आचार्य विद्या देव जी की श्रद्धांजलि सभा हुई सम्पन्न : वक्ताओं ने कहा कि आचार्य श्री की रिक्तता को कभी नहीं किया जा सकेगा पूर्ण

IMG-20230416-WA0024

ग्रेटर नोएडा। विगत 10 अप्रैल 2023 को आर्य समाज के मूर्धन्य विद्वान ,वेदों के मर्मज्ञ, व्याकरण के सूर्य, अनोखी ,अकल्पनीय, अविश्वसनीय, अद्भुत सौम्यता एवं सरलता के धनी, वैदिक विद्या के पुरोधा, महाश्य‌ चिम्मन वेद आर्ष गुरुकुल मुर्शदपुर के संस्थापक , अनेक पुरस्कारों से सम्मानित आचार्य प्रवर श्री विद्या देव जी के नाम से इस संसार में प्रसिद्ध महान व्यक्तित्व की आत्मा अपनी अनंत यात्रा को करती हुई ईश्वर की इच्छा के अनुसार तथा अपने कर्माशय को लेकर अपने अग्रिम पड़ाव की तरफ चली गई।
इससे आर्य जगत को एक भारी क्षति हुई है। आर्य जगत का व्याकरण का सूर्य अस्त हो गया है। जिसकी रिक्ततापूर्ति और क्षतिपूर्ति संभव नहीं है। दिनांक 16 अप्रैल 2023 को गुरुकुल मुर्शदपुर के प्रांगण में आचार्य विद्या देव जी की दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान किए जाने के उद्देश्य से प्रार्थना सभा एवं श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। जिसमें आर्य जगत के उद्भट विद्वान वानप्रस्थी श्री देव मुनि जी का विशेष निर्देशन एवं सहयोग रहा।
इस अवसर पर उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन श्री देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट द्वारा आचार्य विद्या देव जी के जीवन पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने बताया कि आचार्य जी का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले अंतर्गत हलुपुरा ग्राम में सन 1953 में पिता श्री गया प्रसाद जी के कृषक परिवार में हुआ था ।आपकी शिक्षा कस्बा बकेवर में बी एस सी तक हुई। इसके पश्चात टेक्निकल कोर्स करने के बाद दिल्ली एक सेवा में नियुक्त हुए। सर्विस की अवधि में कुछ साथियों द्वारा आर्य समाज की विचारधारा की जानकारी मिली तो परिणामस्वरूप वेद ,उपनिषद, दर्शन पढ़ने के लिए उन्होंने सर्विस छोड़ दी। क्योंकि उन्होंने राष्ट्र, समाज के समक्ष वेद की विद्या को प्रस्तुत करना अपना जीवन का पावन उद्देश्य बना लिया। पारिवारिक आज्ञा प्राप्त कर संस्कृत पढ़ने के लिए आर्ष गुरुकुल एटा, उत्तर प्रदेश पहुंचे। वहां पर आचार्य पंडित ज्योति स्वरूप जी एवं श्री विश्व देव जी आचार्य से व्याकरण ,वेद एवं दर्शनों का अध्ययन किया। वहीं पर अध्ययन के पश्चात स्वयं 5 वर्ष तक गुरुकुल की व्यवस्था संभालते हुए कुशलतापूर्वक एवं विद्वता पूर्वक अध्यापन छात्रों को कराया।
स्वामी प्रणवानंद जी के आग्रह पर सन 1988 को गुरुकुल गौतम नगर, दिल्ली पहुंचे ।जहां पर पढ़ाते हुए दिल्ली की विभिन्न आर्य समाज में वेद श्रृंखला को प्रारंभ करते हुए वेद प्रचार वर्ष 1994 तक आप करते रहे। इस समयावधि में गुरुकुल में व्याकरण के अनेक विद्वान तैयार किए।
सफदरजंग एनक्लेव दिल्ली आर्य समाज में महर्षि दयानंद के स्मारक ट्रस्ट टंकारा गुजरात के मंत्री श्री रामनाथ सहगल से महत्वपूर्ण भेंट हुई। श्री सहगल ने आचार्य जी को टंकारा में पढ़ाने के लिए प्रेरित किया। उनके कहने पर दो अन्य आचार्यों की व्यवस्था कर दी गई ।वहां पर स्वयं भी व्यवस्था संभालने के लिए चले गए। सारी व्यवस्थाएं सुचारू ढंग से संचालित की ।जिस समय यह टंकारा पहुंचे उस समय केवल 6 विद्यार्थी थे। परंतु आचार्य जी के अथक प्रयास से विद्यालय में 200 विद्यार्थी हो गए थे । जिन्होंने बाद में उपदेशक का कार्य पूरे भारतवर्ष में तथा विदेशों में करने के लिए बीड़ा उठाया। वे छात्र विद्याध्ययन करके चले गए। जिनमें मॉरीशस एवं भारत के 13 प्रांतों के उपदेशक भी शामिल हैं।
जो आज भी विभिन्न आर्य समाज में पुरोहित एवं विद्वान बने हुए हैं। अपने-अपने क्षेत्रों में आर्य समाज का और वेद की विद्या का प्रचार प्रसार बहुत ही परिश्रम के साथ कर रहे हैं। इसके साथ-साथ संस्कृत के प्रोफेसर एवं अध्यापक के रूप में वेदों का कार्य उनके अनेक शिष्य एवं विद्यार्थी कर रहे हैं ।इस प्रकार 17 वर्षों तक टंकारा को उत्कर्ष पर पहुंचाने का कार्य आचार्य विद्या देव जी के द्वारा किया गया था। 17 वर्ष की सेवा के पश्चात टंकारा को छोड़कर वेद प्रचार में लगे और देश विदेश में यज्ञों की परंपरा को आगे बढ़ाया। इसी कड़ी में सवा दो सौ पारायण महायज्ञ एवं 16 चतुर्वेद पारायण महायज्ञ करवाए। 5 महीने तक चलने वाला गायत्री सवा करोड़ गायत्री महायज्ञ गुरुकुल मंझावली यमुना तट पर भी आचार्य विद्या देव जी के द्वारा अपने ब्रह्मत्व में संपन्न कराया गया।
आचार्य विद्या देव जी को विभिन्न आर्य समाज एवं संस्थाओं ने समय-समय पर सम्मानित किया । जिनमें से आर्य समाज नामनेर आगरा उत्तर प्रदेश ,आर्य समाज घाटकोपर मुंबई ,आर्य समाज कच्छ भुज गुजरात, आर्य महासम्मेलन मथुरा उत्तर प्रदेश, ग्राम नगला संज मथुरा उत्तर प्रदेश, प्रांसला आश्रम गुजरात धर्मबंधु ,आर्य समाज काकड़वाडी मुंबई, आर्य महासम्मेलन अहमदाबाद गौशाला , महर्षि निर्वाण भूमि ऋषि उद्यान अजमेर राजस्थान, आर्ष गुरुकुल एटा उत्तर प्रदेश स्वामी ब्रह्मानंद निर्वाण दिवस के अवसर पर, चिमन वेद आर्ष गुरुकुल मुर्शदपुर ग्रेटर नोएडा गौतम बुध नगर द्वारा भी सम्मानित किया गया।
श्रद्धांजलि सभा के अवसर पर देव मुनि जी, स्वामी सर्वानंद जी, रामेश्वर सरपंच, श्री सतीश नंबरदार ,सतीश आर्य, रमेश आर्य, बलवीर सिंह आर्य, महावीर सिंह आर्य ,महाशय किशन लाल जी ,बाबू चाहत राम, सत्येंद्र आर्य, आचार्य करण सिंह ,आचार्य रामजश, श्री मूलचंद आर्य ,श्री महेंद्र सिंह आर्य, अशोक आर्य, बाबूराम आर्य हाजीपुर ,गुरुकुल एटा से आचार्य इंद्र विद्यावाचस्पति, डॉक्टर बृजेश गौतम एटा ,आचार्य सत्यम शास्त्री सोनीपत, सतीश शास्त्री फरीदाबाद, जितेंद्र सिंह आर्य, वीरेश भाटी आर्य ,जयप्रकाश आर्य ,गुरुकुल मुर्शदपुर के आचार्य दुष्यंत जी, उदय आर्य, यादराम आर्य ,कमल आर्य ,पवन भाटी आर्य, महाशय चमन शास्त्री ,शिव कुमार आर्य, पंडित रविंद्र आर्य छांयसा ,ब्रह्म सिंह आर्य, जितेंद्र आर्य, कासना आदि सैकड़ों लोग उपस्थित थे।
आचार्य विद्या देव जी को श्रद्धांजलि देने वालों में मुख्य वक्ता निम्न प्रकार थे – देव मुनि जी,आचार्य करण सिंह ,श्री महेंद्र सिंह आर्य, श्री वीरेश आर्य ,श्री विजेंद्र सिंह भाटी आर्य, बलवीर आर्य, सतीश नंबरदार ,रामेश्वर सरपंच, जयप्रकाश आर्य एवं अन्य आर्य समाज के विद्वान थे। जिन्होंने आचार्य विद्या देव जी को विद्या देव यथा नाम तथा गुण बताया एवं सौम्यता, सरलता ,सादगी, निश्चलता ,सहानुभूति ,सहयोग, सद्भाव की प्रतिमूर्ति बताया। श्री देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट ने आचार्य जी को निष्काम भाव से राष्ट्र एवं समाज की सेवा करने वाले व्यक्तित्व के रूप में प्रतिस्थापन एवं प्रतिरूपण किया। श्री आर्य सागर खारी ने श्रद्धांजलि सभा का संचालन कुशलतापूर्वक किया।

Comment: