Categories
बिखरे मोती

बिखरे मोती : विधाता की सृष्टि कितनी अद्‌भुत अनुपम और विस्मयकारी है

पंचभूत से जग रचा,
रचनाकार महान।
स्थूल समाया सूक्ष्म में,
मन होता हैरान॥2257॥

वेद ने विधाता को हिरण्यगर्भः क्यों कहा:-

क्षितिज से उस पार क्या,
क्या उनका आधार।
सृष्टि तेरे गर्भ में,
पालक सर्वाधार॥2258॥

विशेष :

देवताओ को भूख क्यो नही लगती-

देवत्त्व को जो प्राप्त हो हो,
उड़ै पार्थिव भूख।
तन्मात्राओं से तृप्त हो,
गईं कामना सूख।

पाँच तन्मात्रा कौनसी है-

रूप, रस गन्ध, शब्द और स्पर्श

ज्योति में ज्योति कब मिलती है-

चित्त में ज्योति जल रही,
पट चारों रहे घेर ।
पाँचवा पट खुल जाय तो,
दूर होय अँधेर ॥2260॥

चार पट क्या है-

1- अन्नमय-कोश
2- प्राणमय – कोश
3-मनोमय – कोश
4- विज्ञानमय कोश
5- आनन्दमय – कोश

पाठकों की जानकारी के लिए बताते चले की अन्नमय कोश,प्राणमय कोश, मनोमय-कोश,विज्ञानमय-कोश ये चार पर्दे हैं जिन्होंने आत्मा की ज्योति
को ढ़क रखा है किन्तु जब साधक की चेतना आनन्दमय- में पहुँचती है तो वहाँ किसी प्रकार का आत्मा के ऊपर पर्दा नही रहता, ज्योति – ज्योति से मिल जाती है, आनन्द-आनन्द में विलीन हो जाता है जैसे सरिता सागर मे मिल जाती है।

ओ३म् नाम अपने आप में एक मन्त्र है जो सब प्रकार की शक्तियों का स्रोत है।

गति गति का स्रोत वो,
धन बल का है कुबेर ।
रसों के रस में डूब जा,
ओ३म् नाम नित तेर॥226॥

जब प्रभु – कृपा होती है तो –

ज्ञान ओज बल तेज का,
जब हो जावै भोर।
समझ कृपा हरि नाम की,
जब पकड़ै वो डोर॥2262॥

मेरी काव्य रचना परमपिता परमात्मा की कृपा से सम्पन्न हुई अतः मेरा कवि- हृदय कर्तगयता ज्ञापित करते हुए कहता है-

लेखनी तो चलती रही,
प्रेरक था करतार।
मैं तो मात्र निमित्त था,
सब उसके उद्गार॥2263॥
क्रमशः

Comment:Cancel reply

Exit mobile version