ऋषिराज नागर (एडवोकेट)
बच्चों के निर्माण में माता-पिता को किसी प्रकार का प्रमाद नहीं करना चाहिए। हमें संस्कार देने के लिए कदम कदम पर उनका ध्यान रखना माता-पिता का सबसे बड़ा कर्तव्य धर्म है।
यदि नासमझी से हमारा बच्चा किसी से वाद- विवाद या झगड़ा -फिसाद करता है, तो सबसे पहले हमें अपने बच्चे को ही डाट- फटकार लगानी चाहिये और अपने बच्चे को विवाद से दूर करना चाहिए, तथा दूसरे के बच्चे को डाटना या मारपीट नहीं करनी चाहिए। चाहे दूसरे की गलती क्यों ना हो, हमे केवल अधिकार अपने बच्चे को डाँट फटकार का होता है, पडोसी के बच्चे को तो हमें केवल समझाने का ही अधिकार होता है। फिर भी यदि वह ना माने तो उसके विषय में उसके संरक्षक या माता पिता को बताना अच्छा रहता है।
कभी कर गलती करने वाले माता पिता से बच्चे की शिकायत करते वक्त माता-पिता भी अपने बच्चे का पक्ष लेते देखे गये हैं, ऐसे में समझदारी यही है कि मामला आगे ना बढ़ाया जाये और उनकी करनी उन पर छोड़ देना ही अच्छा रहता है। ऐसे में अपने बच्चे को आगे से अलग रहना या बचकर खेलना बताना जरूरी है।
समझा समुझा एक है, अन समझा सब एक।
समझा सोई जानिये, जा के हृदय विवेक।।
यहाँ यह ध्यान देनी की बात है कि पडोसी से बनाकर रखना ही हितकर रहता है। पडोसी चाहे खेत खलियान का पडोसी हो अथवा घर बार का पड़ोसी हो उससे बना कर रखना हितकर है ।उसकी कमजोरी या मानसिकता को समझकर हमें बर्ताव रखना चाहिए, क्योंकि सकट के समय हमारा पड़ोसी ही हमारा साथ दे सकता है।अच्छा ताल्लुक या अब अच्छा व्यवहार बनाने लिए समय-2 पर पड़ोसी को खिलाते रहना चाहए जैसे कि तीज त्यौहार पर दावत दे दें। या शादी विवाह मे पड़ोसी एवं उसके बच्चो के खाने पीने की व्यवस्था भी करते रहना अच्छा रहता है।
निन्दक नियरे राखिये,आंगन कुटी छ्वाय।
बिन पानी साबुन बिना,निर्मल करे सुभाय॥
(कबीर जी)
पडोसियों या परिवार वालो से अच्छा व्यवहार बनाने के लिए समय-2 पर वृद्ध व्यक्ति की सलाह मशविरा भी अच्छी रहती है क्योंकि वृद्ध व्यक्ति को ज्यादा तजुर्बा/ अनुभव होता है। वृद्ध व्यक्ति के अनुभव में वृद्ध औरत भी होती है।अत: हम वृद्ध औरत का अनुभव पूछ-ताछ कर ले सकते हैं। क्योंकि कबीर सहाब जी ने कहा है कि-
बड़े बड़ाई ना करें, बड़े ना बोले बोल।
हीरा मुख से कब कहे,लाख टका है मेरा मोल॥
बोली तो अनमोल है, जो कोई जानै बोल।
हिये तराजू तोलिके,तब मुख बाहर खोल॥
जो कुछ करै बिचारि के,पाप पुन्न तें न्यार।
कह कबीर इक जानि कै,जाय पुरुष दरबार ॥
गारी से सब उपजै,कलह,काष्ट, अरु मीतच।
हार चलै सो संत है, लागि मरे सो नीच॥
जो तो को काटा बुवै,ताहि बोवे तू फूल।
तोहि फूल को फूल है,वा को है तिरसूल॥
विनम्रता व्यक्ति के व्यक्तित्व का आभूषण होती है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक परिस्थिति में संयम और संतुलन बना रहे । इससे दूसरे व्यक्ति पर हमारा अच्छा प्रभाव पड़ता है। समाज में शांति व्यवस्था बनी रहती है और हम सब एक दूसरे के प्रति सहयोगी भाव बनाकर आगे बढ़ते रहते हैं।
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