की सांप्रदायिकता ही होती है कि आप देश के बहुसंख्यक समाज को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय दिलाने का विश्वास दिला कर भी उसके साथ जब न्याय करने कराने की बात आए तो मौन साध जाएं। भाजपा प्रारंभ से ही मुस्लिम तुष्टीकरण की विरोधी रही थी और यह मानकर चलती रही थी कि इस्लामिक आतंकवादी ही देश के सामाजिक परिवेश को बिगाड़ता है। हिंदू अपनी उदारता के चलते कभी सांप्रदायिक दंगे नहीं करता। देश को सांप्रदायिक दंगों की आग में केवल मुस्लिम समाज ही धकेलता है।
बीजेपी के तत्कालीन नेतृत्व ने समझ लिया था कि स्थिति बहुत विस्फोटक हो चुकी है और यदि योगी आदित्यनाथ को नहीं मनाया गया तो बहुत कुछ अनर्थ हो जाएगा । वह सभी जानते थे कि योगी आदित्यनाथ किस मिट्टी के बने हैं? इसलिए उन्हें समझाने का साहस किसी को नहीं हो रहा था। मुलायम सिंह यादव की गुंडई के सामने कोई भी नेता मऊ में जाकर दंगों को रुकवाने का साहस नहीं कर पा रहा था। इन सबको इस बात का डर था कि यदि मुलायम सिंह यादव कारसेवकों पर अयोध्या में गोली चलवा सकते हैं तो मऊ में वह कुछ भी करवा सकते हैं। उस समय मुख्तार अंसारी योगी आदित्यनाथ के साथ कुछ भी करवा सकता था। बकौल योगी आदित्यनाथ के वह उनका जानी दुश्मन था।
उस समय मऊ के लिए योगी आदित्यनाथ ने साहस दिखाते हुए प्रस्थान किया। जब वह अपने आश्रम से निकले थे तो उनके साथ केवल 3 गाड़ियां थीं। पर मऊ में प्रवेश करते करते उनके साथ 160 गाड़ियों का काफिला हो चुका था। मऊ में मुख्तार अंसारी के दंगाइयों ने गाड़ियों पर पेट्रोल बम फेंकने का प्रयास किया। यह बम 8 गाड़ियों पर फेंका गया। गाड़ियों में से जैसे ही योगी आदित्यनाथ के लोग बाहर निकले तो दंगाइयों में भगदड़ मच गई। मुलायम सिंह यादव ने स्पष्ट कर दिया था कि योगी आदित्यनाथ यदि मऊ पहुंचते हैं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए। पर गाड़ियों का इतना बड़ा काफिला देख कर प्रशासन उन्हें गिरफ्तार करने का साहस नहीं कर सका। प्रशासन ने मुलायम सिंह यादव को स्पष्ट कर दिया था कि हम योगी आदित्यनाथ को गिरफ्तार नहीं कर सकते। क्योंकि उनकी गिरफ्तारी के तुरंत पश्चात हालात इतने बेकाबू हो जाएंगे कि न केवल हमारी जान के लिए बल्कि मुख्तार अंसारी की जान के लिए भी बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा।
इसके बाद न केवल दंगा समाप्त हुआ, बल्कि योगी आदित्यनाथ जी ने भाजपा को भी छोड़ दिया। तब विजयी हुए योगी आदित्यनाथ की मान मनव्वल के लिए भाजपा नेताओं में होड़ मच गई। योगी आदित्यनाथ जिस विजयी मुद्रा में इस्तीफा दे रहे थे, उससे भाजपा के सभी बड़े नेताओं को अपनी औकात की जानकारी हो गई थी। उस समय भाजपा के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने गोरखपुर आकर योगी आदित्यनाथ से बात करने की इच्छा व्यक्त की थी, पर योगी आदित्यनाथ ने स्पष्ट कर दिया था कि गोरखपुर में आप एक कदम भी ना रखें। अटल बिहारी वाजपेई भी इस सारे दृश्य को देखकर बहुत दु:खी थे। तब भाजपा के वयोवृद्ध नेता आडवाणी जी जाकर योगी आदित्यनाथ को 2 दिन की लंबी बातचीत के बाद समझाने में सफलता प्राप्त की थी।
वास्तव में यही वह घटना थी जो आज के योगी का निर्माण करने में सफल हुई थी। तनिक कल्पना करें की यदि योगी भी उस समय अन्य भाजपा नेताओं की भांति पीछे हट कर बैठ जाते या संवेदना शून्य होकर मऊ की घटनाओं को देखते रहते तो क्या आज वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बन पाते ? बात साफ है कि :-
सबै भूमि गोपाल की या मैं अटक कहां ?
जाके मन में अटक है , सो ही अटक रहा।।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक ‘भारत को समझो’ अभियान समिति के राष्ट्रीय नेता और सुप्रसिद्ध इतिहासकार हैं। )