चित्त और वित्त की पवित्रता से हमारा हृदय पवित्र रहता है। हृदय की पवित्रता से विचार होता है विचार की पवित्रता से हमारी वाणी की पवित्रता बनी रहती है, उसमें मिठास रहती है और वह किसी को कटु नहीं बोलती। वाणी की पवित्रता से हमारे चारों ओर का परिवेश शुद्घ और पवित्र रहता है। यह वैदिक चिंतन है-विश्व शांति के लिए।
आज का विश्व अशांत इसीलिए है कि इसके चित्त और वित्त की पवित्रता भंग हो चुकी है। पश्चिमी देशों ने अपनी भौतिकवादी उन्नति को जागतिक उन्नति का सर्वाधिक प्रमुख उद्देश्य मान लिया है। इस भौतिकवादी उन्नति में सर्वत्र छलकपट और द्वेष का साम्राज्य है। जिससे व्यक्ति भीतरी रूप से रोगग्रस्त है, अशांत और तनावग्रस्त है। भीतर का संसार बाह्य संसार का निर्माण करता है। जब भीतर ही सब कुछ अस्त व्यस्त है तो बाहर सुव्यवस्थित कैसे हो सकता है?
पश्चिमी देशों ने प्रथम और द्वितीय महायुद्घ इसीलिए लड़े कि उनके भीतर के संसार में आग और गोला बारूदों का ढेर इतना बढ़ चुका था कि उसका बाहर निकलकर हंसते खेलते संसार का विनाश करना आवश्यक हो गया था। पश्चिमी देशों को तभी समझ लेना चाहिए था कि उनकी दिशा विपरीत है-वह शांति के जिस मोती को खोजना चाहते हैं वह हृदय में लगे गोला बारूद के ढेर में नही मिल सकता। उसके लिए तो हृदय को पवित्र करना होगा, उसमें शांति की बयार बहानी होगी और भीतर लगी आग को तप के पानी से शांत करना होगा। तब बाहर का संसार अपने आप ही शांत हो जाएगा। पश्चिमी देशों ने ऐसा न समझकर अपनी सोच को पूर्ववत ही रखा। जिससे आग सुलगती रही और हम देख रहे हैं कि आज विश्व पुन: किसी महाविनाश के मुहाने पर खड़ा है। परमाणु बमों का ढेर लगाता विश्व जब हिरोशिमा और नागासाकी के शहीदों की स्मृति में मोमबत्ती जलाता है तो लगता है कि यह संसार सचमुच क्रूर हो चुका है। इसकी चित्ति, उक्ति और कृति की समता भंग हो चुकी है, यह कहता कुछ है और करता कुछ और है, इसका विनाश निकट है।
अब अमेरिका में नये राष्ट्रपति को आये हुए कई माह हो चुके हैं। उनकी उग्र राष्ट्रभक्ति कुछ नये संकेत दे रही है कि उनके लिए मानवता और वैश्विकशांति बहुत पीछे की चीजें हैं उनके लिए सबसे पहले है अपनी सनक की पूत्र्ति और दूसरे स्थान पर है-अपने देश के हितों की पूत्र्ति। ऐसी सोच व्यक्ति की गंभीरता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है और स्पष्ट करती है कि वह व्यक्ति चाहे कितनी ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निकलकर क्यों न अपने देश का राष्ट्रपति बना हो, वास्तव में तो वह तानाशाह ही है। हमें ट्रम्प को तानाशाह मानने या लिखने में दुख हो रहा है, क्योंकि विश्व की महाशक्ति के नायक को सर्वाधिक गंभीर और मानवता के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। पर राष्ट्रपति ट्रम्प ऐसा कर नहीं पा रहे हैं। दूसरे, इस्लामिक आतंकवादी इस समय बेलगाम हैं। उन पर इस्लामिक देशों के सामूहिक राजनैतिक नेतृत्व की भी लगाम नहीं है। सारे इस्लामिक देशों के शासनाध्यक्ष और राष्ट्राध्यक्ष मौन साधे बैठे हैं- उनका समय पर न बोलना विश्व के लिए किसी अनिष्ट का संकेत है। इन्हीं शासनाध्यक्षों व राष्ट्राध्यक्षों की सी स्थिति मुल्ला मौलवियों की हे। वे जली में घी तो डाल सकते हैं परंतु किसी भी आतंकी संगठन के आतंकी कार्यों की निंदा नहीं कर सकते।
अब आते हैं चीन की ओर । यह देश एक मरी हुई विचारधारा अर्थात साम्यवाद को वैसे ही छाती से चिपकाये घूम रहा है जैसे एक बंदरिया अपने मृत बच्चे को छाती से चिपकाये घूमती रहती है। इसे सनक है कि आज भी विश्व के लिए साम्यवाद की ही आवश्यकता है। यह साम्यवाद विश्व में क्रूरतापूर्वक लाखों-करोड़ों लोगों की हत्या कर चुका है, इसलिए लोगों का इससे मन भर गया है। विश्व ऐसी किसी साम्यता का समर्थक नही है जो लाखों-करोड़ों लोगों की हत्या करके डंडे के बल पर लोगों की जुबानों पर ताले डाल दे और तद्जनित ‘श्मशान की शांति’ को विश्वशांति कहने की भ्रांति फैलाये। पर चीन है कि साम्यवाद के साम्राज्यवाद को लिये चल रहा है और भारत सहित अपने सभी पड़ोसियों की भूमि पर उसकी कुदृष्टि लगी हुई है। वह चाहता है कि विश्व में केवल वही रहे और कोई ना हो। अत: चीन विश्व शांति का सबसे बड़ा शत्रु है।
चिंतन जिसका निम्न हो उसका निम्न नसीब।
दुनिया का समझो उसे सबसे बड़ा गरीब।।
उधर उत्तरी कोरिया में एक भस्मासुर का जन्म हो चुका है। वह परमाणु बम का ही प्रातराश (नाश्ता) करता है और उसी को खाकर सोता है। उसका मुंह आग उगल रहा है और सारे विश्व को आग की लपटों में झुलसता-मरता देखने को वह आतुर है। इधर पाकिस्तान है जो कि भारत के एक निर्दोष नागरिक को जासूस बताकर बलात् फांसी पर लटका देना चाहता है। इसके लिए उसे चीन उकसा रहा है कि परिणामों की चिंता नही करनी है, मैं तेरे साथ हूं।
ऐसे में विश्व शांति का सच्चा सिपाही भारत क्या करे? निश्चय ही इस समय भारत के लिए आत्मरक्षार्थ सारी तैयारी करनी आवश्यक हं। जब चारों ओर सूखी घास के नीचे गोला बारूद छिपे हों, तब आप अपनी झोंपड़ी के सुरक्षित रहने की अपेक्षा करें तो यह केवल आपकी अज्ञानता ही होगी। अमेरिका के टैक्सास में रहने वाले होरासियो नामक भविष्यवक्ता ने 2015 में ट्रम्प के अमेरिका का अगला राष्ट्रपति बनने की भविष्यवाणी की थी। विश्व का मीडिया अंतिम दिन तक ट्रम्प को हरा रहा था, पर वह अपने देश के राष्ट्रपति बन गये। ऐसे में होरासियो की अगली भविष्यवाणी आ रही है कि आगामी 13 मई से तीसरा विश्व युद्घ प्रारंभ हो जाएगा। जिसे ट्रम्प सीरिया पर आक्रमण करके प्रारंभ करने जा रहे हैं। उनका कहना है कि 13 मई से 13 अक्टूबर के मध्य विश्व में भयंकर विनाश मचेगा और परमाणु बमों के प्रयोग से कई देश नष्ट हो जाएंगे। पर यह होकर रहेगा।
अच्छा हो कि ऐसा ना हो। पर बात ये है कि इस समय विश्व नेतृत्व पूर्णत: ‘अनुत्तरदायित्वबोध’ से पीडि़त है। वह क्रोध में है और क्रोध विवेक को मार देता है। विवेक का दीपक बुझते ही क्रोध की सेना के डकैत भयंकर डकैती डालते हैं। हमें फिर भी प्रार्थना करनी चाहिए कि वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिकाओं में खड़े लोगों का क्रोध शांत हो और उनका विवेक विश्व को वास्तविक शांति की ओर ले चलने में सफल हो।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।