ग्रेटर नोएडा ( अमन आर्य) यहां चल रहे ऋग्वेद पारायण यज्ञ के पश्चात राष्ट्रभाषा हिंदी को लेकर एक विशेष चिंतन शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें सभी लोगों ने एक साथ एक स्वर से राष्ट्रभाषा हिंदी को अपनाने और संस्कृत के उन्नयन के लिए संकल्प लिया।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए भारत को समझो अभियान के राष्ट्रीय प्रणेता डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि हिंदी को एक षड्यंत्र के अंतर्गत कम्युनिस्ट आंदोलन ने मिटाने का गंभीर षड्यंत्र रचा है। उन्होंने कहा कि कभी मोहम्मद शाह रंगीला के शासनकाल में ‘हिंदुस्तानी’ भाषा की कल्पना की गई थी। उसी को कालांतर में नेहरू ने आगे बढ़ाने का प्रयास किया जिसका परिणाम यह हुआ कि हिंदी भाषा के भीतर दूसरी भाषाओं के अनेक शब्द प्रवेश करने में सफल हो गए। जिससे राष्ट्रभाषा हिंदी के भीतर संस्कृत के पवित्र और वैज्ञानिक शब्दों का अभाव होता चला गया।
डॉक्टर आर्य ने कहा कि हिंदी संसार की सबसे अधिक समझी और बोली जाने वाली भाषा है। इसके उपरांत भी इसकी दुर्दशा बहुत ही चिंतनीय है। डॉ आर्य ने कहा कि आर्य जगत के मूर्धन्य विद्वान डॉ वेद प्रताप वैदिक जब भी कभी कहीं बोलते थे तो उपस्थित लोगों से वे बैंक आदि में हिंदी में हस्ताक्षर करने की अपील करते थे। उनका अभी हाल ही में निधन हुआ है। हमें उनकी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए हिंदी में अपने हस्ताक्षर करने का संकल्प लेना चाहिए। उनके प्रस्ताव पर सभा में उपस्थित सभी लोगों ने हाथ उठाकर हिंदी में हस्ताक्षर करने और हिंदी के साथ-साथ संस्कृत को अपनी भाषा मानने, लिखने, समझने का संकल्प लिया।
सभा का संचालन कर रहे आर्य सागर खारी ने इस अवसर पर कहा कि भारत की शिक्षा नीति में हिंदी भाषा को उपेक्षित करने में किसी एक लॉर्ड मेकाले का ही योगदान नहीं है अपितु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अनेक लॉर्ड मैकाले हुए हैं, जिन्होंने हिंदी भाषा का उन्नयन करने के स्थान पर पतन करने में अपनी भूमिका निभाई है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हिंदी हिंदू हिंदुस्तान की भावना पर बल देने वाली भारत की नरेंद्र मोदी सरकार हिंदी के वैज्ञानिक स्वरूप की स्थापना के लिए नई शिक्षा नीति में नई भाषा नीति को भी प्रमुखता से स्थान दे।
इस अवसर पर हिंदी और संस्कृत की दशा सुधारने को लेकर प्रधानमंत्री व प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए एक ज्ञापन भी तैयार किया गया।