काबा के गिलाफ का इतिहास
विश्व में जितने भी धर्म और संप्रदाय हैं सभी के अपने अपने उपासना स्थल या भवन है ,जिनमे कुछ तो ऐसे भी हैं जो अपनी स्थापत्य कला और निर्माण शैली के विश्व में विख्यात हैं जिनको देखने के लिए अन्य धर्म के लोग भी जाते हैं यह भवन इस प्रकार से बनवाये जाते हैं की इनको देख कर कोई भी समझ सकता है की यह किस धर्म का उपासना भवन है सभी धर्म के लोग चाहते हैं कि लोग इनका दर्शन करें लेकिन इस्लाम एक ऐसा मजहब है जो अपने सबसे प्रमुख उपासना भवन मक्का में स्थित काबा को एक आवरण या गिलाफ में छुपा कर रखता है काबा पर ढंकने वाले गिलाफ को अरबी में “किश्वा – كسوة ” कहा जाता है यह परम्परा कब और क्यों प्रारब्ध हुई थी इसकी जानकारी इस लेख में दी जा रही है
1-काबा का इतिहास
मुस्लिम विद्वान् दावा करते हैं की सबसे पहले काबा आदम ने बनाया था और जब वह नष्ट हो गया था तो इब्राहीम और उसके लडके इस्माइल ने मिल कर दुबारा बना दिया था लेकि यह बातें बिलकुल झूठ हैं क्योंकि इब्राहीम मक्का कभी नहीं गया वो ऊर नाम की जगह में ही मर गया था वास्तव में इस्लाम से पहले कई मंदिर थे जिनमे लोग मूर्तिओं की पूजा करते थे ऐसा एक मंदिर यमन में था जिसका नाम “सना -صَنْعَاء ” था जिसमे व्यापारी पैसे चढ़ाया करते थे ,इसे देख कर अरब के दो प्रमुख कबीले “कुरैश – قُرَيْشٌ ” और “जहरम – : جرهم, ” के लोगों ने मिलकर एक पत्थर का कमरे जैसा मकान बना दिया और उसमे देवी देवताओं की मूर्तियां रख दी थीं ,ताकि यमन से सीरिया तक आने जाने व्यापारिओं से दान लेते रहें और इस मकान का नाम “बैतूल अतीक़ – بيت العتيق ” रख दिया ,इसका अर्थ है पुराना घर .एक बार जब यमन के “तब्बह – : تُبَّع ” राज्य का राजा “असद अल कामिल -أسعد الكامل ” मक्का गया तो उसने लोगों से कहा इस बदसूरत मकान को तोड़ देना ही उचित है और उसने काबा का नाम “खरबह -خربه ” रख दिया क्योंकि यमन का मंदिर बहुत भव्य और सुन्दर था तब कुरैश के लोगों ने काबा की बदसूरती को छुपाने के लिए काबा को पुराने कम्बल से ढँक दिया था यह घटना सन 378 ईस्वी के बाद की है क्योंकि उस राजा का काल 378 से 403 ई ० है ,तब से काबा पर गिलाफ लगाने का रिवाज प्रारम्भ हुआ जो आज तक जारी है ,शायद इसीलिए एक उर्दू शायर ने कहा था ,
“बात परदे की है तो बदशक्ल परदे में रहें –
महफिलों में आके बैठें हुस्न वाली बीवियां ”
2-कीश्वा के कपडे का इतिहास
मक्का की यूनिवर्सिटी के इतिहासकार डाक्टर .Fawaz Al-Dahas, ने लिखा है इस्लाम से पहले काबा का गिलाफ किसी कपडे से नहीं बल्कि ऊनी कम्बल से बनाया जाता था जिस से अरब अपने तम्बू बनाते थे ,या पुराने खराब कपड़ों के टुकड़े मिला कर बना देते थे “which was used for covering Arab tents.Also, an antaa, which is a rug of leather, or a musouh, a collection of rough clothes”ऐसा इसलिए था कि अरब में न कपास (Cotton) होती थी और अरब के लोग कपड़ा (colth )क्या होता है यह नहीं जानते थे ,काबा का गिलाफ बनाने के लिए कपड़ा सबसे पहले मिस्र (Egypt ) से मंगवाया गया था उस समय उसी को अच्छा माना गया था ,उसे “क़िब्ती – : قُبْطِيّ), ” कपड़ा कहा जाता था , सातवीं सदी में इस्लामी खलीफा यमन से कपड़ा मंगवाया करते थे ,यमन से जो कपडा लाया जाता था उसे “अल मारफियाह -المارفيه ” कहते थे यह अच्छा था परन्तु पतला था बाद में मिस्र से कपडा मंगाया जाने लगा जिसे “कशफ – كشف ” कहते हैं यह कपडा काफी मोटा होता है , आजकल काबा पर लगाने वाले गिलाफ का वजन 670kg और क्षेत्रफल 658 वर्ग मीटर है यह गिलाफ 47 टुकड़ों को जोड़ कर मशीन से सिला जाता है .
3-इस्लाम के पहले का कीश्वा की फोटो
जब मुहम्मद ने इस्लाम की बुनियाद ही नहीं राखी थी तब उसके दादा परदादा काबा के ऊपर जो ऊनी गिलाफ लगाते थे उसमे फूल पट्टी और पक्षिओं के चित्र भी थे ऐसे एक ऐतिहासिक कीश्वा का कुछ हिस्सा यमन में रखा है जिसकी फोटो दी जा रही है Historical Kishwah (foto)
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4-कीश्वा के रंग 5 बार बदले गए
लोगों हमेशा काबा को काले कपडे में देखा होगा परन्तु हमेशा गिलाफ रंग कला नहीं था ,परन्तु मुहम्मद के पहले लेकर आज तक काबा के गिलाफ का रंग कई बार बदला गया है ,हरेक मुस्लिम खलीफा ने अपने दौर में कीश्वा का रंग बदला है जो इस प्रकार है अरबी में इन रंगों के नाम और अर्थ यह हैं
1-सफ़ेद White-أبيض-अबीज
अरब इतिहास के अनुसार जब 9 हिजरी में मुहम्मद मक्का आये तो उन्होंने यमनी सफ़ेद कपडे से काबा का गिलाफ चढ़वाया था उस समय उनके साथ अबू बकर ,उस्मान और उमर ने उनकी मदद की थी
2-लाल , Red-أحمر-अहमर
इसके बाद सन 683 ईस्वी में खलीफा “अब्दुल्लाह इब्न जुबैर अल अव्वाम – عبد الله ابن الزبير ابن العوام “ने लाल रंग का गिलाफ चढ़ाया था
3-पीला yellow -أصفر-असफर
सन 750 में अब्बासी सुल्तान ने फिर से सफ़ेद रंग का गिलाफ लाया जिसमे लाल रंग की पट्टी थी फिर सन 1037 में” सलजूक़ी सुल्तान -: سلجوقیان ” काबा पर पीले रंग का गिलाफ चढ़ा दिया
4-हरा Green-أخضر-अखज़र
सन 1180 में अब्बासी खलीफा “अबुल अब्बास बिन हसन – : أبو العباس أحمد بن الحسن ” ने काबा पर हरे रंग का गिलाफ चढ़ाया
5-काला Black -أسود-अस्वद
इसके बाद सन 1225 में खलीफा “नसीरुद्दीन अल्ल्ह -الناصر لدين الله; ” काबा पर काले रंग का गिलाफ चढ़ाया था ,तब से आज तक काला गिलाफ ही चढ़ाया जाता है ,कीश्वा यानि काबा के ऊपर लगाने वाले गिलाफ का रंग मुहम्मद के समय से आज तक कई बार बदला गया है यह इस सऊदी अरब की विडिओ में बताया गया है कुरान या किसी हदीस में यह नहीं बताया गया की काबा के गिलाफ का रंग क्या होना चाहिए या काबा पर चादर या गिलाफ लगाना जरुरी है ,यह विडिओ देखिये
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उर्दू के विख्यात शायर ने एक बार लिखा है
“खुदा के वास्ते पर्दा न काबा का उठा नादाँ –
कहीं ऐसा न हो उसमे वही काफिर सनम निकले ”
अरबी भाषा में सनम का अर्थ मूर्ति या प्रतिमा होता
5-बेपर्दा काबा कैसा लगता है
काबा को हमेशा काले मोटे कपडे में छुपा कर रखा जाता है इसी लिए मुस्लिम भी नहीं जानते कि काबा की नर्माण शैली कैसी है डिजायन कैसी है ? किस पत्थर से बना ?क्योंकि मक्का में ऐसा बेढंगा और कुरूप कमरा किसने बनाया होगा ? लेकिन जब काबा का गिलाफ बदला जाता है काबा का असली रूप दिख जाता है देखिये
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अगर आप इस फोटो में दी गई काबा की यह बेपर्दा असली तस्वीर देखेंगे तो आपको यही कहना पड़ेगा कि इस काले मकान से तो अन्य धर्मों के उपासना भवन हजारों गुना सुन्दर ,भव्य और आकर्षक हैं जिनको कोई भी देख सकता है ,और तारीफ़ करेगा , भला इस काले कमरे को परदे में छुपाये रखने में क्या रहस्य है जिसमे न तो हवा जाने के लिए खिड़की है और न प्रकाश की व्यवस्था है इसमें तो कोई भी कुछ घंटों में दम घुट कर मर जायेगा
जो ओवैसी बड़ी शान से डींग मारता रहता है कि देखो हमारे पुरखों ने ताजमहल ,क़ुतुब मीनार जैसी भव्य इमारतों का निर्माण किया है ,इसलिए हम ओवैसी से पूछते हैं कि अगर वास्तव में तुम्हारे पुरखे इतने बड़े इंजीनियर थे तो मक्का में इतना भद्दा काबा क्यों बनाया
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ब्रजनंदन शर्मा ( लेख में प्रस्तुत विचार लेखक के निजी विचार हैं जिनसे उगता भारत का सहमत होना आवश्यक नहीं )
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