इस देश को सबसे बड़ा नुकसान दो प्रधानमंत्रियों के काल में हुआ. ….
इस देश को सबसे बड़ा नुकसान दो प्रधानमंत्रियों के काल में हुआ… जिसमें पहला नाम है इंद्र कुमार गुजराल.
इंद्र कुमार गुजराल – पैदाइशी कम्युनिस्ट जो कांग्रेस में गए और फिर जनता दल में…
1996 में जब देवेगौड़ा प्रधानमंत्री थे तब कम्युनिष्टों की पसंद गुजराल को विदेश मंत्री बनाया और तब ही से भारत के विदेश मामले ख़राब होना शुरू हो गए.
इनके काल में भारत पाकिस्तान से आगे की सोच ही नहीं पाया. फिर जब ये प्रधानमंत्री बने तो इन्होने पाकिस्तान के साथ उस समझौते को किया जिसमें लिखा था कि भारत अपने सारे केमिकल हथियार ख़त्म कर देगा..जबकि इनके PM बनने के पहले तक भारत कहता आया था कि उसके पास केमिकल हथियार हैं ही नहीं. मतलब गुजराल ने विश्व में ये साबित करवाया कि भारत झूठ बोलता रहा है.
एक और काम जो इन्होने किया वो ये कि भारत के PMO से ख़ुफ़िया विभाग और RAW का पाकिस्तान डेस्क खत्म कर दिया. अगस्त 1997 में अमेरिका में पाकिस्तान के PM से मुलाकात होते ही वहीँ से इन्होने आदेश किया कि इनके भारत लौटने तक RAW का पाकिस्तान डेस्क ख़त्म होना चाहिए. इसके बाद इस दौरान भारत के पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सऊदी, कुवैत, यमन, UAE आदि जगहों पर स्थित 100 के ऊपर एजेंट मारे गए. एक हफ्ते में सारा खुफिया विभाग ध्वस्त हो गया और RAW नेस्तनाबूद हो गई. पूरा का पूरा ख़ुफ़िया ढाँचा तबाह हो गया, पाकिस्तान से लेकर फिलिस्तीन तक…
उसका नतीजा ये हुआ कि भारत को OIC इलाके में उसके खिलाफ हो रहे षडयंत्रों का पता ही नहीं चलता था. भारत में 1997 से लेकर 2001 तक का समय बेहद कठिन रहा, भारत बिना किसी ख़ुफ़िया जानकारी के रहा और कोई ऐसा महीना नहीं गया जब भारत में बम विस्फोट से लेकर सीमा पर छिटपुट आतंकी हमले न हुए हों.
1998 में वाजपेयी सरकार आई और 1999 में कारगिल हुआ, ख़ुफ़िया फेलियर पर खूब कोसा गया सरकार को, लेकिन कम्युनिस्ट मीडिया ‘गुजराल डॉक्ट्रिन’ नामक उस बेहूदे कागज़ के पुलिन्दे को गोल कर गई जिससे कम्युनिष्टों को अभी मुहब्बत है क्योंकि उसमें भारत की नाकामी है.
भारत के ख़ुफ़िया विभाग को ख़त्म करके और RAW को नेस्तनाबूद करके, उसके लॉजिस्टिक को बर्बाद और एजेंटों के खात्मे के बाद हाल बहुत खराब हो गया…
भारतीय यात्री विमान का हाईजैक होकर कंधार जाना,
संसद भवन हमला, कोइम्बटूर हमला, अक्षरधाम, लाल किला हमला आदि होता गया और भारत सरकार पूरे 3 वर्ष तक कुछ जान ही नहीं पाई ख़ुफ़िया विभाग से.
अटल सरकार ने आने के कुछ महीने में ही फिर से RAW का पाकिस्तान डेस्क और इंटेलिजेंस का OIC विंग चालू किया था जिसको भारत में ही खड़ा करने में 2002 तक का समय लग गया.
फिर उसका विदेशों में एजेंट बनाना आदि करते करते 2004 में अटल सरकार चली गई…
लोगों को अक्सर कारगिल और IC814 के हाईजैक को लेकर अटल सरकार पर हमला करते पाया जाता है, लेकिन गुजराल के कारनामे ने भारत का जो नुकसान कराया उस पर कभी बात ही नहीं हुई. पेट्रोल डीज़ल, आलू – मटर – टमाटर के भाव, IT के स्लैब में बदलाव और एरियर को अपना सबसे बड़ा समस्या समझने वाली जनता को पता ही नहीं कि देश को असुरक्षा के किस दलदल में धकेल दिया गया था…
समय रहते अटल सरकार ने कदम उठाया लेकिन ध्वस्त करना आसान है, खड़ा करना मुश्किल – वो भी ख़ुफ़िया जैसा विभाग जिसमे कई वर्ष लगते हैं एक एजेंट खोजने में…
अगले हैं हमारे ईमानदार प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी…जिन पर कोई छीटा नहीं पड़ता. ये अगर दिल्ली के नज़फगढ़ नाले में कूद के निकलें तो भी गंगोत्री में नहाए जैसे साफ़ निकलते हैं…
इन्होने गुजराल जैसा तो नहीं किया और RAW तथा intelligence को तो टच नहीं किया लेकिन पाकिस्तान और भारत के कम्युनिस्टों के बनाए भंवरजाल और जालसाज़ी को खूब ढील दी.
इन्होने intelligence और सुरक्षा विभाग को इस लायक न छोड़ा कि देश में मुंबई के हमले से लेकर अनेकों शहरों, ट्रेनों में बम विस्फोट को न पहले जान पाए और न रोक पाए…
2007-08 के आसपास पाकिस्तान के लाहौर में एक घटना घटी… पाठ्यपुस्तकों में भगत सिंह और उनके साथियों राजगुरु तथा सुखदेव के लिए लिखा गया कि “भगत सिंह और उसके दो काफिर साथियों ने पड़ोसी देश की आज़ादी के लिए काम किया, उस देश के लिए… जो हमारा दुश्मन है और जिसकी आज़ादी की लड़ाई से हमें कोई सरोकार नहीं, हम उनके बारे में क्यों पढ़े… ये उनके हीरो हैं, हमारे हीरो हमारे खुद के देश में हैं जिनको हम पढ़ेंगे…”
इस तरह के मामले की शुरुवात होने के खिलाफ मोर्चा खोला पाकिस्तान के मशहूर columnist और लेखक हसन निसार ने. हसन निसार खुले मंचों पर भगत सिंह को पाकिस्तान देश की आज़ादी का सिपाही और हीरो घोषित करने लगे…
उन्होंने लाहौर चौक का नाम भी भगत सिंह चौक रखने की मांग रखी…इस सबके बीच ये बात चलाई गई कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि दोनों देश के लोगों में कोई संवाद नहीं है. दोनों देश के लोगों के बीच संवाद बढ़ना चाहिए. इस संवाद को बढ़ाने के लिए पाकिस्तान के अखबार The Jung और भारत के Times of India ने आपस में मिल कर कार्यक्रम चालू किया…गायकों, कलाकारों,खिलाड़ियों का आना-जाना, मुशायरों का आयोजन…सब चालू किया…
बस यहीं पर पाकिस्तान ने भारत के अंदर बहुत अंदर तक घुसपैठ कर ली…पाकिस्तान से जो आते थे वो सब ISI की निगरानी में उनके सिखाए हुए थे. उन पर निगाह रखने वाले, और सीधे ISI एजेंट उनके मैनेजर आदि के रूप में खूब आए.
भारत के intelligence और RAW को इनके दूर रहने का आदेश मनमोहन सरकार ने दिया. सरकार ख़ुफ़िया विभाग से पाकिस्तान की तरफ से आने वाले लोगों की लिस्ट से लेकर कार्यक्रम आदि सब छिपा के रखती थी.
उधर से आए ये ISI के एजेंट यानी ‘अमन की आशा’ गिरोह पूरे भारत की रेकी करते, अपने स्लीपर सेल बनाते और निकल जाते और फिर पीछे से भारत में मुम्बई हमला, कई अलग अलग शहरों में बम ब्लास्ट, कश्मीर में बेरोक टोक हमले कराते रहते…
कम्युनिस्टों के इसी ‘अमन की आशा’ गैंग के निर्देश पर कश्मीर में तैनात सेना पर इल्जाम लगा के जेल में डालना आदि जैसे कारनामे मनमोहन सरकार ने अंजाम दिए.
भारत की अधिकतर मूर्ख जनता इन अमन की आशा वालों के जाल में फंसी हुई नुसरत फतह अली आदि के गीतों पर झूमती…
जबकि उसका खरीदा हर एक CD/ DVD का पैसा पाकिस्तान परस्ती और अपने ही सेना के खून बहाने में लगता. इधर से जो जाते थे उनको पाकिस्तानी पश्तून – कश्मीरी – अफगानी – उक्रैन की लड़कियां, महँगी शराब, महँगी घड़ियां आदि देकर अपनी ओर रखते थे. अय्याशी के गर्त में डूबे इन अन्धों और अमन की आशा वाले लालची लोगों ने इस कांसेप्ट के कारण खूब पलीता लगाया देश को.
इस गैंग को प्रायोजित करने का काम भी मनमोहन सरकार ने किया. पाकिस्तान में हुई भगत सिंह वाली घटना के बाद ही भगत सिंह को आतंकवादी बताने वाले कम्युनिस्टों ने उनको अपना हीरो बनाकर पेश करना चालू किया. कम्युनिस्टों के पाकिस्तानी मिलीभगत से किए जा रहे इस जालसाज़ी को बाद में कभी खोलेंगे.
इधर 4 साल से ‘अमन की आशा’ गैंग का धंधा बंद है. कश्मीर में आतंकी मारे जा रहे हैं. देश में गड़बड़ी फैलाने से पहले स्लीपर सेल वाले दबोच लिए जा रहे हैं. पत्थरबाज बख्शे नहीं जा रहे हैं.
मनमोहन सरकार द्वारा फंसाए गए सारे सेना के अफसर आदि न्यायालय से बरी किए जा रहे हैं. पाकिस्तान और म्यांमार सीमा पार करके आतंकियों के खिलाफ सेना सर्जिकल स्ट्राइक कर रही है. पाकिस्तानी गोलीबारी का मुंहतोड़ जवाब दे रही है.
कुछ साल पहले पाकिस्तानी मीडिया मोदी सरकार आने के बाद अपने 1600 के ऊपर सैनिक मारे जाने का दावा करके क्रंदन कर रही थी. भारत अपनी सुरक्षा के लिए फ्रंट फुट पर खेल रहा हैं. अभी भारत को ऐसे ही करना चाहिए. यूँ ही नहीं पाकिस्तान से लेकर चीन तक की मीडिया में रोज एक प्रोग्राम मोदी पर होता ही है.
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