सद्गुरु जग्गी वासुदेव -सत्य की परख* भाग-1

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जन्म परिचय : जग्गी वासुदेव का जन्म 5 सितंबर, 1957 को कर्नाटक राज्य के मैसूर शहर में हुआ था और उसका बाप वासुदेव एक नेत्र चिकित्सक था. जग्गी वासुदेव का बचपन में पढाई की तरफ रुझान नहीं था बल्कि वह जंगलों में भटकता रहता था और सांपों को पकड़ता था (आज भी उसे सांप पकड़ने में महारत हासिल है)और बाद में जैसे-तैसे करके मैसूर विश्वविधालय से अंग्रजी भाषा में स्नातक की डिग्री हासिल की (कर्नाटक का होने की वजह से कन्नड़ के अलावा भी आसपास के क्षेत्रों की कई भाषायें सहजता से आती है अर्थात 5 भाषाओं (कन्नड़, तमिल, तेलगु, मलयाली, अंग्रेजी) का ज्ञान तो इसे बचपन से ही है (यानि बहुत सी भाषायें जानना कोई बड़ी बात नहीं है).
अपने आपको धर्मिक सद्गुरु के रूप में बताने वाले इस जग्गी वासुदेव ने आध्यात्मिक जागृति के दो साल बाद शादी की और इसकी पत्नी का नाम विजया कुमारी है. मुझे आज तक ये समझ नहीं आया कि ऐसे सभी फ्रॉड धर्मगुरुओं को हमेशा आत्मिक ज्ञान ही क्यों प्राप्त होता है ? जैसे मुहम्मद को हुआ था और ज्ञान प्राप्त होने के बाद भी वे सांसारिक लिप्साओं और मैथुन संबंधों में इतने उलझे हुए क्यों रहते है ? जबकि आध्यात्मिक ज्ञान और आत्मिक ज्ञान में तो ब्रह्मचर्य सर्वप्रथम नियम होता है !
विजया कुमारी से 1984 में प्रेम विवाह के बाद 1990 में राधे नाम की एक लड़की का पिता भी ये जग्गी वासुदेव बना. जग्गी वासुदेव की पत्नी विजया कुमारी बैंक कर्मचारी थी लेकिन इसने उसकी मृत्यु के बाद ऐसी अफवाहें भी फैलाई कि उसने स्वेच्छा से प्राण त्याग दिये (अब ये तो वही जाने कि एक साधारण बैंक कर्मचारी में ऐसी शक्ति कैसे आ गयी कि उसने महा-समाधि ले ली और मुस्कुराते हुए पहले बताकर अपने प्राण त्यागे). जबकि हकीकतन उस पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप है और अक्टूबर, 1997 में अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद बैंगलोर पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ एक शिकायत भी दर्ज की गई, जिसमें उस पर अपनी पत्नी पर दहेज के लिये प्रताड़ित करने का आरोप लगा था. जग्गी की बेटी राधे अब नर्तकी है और एक कर्नाटक शास्त्रीय गायक संदीप नारायण से विवाहित है.
1983 में मैसूर में 25 वर्ष की आयु में ईशा योग केंद्र की स्थापना की और अपने सात सहयोगियों के साथ अपनी पहली योगा क्लास की शुरुआत की
धन संपत्ति : रॉयल इनफील्ड बाइक्स की कई बाइक्स का संग्रह इसके पास है और एक नंबर वाली ढाई सौ करोड़ की संपत्ति है। ध्यान रहे की ये संपत्ति इसके बाप-दादा की विरासत से मिली संपत्ति नहीं बल्कि शिष्यों द्वारा दान में दी हुई है। कहते है की बेनामी या दो नंबरी संपत्ति के बारे में कोई अनुमान नहीं है क्योंकि 800 करोड़ तो इसने रैली फॉर रिवर के नाम पर ही इकट्ठा किये थे और कई देशों में इसके फॉउंडेशन के केंद्र भी है. अतः वहां की खाता-बही में इंडिया का कोई कानून लगता नहीं है।
ईशा फाउंडेशन और बिज़नेस मॉडल : जग्गी की युवाकाल से ही योगासन करने और सिखाने में रूचि थी। आज भी जग्गी के पास लगभग ढाई लाख स्वयंसेवी यानि की बिना वेतन काम करने वाले लोग हैं. सुरु में वह पूरी तरह से अपने पॉल्ट्री फार्म ( पॉल्ट्री फार्म का अटलब समझ गए होंगे जहा मुर्गी मांस के लिए तैयार की जाती है और पैसा कमाया जाता है ) पर गुजर-बसर करता था और क्लास के लिये लोगों से पैसे नहीं लेता था क्योंकि उस समय तक उसका उद्देश्य सिर्फ योग सिखाना था. मगर स्पोंसर्स से आने वाले पैसों को देख लालच बढ़ा और ईशा फाउंडेशन की स्थापना हुई। प्रारम्भ से ही ये एक शुद्ध व्यसायिक संस्था थी, जिसे अब मानव सेवी कहकर धोखा दिया जा रहा है. असल में योग सिखाने की संस्था अलग है, जिसका नाम ईशा योग केंद्र है और वो ईशा फॉउंडेशन के अंतर्गत काम करती है. ईशा योग केंद्र भले ही लोगो को फ्री में योग सिखाती हो, मगर ईशा फॉउंडेशन एक व्यवसायिक संस्था है, जो जड़ी-बूंटियो से लेकर हर वो चीज़ बेचती है, जिसके बदले धन मिलता हो. लेकिन दिखाया ये जाता है कि ये मानवसेवी संस्थान है .
असल में ईशा फाउंडेशन को एक मानव सेवी संस्थान के मुखौटे के पीछे छिपाया गया है, जो भारत के सीधे सरकारी सपोर्ट के कारण भारत सहित संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, लेबनान, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में भी अपनी शाखायें खोल चुका है.
घने वनों से घिरा नीलगिरि जीवमंडल का एक हिस्सा है, जहां भरपूर वन्य जीवन है. उसी नीलगिरि पर्वतों की तराई में 150 एकड़ की हरी-भरी भूमि पर स्थित ईशा योग केंद्र का हेडक़्वार्टर है, जहां पर लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठगने के लिये ध्यानलिंग योग मंदिर भी बनाया गया है, जो कि असल में 1999 में जग्गी वासुदेव द्वारा प्रतिष्ठित एक मात्र लिंग है, जिसकी प्रतिष्ठा पूरी हुई है और जो 13 फीट 9 इंच की ऊंचाई का पारा (Mercury) आधारित लिंग है. और इसके प्रवेश द्वार पर एक सर्व-धर्म स्तंभ भी बनाया हुआ है, जिसमें हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, जैन, बौद्ध, सिख, ताओ, पारसी, यहूदी और शिन्तो धर्म के प्रतीक चिन्हों को अंकित किया गया है ताकि सर्व धर्म समन्वय के झूठे सन्देश के साथ सभी लोगों को बराबर रूप से ठगा जा सके और किसी एक विशेष धर्म अनुयायी होने का ठप्पा न लगे.
कहते है की इस जग्गी वासुदेव का असली काम ईशा फाउंडेशन के नाम पर आदिवासियों की जमीनें हड़पना है और इसके लिये फाउंडेशन के अंतर्गत योग सिखाने की नौटंकी की जाती है तथा सामाजिक और सामुदायिक विकास योजनाओं की आड़ में गरीब आदिवासियों की जमीनें हथियाई जाती है.
जग्गी के शौक : जग्गी वासुदेव बहोत ऐश आराम की ज़िन्दगी गुज़रता है, ऐसे संत अपने ऐश आराम के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। सन् २०१७ में भारत सरकार द्वारा उन्हें सामाजिक सेवा के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है।
मोदी की अनुशंसा से इसे संयुक्त राष्ट्र के ECOSOC में विशेष सलाहकार की पदवी मिल चुकी है ! ये सद्गुरु जग्गी वासुदेव, राम-रहीम की तरह ही एक फिल्म (Directed by Scott Carter, Ward M. Powers, and Diane Powers) में अपना डेब्यू भी कर चुका है यानि ये अभिनय में भी माहिर है. और इसके शौक भी किसी अध्यात्म गुरु या योगी वाले नहीं है बल्कि गोल्फ, होप्सकॉच, क्रिकेट, वॉलीबॉल, बिलियर्ड्स, फ्रिसबी और ट्रेकिंग जैसे महंगे शौक हैं, जो इसके सांसारिकता के जाल में जकड़े होने का सबूत है.

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