भारत की राजनीति का धर्म बन गया है :-
कहां की पूजा नमाज कैसी कहां की गंगा कहां का जमजम।
डटा है होटल के दर पै हर एक इमें भी दे दो इक जाम साहब।।
भारत के राजनीतिज्ञों की इस मानसिकता के चलते राष्ट्रधर्म पीछे रह गया है। फिर भी हम वर्तमान संदर्भों में अपनी लेखनी के साथ न्याय करते हुए कहेंगे कि वर्तमान सरकार में जब तक पीएम मोदी और उनके सलाहकार के रूप में अजीत डोबाल हैं तब तक हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है। यद्यपि नक्सलवादियों ने छत्तीसगढ़ में अभी जिस प्रकार की परिस्थितियां उत्पन्न की हैं और और जिस कायरतापूर्ण ढंग से हमारे 26 जवानों की हत्या की है वह हमारे धैर्य और संयम को उखाडऩे के लिए पर्याप्त है, क्योंकि यह अकेली घटना नहीं है अपितु उसके साथ कश्मीर की पत्थरबाजी और कूपवाड़ा में पुन: जिस प्रकार हमारे सैनिकों को अपना बलिदान देना पड़ा है ये सारी परिस्थितियां एक साथ यदि पढ़ी जाएं और उस पर हमारे गृहमंत्री राजनाथसिंह का यह बयान कि-‘राष्ट्रविरोधी शक्तियों के विरूद्घ कड़ी कार्यवाही होगी और हमारे सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नही जाएगा’-ये सारी घटनाएं एक निराशा का परिवेश बनाती हैं। गृहमंत्री की बात पर लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है और यही बात उन्हें नकारा सिद्घ कर रही है। उनका परिस्थितियों और घटनाओं पर नियंत्रण नहीं है। जिससे लोग उनके विरूद्घ होते जा रहे हैं।
गृहमंत्री राजनाथसिंह को चाहिए था कि वे पाकिस्तान के विरूद्घ की गयी ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के बाद से ही अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करते। क्योंकि शत्रु से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह आपसे अपने मुंह पर थप्पड़ खाकर चुप बैठ जाएगा। उसे प्रतिक्रिया देनी ही थी। एक शासक को चाहिए कि वह अपनी क्रिया के पश्चात शत्रु की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखकर अपनी तैयारी करें। हमने ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के पश्चात भी यह लिखा था कि अब प्रतिक्रिया के लिए हमें तैयार होना होगा। परंतु गृहमंत्री राजनाथसिंह ने लगता है अपेक्षित तैयारी नहीं की है।
इधर सोशल मीडिया पर भी कुछ अधिक ही ‘क्रांतिकारी’ पैदा हो गये हैं जो बम की भाषा पढ़ाने का प्रयास सरकार को कर रहे हैं। माना कि सरकार को प्रेरित करना और उकसाना कलम का काम है-पर कलम पराक्रमी होने के साथ साथ घटनाओं की समीक्षक भी होनी चाहिए, अन्यथा वह आग लगाकर अपनी ही हानि कर लेगी। समझने की आवश्यकता है कि इस समय पाकिस्तान के विरूद्घ भारत चाहकर भी ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ नहीं कर सकता और ना ही ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की पुनरावृत्ति समस्या का समाधान है। अब यदि ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की गयी तो पाकिस्तान और चीन की ओर से युद्घ की घोषणा होने की पूर्ण संभावना है। भारत के नेतृत्व को चाहिए कि वह एशिया को तृतीय विश्वयुद्घ का समर क्षेत्र बनने से रोके , इसलिए उसे धैर्य का परिचय देना चाहिए। तृतीय विश्वयुद्घ के मुहाने पर खड़े विश्व के कई देश इस समय क्रोध, विरोध, प्रतिशोध और प्रतिरोध की ज्वालाओं में तप रहे हैं, जो कभी भी कुछ भी कर सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी और अजित डोबाल यदि यह प्रतीक्षा कर रहे हों कि आग कहीं और से आरंभ हो तो यह उचित ही है। इस समय निश्चय ही ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की तैयारी करने का समय न होकर युद्घ की तैयारी करने का समय है। हमें आशा करनी चाहिए कि भारत का सक्षम नेतृत्व परिस्थितियों को समझ रहा है और वह उचित और अपेक्षित तैयारी कर रहा है। वैसे भी यदि अब भारत न भी चाहे तो भी युद्घ होकर रहेगा, क्योंकि मानवता इस समय क्रोध विरोध, प्रतिशोध और प्रतिरोध की ज्वालाओं में धधक रही है जिनसे बचना उसके लिए कठिन हो गया है। जब हर ओर से ‘युद्घ’ की बातें होने लगें तो समझना चाहिए कि युद्घ अब हमारी नियति बन चुका है। हमें इजराइल से कुछ सीखना होगा, जहां बम विस्फोट और मारकाट रोज की घटनाएं बनी रहीं, यदि हम शत्रु विनाश के लिए तैयारी कर रहे हैं तो बड़ी-बड़ी घटनाओं के लिए भी हमें तैयार रहना होगा। इसके लिए नागरिकों की ओर से सरकार को अनावश्यक कोसने से बचना होगा और सरकार को ऐसा भरोसा दिलाना होगा कि लोग कोसने की स्थिति में न आयें। कितना दुर्भाग्य पूर्ण तथ्य है कि अपने विनाश की कामना हम सब सामूहिक रूप से कर रहे हैं। आग लगे और भयंकर आग लगे यह हमारी प्रार्थना हो गयी है-तो आग लगेगी और यह भी याद रखना कि आग भयंकर ही लगेगी। इस भयंकर अग्निकांड के पश्चात जो कुछ हममें से बचेंगे, वे हमें ही कोसेंगे कि कितने मूर्ख थे वे लोग जो सामूहिक रूप से आग लगाने की प्रार्थना कर रहे थे। आज का युग धर्म आग लगाना है तो समय वह भी आएगा, जब आग बुझाने को लोग युग धर्म बनाएंगे। जो लोग आज आग बुझाने की बात कर रहे हैं वे कमजोर मानसिकता के समझे जा रहे हैं और वे संख्या में कम होने के कारण उनकी बात को कोई सुनने वाला भी नहीं है। विनाश की राख पर बैठकर जब मानवता रोएगी तो अवश्य उसे आज के ‘विदुर’ याद आएंगे। पर तब तक भीष्म पितामह और कर्ण जैसे कितने ही महारथी यहां से चले गये होंगे।
भारत को इस समय युद्घ की अघोषित परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। हम विकास की चाहे जितनी बात करें पर हमारी सीमाओं पर इतना तनाव है कभी भी कुछ भी हो सकता है। प्रधानमंत्री मोदी को असफल करने के लिए घर के भीतर के ‘जयचंद’ और बाहर के ‘गौरी’ हाथ मिला रहे हैं। उभरते भारत को मिटाने के षडय़ंत्र हो रहे हैं। उन सब को दृष्टिगत रखते हुए हमें घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए तथा सरकार से उचित असहमति व्यक्त करते हुए भी उसका साथ देना चाहिए।
ऐसी परिस्थितियों में हम कहेंगे कि गृहमंत्री राजनाथसिंह को उनके मंत्रालय से छुट्टी दी जाए-क्योंकि जो परिस्थितियां बन रही हैं-उनके लिए वह उचित गृहमंत्री सिद्घ नहीं हो रहे हैं। भारत को एक पराक्रमी गृहमंत्री की आवश्यकता है। एक ऐसा गृहमंत्री जो जमीन से जुडक़र समस्याओं का समाधान खोजे। सारी उपलब्धियों के उपरांत भी राजनाथसिंह जमीन से जुडक़र काम करने में असफल रहे हैं। उनसे अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे वर्तमान परिस्थितियों में देश को नेतृत्व दे सकेंगे? जो व्यक्ति आज भी परिवार को राजनीति में स्थापित करने की जुगत भिड़ा रहा हो वह राष्ट्ररूपी परिवार को कैसे बचाएगा? प्रधानमंत्री को निश्चय ही समय पर निर्णय लेना चाहिए। हमें अपनी राख नहीं करानी है अपितु शत्रु की राख करनी है। इसके लिए घर को ठीक करना ही होगा। मोदीजी सरकार में ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करें और देश को मजबूत संदेश दें।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।