हमारे देश के संविधान को बनाने के लिए 29 अगस्त 1947 को डॉ अंबेडकर की अध्यक्षता में 7 सदस्यीय प्रारूप समिति का गठन किया गया था। संविधान की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में हुई थी। 11 दिसंबर 1946 को डॉ राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थाई अध्यक्ष नियुक्त किया गया। हमारी संविधान सभा के कुल 289 सदस्य थे। 26 नवंबर 1949 को संविधान 284 सदस्यों के हस्ताक्षर द्वारा पारित किया गया। संविधान के निर्माण में कुल 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन लगे। इसमें कुल 22 भाग, 395 अनुच्छेद तथा 8 अनुसूचियां रखी गई थीं। वर्तमान संविधान में कुल 25 भाग, 448 अनुच्छेद तथा 22 अनुसूचियां हैं। संविधान सभा के सलाहकार बेनेगल नरसिंह राव थे। संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी 1950 को हुई थी। उसी दिन डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारत के नव निर्मित संविधान के प्रावधानों के अनुसार भारत का पहला राष्ट्रपति चुना गया था। संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया । जिसे गणतंत्र दिवस के रूप में हम आज तक मनाते आ रहे हैं। संविधान के हस्त लेखक श्री बसंत कृष्ण वैद्य (हिंदी में) और श्री प्रेम बिहारी नारायण रायजादा (अंग्रेजी में) थे। संविधान में अंकित चित्रों के निर्माता नंदलाल बोस (ब्योहर राम मनोहर सिन्हा के नेतृत्व में) शान्तिनिकेतन विश्व भारती (कोलकाता) के चित्रकार थे। संविधान में कुल 28 चित्रों का उपयोग किया गया है। चित्र शब्दों की अपेक्षा भावनाओं को प्रकट करने में सक्षम होते हैं। अतः तत्कालीन नीति निर्माताओं ने इन चित्रों को अंकित करने के लिए कहा।
हमारे संविधान के अंतर्गत जितने चित्रों को सम्मिलित किया गया है वे न केवल हमारी भावनाओं को प्रकट करने में सक्षम हैं अपितु उनके माध्यम से हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत के भी दर्शन होते हैं। संविधान निर्माताओं की बुद्धिनिपुणता के समक्ष हमें नतमस्तक होना चाहिए, जिन्होंने चित्रों के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक विरासत को उकेरने का निर्णय लिया। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि आगे चलकर देश के मूल संविधान में अंकित इन चित्रों को पूर्णतया उपेक्षित कर दिया गया। जिससे देश में उन शक्तियों को प्रोत्साहन मिला जो देश के संविधान के माध्यम से भारत के इतिहास बोध को प्रकट न होने देने के लिए संकल्पित थीं।
हमारे देश के संविधान के आवरण पृष्ठ पर अशोक चिह्न को प्रकट किया गया है। जिसमें चार शेरों को एक दूसरे की पीठ से पीठ मिलाकर खड़ा किया गया है। चारों दिशाओं में देखने वाले 4 शेरों की मुखाकृति आधारशिला पर 24 तीलियों से युक्त चार चक्र, धर्म चक्र के बीच दौड़ता हुआ घोड़ा, चलने को तत्पर नंदी, अपने बल को दर्शाता हाथी तथा सतर्कता से खड़ा हुआ सिंह है। जिनमें मुंडकोपनिषद से ‘सत्यमेव जयते’ को बोध वाक्य के रूप में स्वीकार किया गया है। इसका भाव पराक्रम, गतिशीलता, सावधानी एवं त्याग के समन्वय तथा सत्य की विजय के साथ भारत के परम वैभव को पुनः प्राप्त करने का संकल्प है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 01 से 04 में मोहनजोदड़ो का प्रतीक चिन्ह लिया गया है। जिससे भारतीय संस्कृति की प्राचीनता का बोध होता है। मोहनजोदड़ो में शक्ति संपन्नता एवं कर्मठता का प्रतीक महादेव शिव के वाहन नंदी को मोहर के रूप में स्वीकार किया गया है। इस भाग में बताया गया है कि भारत क्या है? तथा भारत के राज्यों की जानकारी भी साथ में दी गई है। इस चित्र से स्पष्ट होता है कि भारत कोई नवनिर्मित देश नहीं है, यह तो चिर पुरातन है , हमें भारत की सांस्कृतिक अखंडता को सदैव स्मरण रखना चाहिए।
जिन लोगों ने भारत को 1947 की 15 अगस्त से बना हुआ माना और अपने आपको इसके निर्माता के रूप में स्थापित करने में किसी प्रकार से कमी नहीं छोड़ी, उन्होंने जब यह देखा कि इस प्रकार के चित्रों के रहने से भारत की प्राचीनता सिद्ध होती है, जिसमें उनका कोई अधिक महत्व नहीं रह जाएगा तो उन्होंने धीरे से भारत की प्राचीनता का बोध कराने वाले इन चित्रों को संविधान से हटवा दिया।
इसी प्रकार भारत की प्राचीनता का बोध कराने वाला एक चित्र संविधान के अनुच्छेद 5 से 11 में वैदिक काल के गुरुकुल के रूप में स्थापित किया गया है। इस गुरुकुल के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि योग्य नागरिक ही नागरिकता की गरिमा को बनाए रखने में सफल हो सकता है। इसके अतिरिक्त योग्य नागरिक बनने के लिए सर्वप्रथम योग्य शिक्षा एवं योग्य संस्कार पाना आवश्यक है। भारत की प्राचीन गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को भी इस चित्र के माध्यम से दिखाया गया है । जिससे मनुष्य निर्माण करने वाली शिक्षा के विषय में भारत के लोग समझें और उसका अनुकरण करें। मौलिक अधिकारों के प्रसंग में पुष्पक विमान से श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी का अयोध्या गमन प्रदर्शित किया गया है । इसके माध्यम से रामराज्य की पुनः प्रतिष्ठा की कामना की गई है। यह कितने दुख की बात है कि जो कांग्रेस आजकल बात-बात पर संविधान के प्रति अपने समर्पण को व्यक्त करते नहीं थकती, उसने ही संविधान के भीतर दिए गए श्री राम जी के चित्र के रहते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय में श्री राम और उनके रामराज्य को कपोल कल्पित होने का शपथ पत्र दिया।
संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 में जहां राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख किया गया है वहां पर श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता का उपदेश देने वाला चित्र भी दिया गया है। जिसके माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि जहां श्री कृष्ण जी जैसा नीति निर्धारक महामानव योगीराज उपस्थित हो और जहां उसका पालन करने वाला पार्थ जैसा निपुण योद्धा उपस्थित हो वहां विजय सुनिश्चित है। अनुच्छेद 52 से 151 के बीच का विषय संघ से संबंधित है। यहां पर सिद्धार्थ के वैराग्य से गौतम बुद्ध के देशाटन तक के चित्रों को प्रकट किया गया है। भाव यह है कि समरस होकर एकाग्र मन से गौतम बुद्ध का संदेश सुनने वाले ज्ञान पिपासु अनुयायी ही समुचित नीति निर्धारण कर उसका पालन करने तथा न्याय करने में सक्षम होंगे। स्पष्ट है कि भ्रष्ट और देश को लूटने वाले लोगों को संघ ना तो प्रमुखता देगा और ना ही उन्हें देश के लिए काम करने की अनुमति देगा।
अनुच्छेद 152 से 237 तक राज्य के विषय को लेकर व्यवस्थाएं दी गई हैं। यहां पर महावीर द्वारा जैन मत का प्रचार वाला चित्र अंकित किया गया है। इस चित्र में शांत भगवान महावीर तथा आनंद विभोर मयूर यह स्पष्ट कर रहा है कि हर परिवर्तन आनंददायक बने सर्व स्वीकृत हो, सर्वमान्य बने। कहने का अभिप्राय है कि एक ऐसी आनंददायक क्रांति की परिकल्पना इस चित्र के माध्यम से स्पष्ट की गई है जो हर युग में हर व्यक्ति के लिए आनंद की वर्षा करने वाली हो और उस परिवर्तन को या क्रांति को समाज का हर वर्ग अपनी स्वीकृति प्रदान करे।
अनुच्छेद 238 में मौर्य काल की निर्भयता व संपन्नता को स्पष्ट करने वाला चित्र दिया गया है । इसके मध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि भय और विकार से मुक्त समाज के स्वरूप को राज्य अपना लक्ष्य मानकर चलेगा। किसी भी वर्ग या समुदाय को , समाज के किसी भी व्यक्ति को भय और विकार से मुक्त रखना राज्य का प्रमुख कार्य है। जिस प्रकार सम्राट अशोक ने अपने समय में लोगों के भय और विकार का हनन करने में सफलता प्राप्त की थी उसी प्रकार आज भी राज्य इसी प्रकार के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ेगा।
संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन भारत के संविधान के अनुच्छेद 239 – 242 में स्पष्ट किया गया है। यहां पर संपन्नता के लिए कुबेर की छलांग वाला चित्र स्थापित किया गया है। प्रत्येक नागरिक की संपन्नता के लिए आर्थिक क्षेत्र में सूझबूझ के साथ कदम उठाए जाएंगे तो देश का सर्वांगीण विकास संभव हो पाएगा, ऐसा संदेश और संकेत इस चित्र के माध्यम से दिया गया है। कहने का अभिप्राय है कि संपन्नता के लिए और प्रत्येक नागरिक की समृद्धि के लिए राज्य किसी भी प्रकार की असावधानी नहीं करेगा।
पंचायत और नगरपालिका वाले अनुच्छेदों के विषय को चित्र के माध्यम से प्रकट करने की भावना से प्रेरित होकर वहां विक्रमादित्य के दरबार वाला चित्र प्रकट किया गया है। हम सभी जानते हैं कि विक्रमादित्य द्वारा स्थापित की गई व्यवस्था बहुत ही न्याय पूर्ण थी। आज के यूरोप और एशिया को मिलाकर बनने वाले विशाल भारत पर उनका शासन था । इसके उपरांत भी कहीं से भी उनके राज्य में अन्याय व अत्याचार के समाचार प्राप्त नहीं होते थे। सिंहासन पर बैठकर वह प्रत्येक नागरिक को न्याय देने का प्रयास करते थे। उनकी न्यायप्रियता आज तक भी लोगों के लिए कौतूहल का विषय है। पंचायत स्तर पर हमारे लोग अपने आपको विक्रमादित्य की अनुभूतियों के साथ समन्वित कर न्याय प्रणाली को मजबूती प्रदान करें, इसी विचार से प्रेरित होकर इस चित्र को यहां पर दिया गया है।
भारत प्राचीन काल से ही ज्ञान विज्ञान का केंद्र रहा है। यहां पर तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय भी स्थापित हुए। जिन्होंने संसार के कोने-कोने से विद्यार्थियों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में सफलता प्राप्त की । इन विश्वविद्यालयों से निकले हुए विद्यार्थियों ने सारे संसार को लाभान्वित किया और मानवता का प्रचार प्रसार कर सबको वैदिक संस्कृति के झंडे तले रखकर उन्हें मानव से देव बनने का रास्ता बताया। संसार के प्रत्येक मनुष्य को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय देने का कार्य किया। नालंदा विश्वविद्यालय का चित्र देखकर यह स्पष्ट किया गया है कि भारत के दूरदराज के अनुसूचित एवं जनजाति क्षेत्रों तक शिक्षा की बयार बहाई जाएगी। राज्य ऐसा प्रबंध करेगा कि शिक्षा से कोई भी बच्चा वंचित नहीं रहेगा। सबको अपना सर्वांगीण विकास करने की सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि आधुनिकता और प्रगतिशीलता के साथ सभी आकर जुड़ें।
संघ और राज्यों के बीच संबंध को प्रकट करने वाला अश्वमेध यज्ञ का चित्र भी संविधान के अनुच्छेद 243 से 267 पर दिया गया है। इसके माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि स्वायत्तता एवं सार्वभौमिकता के अद्भुत समन्वय का नाम ही लोकतंत्र है। जिसके प्रति भारत अपनी पूर्ण निष्ठा व्यक्त करता है। घोड़े को दिग्विजय की यात्रा पर ले जाता हुआ सम्राट और उसके आधिपत्य को स्वीकार करने की मानसिकता को दर्शाता हुआ शरणागत एक राजा इसमें दिखाया गया है। वित्त और संपत्ति वाले अनुच्छेदों में नटराज तथा स्वास्तिक का चित्र लगाया गया है। वैदिक काल से चली आ रही परंपरा में स्वास्तिक अत्यंत पवित्र और मंगलकारी माना जाता रहा है। आज भी हम यज्ञों के अवसर पर स्वस्तिवाचन करते हैं। स्वास्तिक का अभिप्राय है कि हम सब एक साथ, एक दिशा में, एक सोच, एक मन, एक विचार और एक संकल्प वाले होकर आगे बढ़ेंगे। सब सबके साथ चलने में और सब सबका विकास करने में आनंद की अनुभूति करेंगे।
अनुच्छेद 301 से तीन 307 में भगीरथ प्रयास से गंगावतरण को दिखाया गया है। स्पष्ट है कि हम प्रयत्नों की पराकाष्ठा करने में किसी प्रकार का संकोच नहीं करेंगे और अपनी राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने के प्रति भी किसी प्रकार का प्रमाद प्रकट नहीं करेंगे। अनुच्छेद 308 से 323 में संघराज्य सेवाओं को दिखाने के लिए अकबर के दरबार को भी स्थान दिया गया है। इसके पश्चात छत्रपति शिवाजी और गुरु गोविंद सिंह को स्थान दिया गया है। निर्वाचन संबंधी संवैधानिक अनुच्छेदों में इन दोनों महापुरुषों को स्थान देकर यह स्पष्ट किया गया है कि लोक प्रतिनिधियों के निर्वाचन का मापदंड देश व धर्म के लिए सर्वस्व अर्पण की मानसिकता को ही प्राथमिकता दी जाएगी। कहने का अभिप्राय है कि जिन लोगों के लिए राष्ट्र प्रथम है उन्हीं को देश का शासन भार सौंपा जाएगा।
रानी लक्ष्मीबाई को भी कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध वाले संवैधानिक अनुच्छेदों में स्थान दिया गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि देश धर्म की रक्षा के लिए वीरांगनाओं ने जिस प्रकार अपना बलिदान दिया है उनके बलिदान को भी देश व्यर्थ नहीं जाने देगा । यहीं पर टीपू सुल्तान को भी स्थान दिया गया है। टीपू सुल्तान और अकबर जैसे लोगों को केवल तुष्टीकरण के लिए ही स्थान दिया गया है, ऐसा हमारा मानना है।
लाठी लेकर चलते गांधीजी को राजभाषा वाले संवैधानिक अनुच्छेदों में स्थान दिया गया है। जिससे यह स्पष्ट किया गया है कि स्वभाषा की अलख जगाने का कार्य घर-घर में किया जाएगा।
इसके पश्चात आपात उपबंधों में गांधी जी की दांडी यात्रा को दिखाया गया है। गांधी जी का दांडी यात्रा का यह चित्र हमें यह बताता है कि आपातकाल में समाज का नेतृत्व के साथ एक मुखी होकर चलना आवश्यक हो जाता है। अनुच्छेद 361 से 367 में जहां पर प्रकीर्ण विषय हैं ,वहां पर नेताजी सुभाष और आजाद हिंद सेना का चित्र दिया गया है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज की तरह स्वीकारोक्ति के साथ क्रियान्वयन के लिए तत्पर रहना आवश्यक होता है।
संविधान के संशोधन संबंधी प्रावधानों में खुला आकाश और हिमालय दिया गया है। जिस प्रकार विशाल हिमालय पर्वत में भी सूक्ष्म परिवर्तन होता है, वैसे ही परिस्थिति के अनुसार लोक कल्याण के लिए संविधान में भी संशोधन किया जा सकता है। संविधान में दिए गए इस चित्र का यही मौलिक संदेश है। अस्थायी संक्रमण कालीन और विशेष उपबंधों में मरुस्थल तथा ऊंट की सवारी का चित्र दिखाया गया है। जिसमें स्पष्ट किया गया है कि भारत की प्राकृतिक तथा भौगोलिक स्थिति अलग-अलग होते हुए भी समन्वय को प्रकट करती है। मरुस्थल का चित्र थल की सुरक्षा का संकेत देता है तथा ऊंटों की सवारी समस्त भारत के भू भाग पर हमारे अधिकारों को दर्शाता है।
समुद्र तथा नौकायन का चित्र अनुच्छेद 393 से 395 में दिया गया है। सागर जैसा गहरा शांत एवं असीम संभावना भरे संविधान में कुशलता से ही नौका को लक्ष्य तक पहुंचाया जा सकता है इस चित्र के माध्यम से यह संदेश दिया गया है।
कहने का अभिप्राय है कि संविधान के भीतर जितने को सभी चित्र दिए गए हैं उन सब का एक महत्वपूर्ण संदेश है कि हम सब राष्ट्र की एक इकाई हैं और हम सब के मिलने से ही राष्ट्र का निर्माण होता है। बात स्पष्ट है कि हम सबको अपनी महान विरासत और इतिहास बोध की परंपरा को जीवित रखना है। ऐसे में संविधान में दिए गए इन चित्रों को संविधान के प्रत्येक संस्करण में यथावत दिए जाता रहना आवश्यक हो जाता है। जिसके लिए केंद्र की वर्तमान सरकार को विशेष पहल करनी चाहिए।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत