अविश्वास की गहरी खाई
एक क्षण के लिए मान भी लें कि जाधव भारत का जासूस है, लेकिन वह कैसी जासूसी कर सकता था। आज उपग्रहों के आने से तकनीक इतनी विकसित हो चुकी है कि आप गाडिय़ों की नंबर प्लेट पर लिखे अंकों तक को आकाश से पढ़ सकते हैं। इसलिए जाधव पर दोष मढक़र पाकिस्तान कोई और ही बदला लेने की फिराक में है। पाकिस्तान को भी समझना होगा कि प्रतिकूल व्यवहार के बाद भारत प्रतिक्रिया स्वरूप किसी भी हद तक जा सकता है।
जासूसी एक ऐसा कीड़ा है, जो भारत और पाकिस्तान को लंबे अरसे से काटता रहा है और अब तो बांग्लादेश भी इस रोग से त्रस्त दिखता है। जब तक पड़ोसी मुल्क से यहां आने वाला कोई व्यक्ति खुद को एक सामान्य व्यक्ति साबित नहीं कर देता, तब तक उसे एक जासूस की तरह ही देखा जाता है। इस तरह के किसी भी व्यक्ति का स्वतंत्रतापूर्वक रहना विदेश या गृह मंत्रालय पर निर्भर करता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो ऐसे मामलों में यहां की पुलिस व्यवस्था न्यायकर्ता की भूमिका निभाती है। यहां यह कहना तो निरर्थक ही है कि ऐसे लोगों को आजीवन कारावास या मृत्यु दंड तक दिया जाता है।
सामान्य तौर पर न्यायालय निर्णय करता है। हालांकि पाकिस्तान में हालात अलग हैं, क्योंकि उसका शासन तो सेना द्वारा संचालित होता है। इसके बावजूद नागरिक न्यायालय की कार्य प्रणाली भी स्थानीय सैन्य अधिकारियों द्वारा प्रभावित होती है। वस्तुत: उनके शब्द पत्थर की लकीर माने जाते हैं। यहां तक कि इन्हीं के द्वारा मृत्युदंड भी सुना दिया जाता है। साक्ष्यों का सवाल तो उठता है, लेकिन यह फिर स्थानीय सैन्य अधिकारियों के पास जाकर अटक जाता है। कराची से प्रकाशित होने वाले एक समाचार-पत्र में बताया गया है कि किस तरह से भारतीय व्यावसायी कुलभूषण यादव को मृत्युदंड सुनाया गया। इसने आगे लिखा है कि पाक की गुप्तचर एजेंसियों ने हुसैन मुबारक पटेल नाम रखकर घूमने वाले भारतीय रॉ एजेंट कुलभूषण सुधीर यादव को 3 मार्च, 2016 को बलूचिस्तान से गिरफ्तार किया था। इसके बाद सेना के जनसंपर्क मामलों की एक शाखा ने पिछले सोमवार घोषणा की कि फील्ड जनरल कोर्ट मार्शल के तहत उन्हें दोषी पाते हुए मृत्युदंड सुनाया गया है।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने इस बात को स्वीकार किया कि कुलभूषण का दोष साबित करने के लिए पाकिस्तान के पास कोई पुख्ता सबूत नहीं थे, लेकिन जाधव की इसमें संलिप्तता को साबित करने के लिए कुछ सबूत अपनी तरफ से ही गढ़ लिए गए थे। किसी भी स्थिति में सरताज अजीज के शब्द सही मालूम पड़ते हैं। हालांकि पाकिस्तान ने मामले से जुड़े अहम दस्तावेज संयुक्त राज्य के महासचिव को सौंप दिए हैं। इसका मानना है कि यह निर्णय, जो कि अब सुनाया जा चुका है, इस्लामाबाद के पक्ष में होगा। वास्तव में जो भी व्यक्ति पड़ोसी मुल्कों में घूमने जाता है, उसके लिए वहां नरक ही होता है। वह व्यक्ति जिस भी स्थान पर जाता है, खुफिया विभाग उसका पीछा करता रहता है। यहां तक कि वह व्यक्ति जिन दुकानों से खरीददारी करता, उससे भी पूछताछ की जाती है, जैसे खरीददार ने उसी की इच्छा से वहां से समान खरीदा हो। बाजार को पड़ोसी देशों से आने वाले खरीददारों की जरूरत होती है, क्योंकि वे यहां बहुत सारा धन खरीददारी पर खर्च करते हैं। लेकिन पुलिस की पूछताछ उन्हें डरा देती है। मुझे अब भी याद है कि एक मर्तबा एक पाकिस्तानी कार ड्राइवर मुझे एयरपोर्ट से गंतव्य तक ले जा रहा था, तो वह पुलिस की कार द्वारा पीछा करने से वह परेशान हो गया। तंग आकर उसने गाड़ी रोककर पूछ ही लिया कि आप हमारा पीछा क्यों कर रहे हो? तो उसे जवाब मिला कि आप पर कोई आरोप नहीं है। हम वही कर रहे हैं, जो हमारे उच्च अधिकारी ने करने के लिए कहा था। मेरा मित्र, जो कि एक जाना-माना संपादक था, कुछ सैन्य अधिकारियों को जानता था। उसका असर यह हुआ कि अब पुलिस की गाड़ी ने हमारी गाड़ी से थोड़ा फासला बढ़ा लिया, लेकिन पहले की तरह पीछा करना नहीं छोड़ा। एक क्षण के लिए मान भी लें कि जाधव भारत का जासूस है, लेकिन वह कैसी जासूसी कर सकता था। आज उपग्रहों के आने से तकनीक इतनी विकसित हो चुकी है कि आप गाडिय़ों की नंबर प्लेट पर लिखे अंकों तक को आकाश से पढ़ सकते हैं। इसलिए जाधव पर दोष मढक़र पाकिस्तान कोई और ही बदला लेने की फिराक में है। जाधव के मामले में घोषणा करते हुए जिक्र किया गया है कि सजा को सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के द्वारा प्रमाणित किया गया है। हालांकि यहां यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि आखिर इसका आधार क्या था? भारत की तरफ से मामले में संवाद को लेकर 14 बार आग्रह किया गया, लेकिन उसने हर बार इसे खारिज कर दिया। इसके बाद यह जानना भी मुश्किल हो गया है कि किन कारणों से जाधव को यह सजा दी जा रही है। इसके बाद भारतीय विदेश मंत्री ने भी पाकिस्तान को साफ शब्दों में चेतावनी दी है कि यदि जाधव को सजा दी जाती है, तो यह कार्य अमित्रतापूर्ण होगा। हाल ही की सैन्य सर्जिकल स्ट्राइक को भी एक चेतावनी के तौर पर ही देखा जाना चाहिए। पाकिस्तान को भी समझना होगा कि प्रतिकूल व्यवहार के बाद भारत प्रतिक्रिया स्वरूप किसी भी हद तक जा सकता है।
भारत और पाकिस्तान को एक मेज पर आकर एक ही बार में सभी मसलों को सुलझा लेना चाहिए। कश्मीर मामले को बाकी मसलों से अलग एक अन्य समिति द्वारा सुलझाया जा सकता है। इसकी कोई वजह नहीं बचती कि दोनों मिलकर व्यवसाय करें या संयुक्त उपक्रम स्थापित करें। वास्तव में यदि पर्यटन सुविधा के लिए कुछ वीजा रियायतें दी जाएं, तो दोनों देशों में विश्वास बहाल हो सकता है। सीमा से सटे इलाकों में होने वाले अनौपचारिक व्यापार को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। औपचारिक व्यापार के साथ-साथ कई समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं, क्योंकि दोनों देशों के पास एक-दूसरे से शिकायतों की एक लंबी सूची मौजूद है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने हाल ही में कहा था कि इसका कोई कारण नहीं है कि भारत और पाकिस्तान दोनों मित्रतापूर्वक क्यों नहीं रह सकते। इस अविश्वास की जड़ें कहीं न कहीं सात दशक पहले के विभाजन से जुड़ी हुई हैं। उस दिल दहला देने वाली त्रासदी में दोनों ही देशों को जो जख्म मिले, वह एक दर्दनाक कहानी है। बलपूर्वक विस्थापन में करीब दस लाख लोगों की जान चली गई थी। वह विश्व के अब तक के सबसे बड़े नरसंहारों में से एक माना जाता है। तीस से चालीस लाख लोगों को अपने घर-बार व पुरखों की विरासत छोडक़र नए ठिकाने ढूंढने पड़े, क्योंकि विभाजन के दौरान जो हालात पैदा हो गए थे, वे उनकी सुरक्षा के लिए ठीक नहीं थे। नागरिकों के मामलों को भी सैन्य अदालतों में चलाने की पाकिस्तान में जो नई रिवायत शुरू की है, उसमें फिलहाल ऐसा भी नहीं माना जा सकता कि जाधव उसके अंतिम शिकार होंगे। साफ तौर पर राजनीतिक दल भी इस फैसले से खुश नहीं हैं और उन्होंने सैन्य अदालतों को खत्म करने की एक हल्की से कोशिश की भी है। जाधव को सजा दिया जाना दोनों देशों में एक नई मुश्किल पैदा कर सकता है। इस तरह के मामलों को कम करने के लिए प्रयास होने चाहिएं।
इस क्षेत्र में शांति के लिहाज से ये घटनाएं कतई हितकर नहीं मानी जा सकतीं।