Dr DK Garg
धर्म गुरुओं के खतरनाक मंसूबे
हिंदू धर्म में अधिकांश पंथ शिव,गणेश,विष्णु ,राम ,कृष्ण ,दुर्गा ,आदि के नाम से सुरु हुए है जैसे ब्रह्म कुमारी ने शिव विवाह ,राधा स्वामी ने राधा कृष्ण,इस्कॉन ने कृष्ण आदि का सहारा लिया इसी तरह अलग अलग मार्ग पर भक्ति भाव की गंगा बहाई गई दिखाई देती है।
लेकिन,इसके पीछे इन धर्मगुरुओं की एक खतरनाक मंशा भी दिखाई दे रही है,आज इस पर चर्चा करना जरूरी है।
क्योंकि आज का समाज मूर्ति पूजा में इतना लीन हो गया है की अपना विवेक खो बैठा है। कुछ उदाहरण आपके सामने है:
रविशंकर के चेले उसकी तस्वीर पर माला डालते हैं और धूप बत्ती भी,जय गुरु देव के चेले भी,इस्कॉन के संस्थापक प्रभु पाद की मूर्तियां मंदिर में राम कृष्ण की मूर्ती के साथ मंदिर में सजाई जाती हैं और आरती की जाती है,आशा राम के चेले अपने घर के मंदिर में इसकी मूर्ति पूजते है, स्वामीनारायण संप्रदाय वाले भी पांडे जी की मूर्ति की पूजा करते है ताकि मृत्यु के समय गुरु मोक्ष तक ले जाए , गायत्री परिवार वाले श्री राम शर्मा और उसको पत्नी की मूर्ती पूजा करते है,ऐसे अनगिनत उदाहरण है जैसे रामपाल ,गुरु मां,निर्मल बाबा,निर्मला ,ब्रह्म कुमारी के गुरु लेखराज आदि लोग धर्म के व्यवसाय में प्रसिद्ध हुए लोग है जिनकी एक विशेष तस्वीर जिसमे एक हाथ ऊपर उठाकर आशीर्वाद देते हुए आपको आसानी से मिल जाएगी और शिष्य को 24 घंटे आशीर्वाद मिलता रहेगा .
साथ मे एक गुरु मंत्र भी:
गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः
यानी इनकी भाषा में उपरोक्त श्लोक का ये अर्थ समझाया जाता है की ये तथाकथित गुरु ही ब्रह्मा,विष्णु महेश है बाकी कुछ नही.
कुछ पंथ तो और भी आगे बढ़ गए है जैसे जैन समाज के लिए महावीर स्वामी ही ईश्वर है,सिख समाज में गुरु ही सब कुछ है,बौध लोग गौतम बुद्ध,मुस्लिम मोहमद को,ईसाई जीसस के आगे किसी को नहीं मानते ,ये सब अवतारवाद का दुष्परिणाम भी है ।और अब तो अंबेडकर ,ऋषि बाल्मिकी,परशुराम ,कबीर , दादू आदि प्रसिद्ध व्यक्तित्व की भी ईश्वर से तुलना करके मूर्ति पूजा होने लगी है।
अब और आगे चलते है,आप हरिद्वार ,ऋषिकेश ,देहरादून जैसे धार्मिक स्थानों पर जाइए और किसी धार्मिक आश्रम या धर्मशाला में जाए तो वहा राम कृष्ण के मंदिर के साथ साथ एक मंदिर और मिलेगा जिसमें दिवगंत गुरु की मूर्ति ठीक उसी प्रकार लगी हुई मिलेगी जैसे राम कृष्ण गणेश आदि की।इस मूर्ति को वाकाएदा माला पहनाई जाती है,आरती होती है,भोग लगाए जाते है,भगवा कपड़े पहनाए जाते है और आशीर्वाद की मुद्रा में मूर्ती आपको मिलेगी।
इस तरह देश में एक तीसरे भगवान का तेजी से उदय हो रहा है,जो संक्रमण की तरह फ़ैल रहा है ,ऐसे अनगिनत भगवानों की संख्या हजारों लाखों में हो सकती है और विवेक शुन्य भोली भाली जनता भ्रमित हो रही है। ऐसे एक नही हजारों गुरु हैऔर ये गिनती बढ़ती ही जा रही है।
मित्रो,मैं मूर्ति का विरोधी नहीं हूं, चित्र से चरित्र का ज्ञान होता है,हमारे घर में महापुरुषों की तस्वीर जैसे राम ,हनुमान,झांसी की रानी,भगत सिंह ,महाराणा प्रताप, भामा शाह, टोडरमल, जीजाबाई आदि की तस्वीर होनी चाहिए,इसे ज्ञान के साथ साथ व्यक्तित्व में निखार होता है,बच्चो को प्रेरणा मिलती है ,परंतु इस प्रकार से पत्थर की मूर्ती बनाकर प्राण प्रतिष्ठा करना पाखंड है।
गुरु की सच्ची पूजा उसके बताए अच्छे रास्ते पर चलना है ,आरती उतारना,भोग लगाना नही।ये धन और समय की बर्बादी है हिंदू समाज बिखर रहा है, दोष पूर्ण ईश्वर स्तुति है जिसका ईश्वर दंड देता है।
एक बात अंत में और है की मृत्यु के बाद जब इनका दूसरा जन्म हो गया तो इस मूर्ति की पूजा का कोई मतलब नहीं,और यदि मोक्ष मिला होगा तब भी कोई मतलब नहीं क्योंकि मोक्ष की अवस्था में आत्म ईश्वर के सानिध्य लोक लोकांतरो में विचरण करती है जिसका हमसे कोई मतलब नही रह जाता हैं।
वास्तविक ईश्वर स्तुति को समझे और जीवन का आनंद ले।
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