उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि प्रदेश ही नहीं पूरे देश में समान नागरिक संहिता होनी चाहिए। श्री योगी ने ‘एक देश-एक कानून’ का समर्थन करते हुए अपना उपरोक्त मत व्यक्त किया। मुस्लिम समाज में तलाक जैसी असामाजिक और क्रूर व्यवस्था पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह व्यवस्था द्रौपदी के चीरहरण से भी खतरनाक है। उन्होंने कहा कि ‘तीन तलाक’ पर जो लोग इस समय मौन साधे बैठे हैं वह ‘अपराधी’ हैं। क्योंकि इस क्रूर व्यवस्था से जितनी बहनों के साथ अब अत्याचार हुए हैं उनसे यह मानवता शर्मसार हो चुकी है। 21वीं शताब्दी में यदि हम इन अत्याचारों को धर्म की आड़ में जारी रखते हैं तो यह हमारे विनाश का कारण बनेगा।
महाभारत का युद्घ क्यों हुआ? इसका कारण केवल एक ही था कि समय रहते ‘कुछ लोग’ समय पर नहीं बोले। उनका मौन इतिहास को नई दिशा दे गया, और हम उस भयावह युद्घ में जा उलझे जिसे यह संसार ‘महाभारत’ के युद्घ के नाम से जानता है। यदि भीष्म पितामह, गुरू द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और हस्तिनापुर की सभा में बैठे अन्य मूर्धन्य विद्वान और बलशाली योद्घा समय पर बोलते और दुर्योधन की ‘बोलती बंद’ कर देते तो आज विश्व का इतिहास कुछ और ही होता। तब तलाक जैसी यह क्रूर व्यवस्था भी नहीं होती और इस क्रूर व्यवस्था के पोषक लोग भी नहीं होते। परंतु इसके विपरीत उन लोगों ने सही समय पर मौन साध लिया, और बजाय इसके कि दुर्योधन की ‘बोलती बंद’ करते दुर्योधन के समक्ष स्वयं उनकी ही बोलती बंद हो गयी। जब लोग समय पर नहीं बोलते हैं और घटनाओं को ‘आपराधिक तटस्थता’ से देखते हैं तो उनका यह कृत्य ‘महापाप’ बन जाता है। कुछ लोग थे जो 1947 में देश की स्वतंत्रता के पश्चात देश की सत्ता के स्वामी बन गये थे और जिन्होंने लाखों लोगों के नरसंहार को इसी ‘आपराधिक तटस्थता’ के भाव से देखने का ‘महापाप’ किया था। इन्हीं लोगों के उत्तराधिकारियों ने कश्मीर से भगाये जा रहे कश्मीरी पंडितों को इसी भाव से देखने का प्रयास किया और इन्ही लोगों ने इस देश की आधी आबादी के साथ हो रही अमानवीय क्रूरता को भी इसी आपराधिक तटस्थ भाव से देखने का ‘महापाप’ किया। यदि एक दरबार के मुट्ठी भर गणमान्य लोगों ने समय पर मौन साधकर ‘महाभारत’ करा दिया था, तो आज आपराधिक तटस्थता को अपनाये बैठे लोग कितना बड़ा ‘महाभारत’ कराएंगे? यह देखने और विचारने वाली बात है।
चाणक्य ने कहा था कि ‘राजा दार्शनिक और दार्शनिक राजा होना चाहिए।’ राजा स्पष्टवादी होता है और जनहित में कठोर निर्णय लेने वाला होता है। परंतु दार्शनिक विवेकशील होता है और किसी भी राजा के निर्णय को क्रूर और अत्याचारी नहीं होने देता अर्थात राजा को तानाशाह नहीं बनने देता। इसलिए हमारे आचार्य चाणक्य ने राजा और दार्शनिक दोनों का एक साथ समन्वय स्थापित करने का राजनीति में प्रशंसनीय और अनुकरणीय कार्य किया। विश्व के अन्य देशों और सभ्यताओं के मरने-मिटने की कहानी ही उनका इतिहास है। क्योंकि ये सभ्यताएं और ये देश कभी भी राजा और दार्शनिक का उचित समन्वय एक व्यक्ति के भीतर स्थापित नहीं कर पाये। उनके राज्य उजड़ गये, देश उजड़ गये, और सभ्यताएं उजड़ गयीं, वह नामशेष रह गये। जब राजा दार्शनिक और दार्शनिक राजा नहीं होता है-तब देशों की कहानियां इतिहास के इसी मोड़ पर जाकर कहीं अनंत में विलीन हो जाती हैं। भारत ने इस व्यवस्था के विपरीत राजा को दार्शनिक और दार्शनिक को राजा होने की बात अपने आचार्य चाणक्य के मुंह से कहलवाकर उसे अपनी राजनीतिक संस्कृति का एक मौलिक संस्कार घोषित किया। भारत की महानता व लोकतांत्रिक शक्ति भारत की राजनीति के इसी मौलिक संस्कार में अंर्तनिहित है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने एक महीने के कार्यकाल में यह सिद्घ कर दिखाया है कि वह भारत की राजनीति के उसी मौलिक लोकतांत्रिक संस्कार के ध्वजवाहक हैं जो इस देश की राजनीति को विश्व के देशों की राजनीति से अलग ‘राष्ट्रनीति’ घोषित कराने की क्षमता और सामथ्र्य रखता है, और जिसे अपनाकर भारत की सामासिक संस्कृति को वैश्विक संस्कृति के रूप में परिवर्तित कर भारत को विश्वगुरू बनाया जा सकता है।
स्वतंत्रता के पश्चात भारत के जिन राजनीतिज्ञों ने आपराधिक तटस्थता का प्रदर्शन करते हुए भारतीय राजनीति के उपरोक्त मौलिक संस्कार को अपनाने में प्रमाद का प्रदर्शन किया, उन लोगों ने इस देश का भारी अहित किया है। जो लोग आज भी आती हुई बिल्ली को देखकर कबूतर की भांति आंखें बंद किये बैठे हैं, वे भारत में फिर एक ‘महाभारत’ करा सकते हैं-इसमें दो मत नहीं हैं। हमने मूर्खतावश द्रोपदी के चीरहरण की घटना को दु:शासन द्वारा चीरहरण के रूप में स्थापित कर लिया है, अन्यथा सत्य यह है कि दु:शासन जैसा नीच पुरूष द्रोपदी जैसी सती साध्वी नारी और एक पति की पत्नी के चीर को हाथ भी न लगा सका था। वैसे आज भी कोई ‘दु:शासन’ सती साध्वी नारी को हाथ नहीं लगा सकता, इससे पहले कि दु:शासन कुछ करता योगीराज श्रीकृष्ण वहां पर उपस्थित हो चुके थे। लगता है मुस्लिम बहनों के साथ अब तक जो कुछ होता रहा है-उसका भी अंत निकट है क्योंकि अब यहां भी ‘योगीराज’ आ गया है-फिर भी इतना तो कहा जा सकता है-
समर शेष है पाप का भागी केवल नहीं है व्याध।
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।